आयुर्वेद

'आयुर्वेद' नाम का अर्थ है, 'जीवन से सम्बन्धित ज्ञान'। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।

आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है

आयुर्वेद 5,000 वर्षों से भारत में प्रचलित है। यह शब्द संस्कृत के शब्द अयुर (जीवन) और वेद (ज्ञान) से आया है। आयुर्वेद, या आयुर्वेदिक चिकित्सा को कई सदियों पहले ही वेदों और पुराणों में प्रलेखित किया गया था।

आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर

आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों (जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु) से मिलकर बना है। वात, पित्त और कफ इन पांच तत्वों के संयोजन और क्रमपरिवर्तन हैं जो सभी निर्माण में मौजूद पैटर्न के रूप में प्रकट होते हैं।

पित्त शरीर की चयापचय प्रणाली के रूप में व्यक्त करता है

आग और पानी से बना है। यह पाचन, अवशोषण, आत्मसात, पोषण, चयापचय और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। संतुलन में, पित्त समझ और बुद्धि को बढ़ावा देता है। संतुलन न होने से, पित्त क्रोध, घृणा और ईर्ष्या पैदा करता है।

शरीर का शुद्धिकरण

आयुर्वेद में पंचकर्म में एनीमा, तेल मालिश, रक्त देना, शुद्धिकरण और अन्य मौखिक प्रशासन के माध्यम से शारीरिक विषाक्त पदार्थों को समाप्त करने का अभ्यास है। आयुर्वेदिक हर्बल दवाओं में बड़े पैमाने पर उपयोग किए जाने वाले उपयुक्त घरेलू उपचार जीरा, इलायची, सौंफ और अदरक हैं जो शरीर में अपच को ठीक करते है।

श्वेत मोतियाबिंद Cataract

 परिचय: जब आंखों में श्वेत मोतियाबिंद का रोग हो जाता है तो रोगी व्यक्ति को आंखों से धुंधलापन नज़र आने लगता है। यह रोग किसी भी आयु में होने वाला रोग है। जब यह रोग हो जाता है तो धीरे-धीरे व्यक्ति की नज़र कमजोर होने लगती है तथा रोगी व्यक्ति अंधा भी हो सकता है।


श्वेत मोतियाबिंद का लक्षण:-


इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपनी आंखों के सामने धुंधला-धुधला सा नज़र आने लगता है तथा व्यक्ति को कोई भी वस्तु को देखने में परेशानी होने लगती है।

रोगी व्यक्ति को अधिक रोशनी में देखने में परेशानी होने लगती है।

चश्मे के नम्बर में जल्दी से बदलाव होने लगता है तथा उसे बार-बार चश्मा बदलने की जरूरत होती है।

रोगी व्यक्ति को 2 या 2 से अधिक वस्तु दिखाई नहीं देती हैं।


श्वेत मोतियाबिंद रोग होने का कारण:-


इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव का जमा होना है। दूषित द्रव के कारण आंखों पर प्रभाव पड़ता है और श्वेत मोतियाबिंद का रोग हो जाता है।

शरीर में विटामिन `ए´, `बी´ और `सी´ की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

नमक, चीनी, शराब, धूम्रपान का सेवन अधिक करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

पड़ते समय प्रकाश कम होना तथा बहुत छोटे अक्षरों को पड़ने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

मधुमेह रोग हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

अधिक प्रकाश में रहने के कारण भी यह रोग हो सकता है।


श्वेत मोतियाबिंद रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


यदि मोतियाबिंद पक जाए तो प्राकृतिक चिकित्सा से इसका कोई भी उपचार नहीं है। लेकिन यदि रोग की शुरूआती अवस्था है तो इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।

इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए इसके बाद इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।

इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले दो से तीन दिनों तक रोगी व्यक्ति को फलों का रस (आंवले का रस, गाजर का रस, संतरे का रस, अनन्नास का रस, सफेद पेठे का रस, नींबू पानी, नारियल पानी आदि) का सेवन करना चाहिए। फिर तीन सप्ताह तक बिना पके भोजन (फल, सब्जियां, अंकुरित दाल) का सेवन करना चाहिए। इसके बाद तीन सप्ताह तक संतुलित भोजन करना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

