फोड़ा छोटे तथा बड़े Absess

 परिचय: इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के शरीर पर बड़े-छोटे दाने निकल जाते हैं जिनमें पीब तथा मवाद भरी रहती है। इस रोग के कारण फोड़े में गांठ भी पड़ जाती है तथा कुछ दिनों के बाद ये गांठ मुलायम पड़ जाती है तथा उसमें पीब और दूषित रक्त भर जाता है। इसी को फोड़ा कहते हैं। जब यह फूट जाता है तो इसमें से दूषित पदार्थ पीब और विषैला रक्त (खून) निकलने लगता है।

          फोड़ा छोटे तथा बड़े दोनों ही रूप में हो सकता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को बुखार तथा कब्ज की शिकायत भी हो सकती है। ये फोड़े कभी-कभी 2-3 दिनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं तो कुछ जल्दी ठीक नहीं होते हैं। जब फोड़ा फूट जाता है तो 7 से 10 दिनों तक यह सूख जाता है। जब फोड़े के साथ छेड़छाड़ करते है तो यह असाधारण रूप ले लेता है और यह नासूर, नहरूआ तथा कैंसर आदि रोगों का रूप ले लेता है और बहुत अधिक दर्दनाक हो जाता है।

फोड़ा होने का कारण: फोड़ा होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना है। जब रक्त में दूषित द्रव्य मिल जाते हैं तो शरीर के किसी कमजोर भाग पर यह दाने के रूप में निकलने लगते हैं और उसमें मवाद या पीब भर जाती है। फोड़ा में गांठ भी बन जाती है तथा रोग ग्रस्त भाग कभी-कभी लाल रंग का हो जाता है और उस स्थान पर जलन, खाज तथा दर्द भी होने लगता है।


फोड़े का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

फोड़े का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति का फोड़ा जब तक पक न जाए तब तक उस पर प्रतिदिन 2-3 बार गुनगुना पानी छिड़कना चाहिए या फिर 10 मिनट तक 2-3 बार कम से कम 2 घण्टे तक बदल-बदल कर गर्म मिट्टी का लेप करना चाहिए या फिर कपड़े की गीली पट्टी करनी चाहिए। जब फोड़ा पक जाए तो उसे फोड़कर उसकी पीब तथा जहरीले रक्त को बाहर निकाल देना चाहिए। इसके बाद नीम की पत्तियों को पीसकर लेप बनाकर फोड़े पर लगाएं तथा कपड़े से पट्टी कर लें। इस प्रकार से प्रतिदन पट्टी करने से फोड़ा कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके तथा दूषित द्रव्य उसके शरीर से बाहर निकल सके।

नींबू के रस को पानी में मिलाकर उस पानी से फोड़े को धोना चाहिए तथा इसके बाद फोड़े पर कपड़े की पट्टी कर लेनी चाहिए। जब फोड़ा पीबयुक्त हो जाए तो उस पर कम से कम 5 मिनट तक गर्म पानी में भीगे कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। इसके बाद फोड़े को फोड़कर पीब तथा जहरीले रक्त को बाहर निकाल देना चाहिए और फिर इसके बाद ठंडे पानी में भीगे कपड़े से दिन में 3-4 बार सिंकाई करनी चाहिए। इससे फोड़ा जल्द ही ठीक हो जाता है।

जब फोड़ा फूट जाए तो दिन में 2 बार उस पर हल्की भाप देकर बलुई मिट्टी की भीगी गर्म पट्टी या कपड़े की भीगी पट्टी बदल-बदलकर लगानी चाहिए। इसके बाद जब उस पट्टी को खोलें तो उसे ठंडे पानी से धोकर ही खोलना चाहिए।

जब रोगी के शरीर में अधिक संख्या में फोड़े निकल रहे हों तो उस समय रोगी व्यक्ति को 2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा फलों का रस पीना चाहिए तथा दिन में गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिए। रोगी व्यक्ति को सप्ताह में 1 बार फोड़ों पर ठंडी पट्टी रखकर स्नान करना चाहिए तथा पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन 2 बार कटिस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए। रात के समय में रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर मिट्टी की गर्म पट्टी रखनी चाहिए। इसके अलावा रोगी को गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए तथा तौलिये से अपने शरीर को पोंछना चाहिए। फोड़े पर हरा प्रकाश देकर नीला प्रकाश भी देना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।

फोड़ों को मक्खी आदि से बचाने के लिए उन पर नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए और इसके साथ-साथ इसका प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। इससे फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जाता है।

सुबह के समय में नीम की 4-5 पत्तियां चबाने से फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जाता है।


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