गेहूं के ज्वारे का रस पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को विटामिन `ए´, `बी´, `सी´ वाले खाद्य पदार्थों का और हरे साग-सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए।

प्रतिदिन 7-8 बादामों को पानी में पीसकर इसमें कालीमिर्च के चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ चाटने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को चीनी, मैदा, रिफाईंड चावल, चाय, कॉफी, एल्कोहालिक खाद्य पदार्थ, मिर्च-मसालेदार तथा मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।

शाम के समय में आंवले का रस शहद के साथ चाटने तथा तुलसी का रस या इसके पत्ते का सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को जलनेति क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए और दिन में कई बार मुंह में पानी भरकर आंखों में पानी के छीटे मारने चाहिए और साप्ताहिक धूपस्नान करना चाहिए। फिर इसके बाद आंखों पर 2 बार गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए तथा इसके बाद पेट पर मिट्टी की पट्टी करने से तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए, फिर कटिस्नान करना चाहिए और फिर रीढ़ पर गीले कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

लगभग 10 ग्राम शहद, 1 मिलीलीटर नींबू का रस, 1 मिलीलीटर अदरक का रस तथा एक मिलीलीटर प्याज का रस मिलाकर एक शीशी में भरकर इसे अच्छी तरह से मिला लें। इस मिश्रण को नेत्रज्योति कहते हैं। इस नेत्र ज्योति का सुबह तथा शाम आंखों में लगाने से यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

सुबह के समय में इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को नंगे पैर हरी घास पर चलना चाहिए तथा बहुत ज्यादा रोशनी से बचना चाहिए।

प्रतिदिन आंखों का व्यायाम (पामिंग, त्राटक, पुतली का दांया तथा बांया करने तथा ऊपर नीचे करने) करने तथा गर्दन और कंधे का व्यायाम करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से बचने के लिए मानसिक तनाव को दूर करना चाहिए तथा प्रतिदिन शवासन और योगनिद्रा करनी चाहिए।

प्रतिदिन सूर्यतप्त हरा पानी पीने तथा आंखों को इस पानी से धोने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


काला मोतियाबिन्द Glaucoma

 परिचय: बुढ़ापे के समय में मोतियाबिन्द रोग होना एक आम बात है। यह एक प्रकार का आंख का रोग है जिसके कारण जब कोई व्यक्ति प्रकाश की ओर देखता है तो उसे एक प्रकार का रंगीन घेरा दिखाई देता है। जब किसी व्यक्ति को यह रोग हो जाता है तो उसी समय इस रोग का इलाज न किया जाए तो यह रोग आगे चल कर अन्धेपन का रूप ले लेता है और रोगी व्यक्ति को कुछ भी दिखाई नहीं देता है। इस रोग के होने के कारण आंखों के नेत्रगोलकों में तनाव होकर आंखें सख्त हो जाती हैं।


मोतियाबिन्द रोग होने का कारण- वैसे यह रोग आंख की आयु बढ़ने से होता है। मनुष्य जैसे-जैसे बूढ़ा होता जाता है वैसे-वैसे उसकी आंखों के लेंस की आयु भी बढ़ती है जिसके कारण उसकी आंख का लेंस पारदर्शी होता चला जाता है। लेकिन इस लेंस का पारदर्शी होना अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग समय में होता है। आंखों में दूषित द्रव्यों की रुकावट हो जाने के कारण आंखों में दूषित द्रव्य बढ़ जाते हैं जिसके कारण आंखों के नेत्रगोलक में तनाव बढ़ जाता है और आंखों में मोतियाबिन्द का रोग हो जाता है। मोतियाबिन्द रोग होने के और भी कई कारण होते हैं जैसे- आंखों में किसी प्रकार का संक्रमण होना, आंखों में किसी तरह से चोट लगना, मधुमेह रोग होना, औषधियों का अधिक इस्तेमाल करना, त्वचा पर किसी प्रकार की बीमारियां होना, आंखों में तेज खुजली होना तथा बिजली के तेज झटके लगना आदि। यह रोग जन्मजात भी हो सकता है जो मां-बाप से उसके बच्चों को हो सकता है। कुछ विशेष प्रकार की दवाइयों के प्रयोग से भी मोतियाबिन्द हो सकता है। यह रोग दूसरी चीजों से एलर्जी होने के कारण भी हो सकता है।


मोतियाबिन्द का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा मोतियाबिन्द रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को आंखों से पानी आने का उपचार कराना चाहिए। इसके बाद रोगी को विटामिन `ए` `बी` `सी` वाले पदार्थों का कुछ दिनों तक भोजन में लगातार सेवन करना चाहिए। ये पदार्थ कुछ इस प्रकार हैं- आंवला, सन्तरा, नींबू, अनन्नास, गाजर तथा पालक आदि।

मोतियाबिन्द के रोगी को इलाज के दौरान सबसे पहले अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा लेना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट पर मिट्टी का लेप करना चाहिए। रोगी को कुछ देर के बाद कटिस्नान करना चाहिए और फिर कुछ समय के लिए अपनी आंखों पर गीली पट्टी लपेटनी चाहिए। मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगी को अपनी आंखों पर गर्म तथा ठंडी सिंकाई करनी चाहिए।

मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नीम की 5-6 पत्तियां खानी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

जब मोतियाबिन्द रोग का प्रभाव कुछ कम हो जाए तो रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फल तथा सामान्य भोजन खाना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी भारी भोजन नहीं करना चाहिए और न ही मिर्च-मसाला, नमक, चाय तथा कॉफी का सेवन करना चाहिए।


नकसीर (नाक से खून निकलना) Epistiaxix

 परिचय: वैसे नाक से खून निकलना अपने आप में कोई रोग नहीं है लेकिन जब यह बार-बार होता है तो यह एक रोग बन जाता है जिसका उपचार कराना बहुत ही आवश्यक है। इस रोग के हो जाने के कारण रोगी व्यक्ति की नाक से खून निकलने लगता है। कभी-कभी तो नाक से खून निकलने के कारण यह खून ग्रासनली से होता हुआ पेट में चला जाता है।


नकसीर फूटने के कारण-


किसी दुर्घटना के कारण अचानक नाक पर चोट लग जाने की वजह से नाक से खून निकलने लगता है।

नाक में किसी रोग के हो जाने के कारण जब व्यक्ति अपनी नाक को बार-बार कुरेदता है तो उसकी नाक से खून निकलने लगता है जिसके कारण उस व्यक्ति को नकसीर फूटने का रोग हो जाता है।

नाक के पिछले भाग की एक ग्रंथि में सूजन हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति हो जाता है।

प्लेथोरा रोग अर्थात शरीर के रक्तकोषों में रक्ताधिक्य हो जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है।

हैमोफीलिया या परप्यूरा रोग हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।

नाक में किसी तरह का संक्रमण हो जाने के कारण भी नकसीर फूटने का रोग हो जाता है।

नाक में फुंसियां हो जाने के कारण भी नकसीर फूटने का रोग हो सकता है।

पेट में लगातार कब्ज बनने के कारण भी नाक से खून आने का रोग हो सकता है।

नाक को झटके के साथ साफ करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

डिस्क्रेस्या, उच्च रक्तचाप रोग के कारण भी नाक से खून निकलने लगता है।


नकसीर फूटने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


जब रोगी व्यक्ति की नाक से खून निकलने लगे तो उस समय रोगी व्यक्ति के सिर पर ठंडे पानी की धार देनी चाहिए तथा रोगी को गीली मिट्टी सुंघाएं। इससे रोगी की नाक से खून निकलना बंद हो जाता है।

रोगी व्यक्ति के सिर तथा मस्तिष्क पर ठंडे जल में भिगोया कपड़ा रखना चाहिए ताकि उसकी नाक से खून निकलना बंद हो जाए।

रोगी के दोनों हाथों में बर्फ के टुकड़े रखने चाहिए तथा रोगी के नाक पर बर्फ का ठंडा लपेट करना चाहिए तथा बर्फ के टुकड़े उसके सिर के नीचे सिराहने में रखने चाहिए।

जब रोगी की नाक से खून निकलने लगे तो उसके शरीर के कपड़े उतार देने चाहिए ताकि कपड़ों पर खून न गिर सके। रोगी व्यक्ति को मुंह से सांस लेनी चाहिए। इसके फलस्वरूप रोगी की नाक से खून निकलना बंद हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति के हाथ के अंगूठे और तर्जनी उंगुली के बीच की नस को दबाने से भी नाक से खून निकलना बंद हो जाता है। रोगी व्यक्ति की नाक पर प्रतिदिन सरसों का तेल लगाना चाहिए इससे नकसीर फूटने का रोग ठीक हो जाता है।

रोगी की नाक को अच्छी तरह से साफ करके उसकी नाक पर बर्फ के टुकड़े लगाने चाहिए ताकि यह रोग ठीक हो सके।

ठंडे पानी में नींबू का रस मिलाकर नाक से अन्दर खींचने से भी नाक से खून निकलना बंद हो जाता है।

जब नाक से अधिक खून निकलने लगे तो सबसे पहले रोगी व्यक्ति को किसी ठंडी जगह पर लिटाना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को गर्दन पीछे की ओर झुकानी चाहिए। फिर गर्दन के पिछले भाग के नीचे ठंडे पानी की पट्टी या बर्फ की थैली रख देनी चाहिए और पैरों में सूखी गरम पट्टी बांधनी चाहिए। इसके बाद रोगी के पैरों को 5 मिनट तक गर्म पानी से धोना चाहिए। इस प्रकार के उपचार से नाक से खून निकलना बंद हो जाता है।

यदि किसी व्यक्ति की नाक से बार-बार से खून निकल रहा हो तो सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सुबह और शाम के समय में उदरस्नान करना चाहिए तथा अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए।

यदि सिर पर चोट लगने के कारण नाक से खून निकल रहा हो तो सबसे पहले नाक से खून निकलने को रोकना चाहिए और फिर रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।

पीली बोतल का सूर्यतप्त जल 100 मिलीलीटर, नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 50 मिलीलीटर और हरी बोतल का सूर्यतप्त जल 50 मिलीलीटर को आपस में मिला लें। फिर इसे लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 5 बार सेवन करने से रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।

हरी बोतल के सूर्यतप्त जल में कपड़े की बत्ती को तर करके उसे नाक के नथुनों में रखने से या फिर उस जल का केवल नस्य लेने से भी नाक से बार-बार खून निकलना बंद हो जाता है। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से नाक से खून निकलना बंद हो जाता है।


पेशीवात रोग Spasm

 परिचय: इस रोग के कारण रोगी की गर्दन की मांसपेशियों में दर्द तथा सूजन हो जाती है। पेशीवात रोग को अंग्रेजी में मस्कुलर रिहमटिज्म कहते हैं। यह रोग स्नायु (नाड़ी) में सूजन आ जाने के कारण होता है।


पेशीवात रोग के लक्षण: इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति अपनी गर्दन को एक तरफ करके पड़ा रहता है और उसकी पंजरी की मांसपेशियों में दर्द तथा सूजन हो जाती है। इस रोग के कारण जब मांसपेशियों में दर्द होता है तो उसे व्यक्ति को हिलने-डुलने में परेशानी होने लगती है।


पेशीवात रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


पेशीवात के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने स्नायु की सूजन ठीक करनी चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है क्योकि यह रोग स्नायु में सूजन होने के कारण ही होता है।

पेशीवात के रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन, यौगिक क्रियाएं तथा स्नान करना चाहिए, जिसके फलस्परूप पेशीवात रोग ठीक हो जाता है। ये आसन, यौगिक क्रियाएं और स्नान इस प्रकार हैं- रीढ़स्नान, कटिस्नान, मेहनस्नान, योगासन, एनिमा क्रिया तथा प्राणायाम आदि।

पेशीवात के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को प्रतिदिन एनिमा क्रिया करनी चाहिए क्योंकि यह रोग स्नायु में सूजन के कारण होता है और स्नायु में सूजन शरीर में दूषित द्रव्य जमा होने के कारण होती है। एनिमा क्रिया करने से पेट में जमा दूषित द्रव्य बाहर हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप स्नायु की सूजन ठीक हो जाती है और पेशीवात का रोग भी ठीक हो जाता है।

पेशीवात से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए तथा प्रतिदिन कम से कम 7-8 घण्टे की नींद लेनी चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

पेशीवात के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 मिनट तक गर्म पानी में कपड़े को भिगोकर फिर निचोड़कर अपने पेशी की सिंकाई करनी चाहिए तथा इसके बाद ठंडे पानी में 5 मिनट तक कपड़े को भिगोकर इससे अपने पेशी की सिंकाई करनी चाहिए। इस क्रिया को कम से कम आधे घण्टे तक दोहराते रहना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

यदि पेशीवात का रोग पुराना हो तो रोगी को अपनी पेशी पर कम से कम 2 घण्टे तक गर्म तथा ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। इसके बाद पेशी पर भाप देनी चाहिए और गर्म कपड़े को कुछ समय के लिए अपनी पेशी पर लपेटना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।

पेशीवात के रोग ठीक करने के लिए कभी भी मालिश का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे रोग की स्थिति और बिगड़ सकती है। रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।


चेहरे पर मस्से Black Warts

 परिचय: सूर्य किरण और रंग चिकित्सा के माध्यम से सूर्य चार्ज हरी बोतल से तैयार गुलाब जल को त्वचा पर लगाने से त्वचा का रूखापन दूर होकर पोषक तत्व मिलते हैं। सूर्य तप्त गुलाब जल को रूई के फाहे से हल्के हाथों से बिना रगड़े ही लगाना चाहिए। गुलाब जल को त्वचा पर कम से कम 15 मिनट तक लगाना चाहिए तथा इसके बाद ताजे पानी से मुंह को धो लेना चाहिए।

          हरे गुलाब जल को त्वचा पर लगाने से त्वचा की अंदरूनी त्वचा भी पूरी तरह से साफ हो जाती है। जिससे रोमछिद्रों में स्थित चिकनाई व तैलीय पदार्थ का अंश बाहर निकल जाता है और त्वचा सामान्य हो जाती है। जिन लोगों को बार-बार चेहरे पर मस्से होने की परेशानी होती है उनके लिए यह क्रिया बहुत ही ज्यादा लाभदायक होती है।


कुष्ठ रोग Leprosy

 परिचय: कुष्ठ (कोढ़) रोग एक प्रकार का चर्मरोग है। इस रोग के कारण शरीर का खून जहरीला होकर शरीर के कुछ अंगों को खराब कर देता है।


कुष्ठ रोग के प्रकार है-


श्वेतकुष्ठ कुष्ठ: श्वेतकुष्ठ को सफेद दाग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के कारण शरीर के अनेक भाग पर सफेद चमकीले दाग से पड़ जाते हैं। दाग वाले भाग के रोंगटे और बाल भी सफेद हो जाते हैं।


कुष्ठ रोग होने के कारण:-


कुष्ठ रोग होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर के खून का खराब हो जाना है।

मल-मूत्र के वेग को रोकने के कारण शरीर का खून दूषित हो जाता है जिसके कारण से कुष्ठ रोग हो जाता है।

हार्मोन्स की गड़बड़ी होने तथा मानसिक आघात होने के कारण शरीर की रक्तसंचारण प्रणाली में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण से कुष्ठ रोग हो जाता है।

अधिक नमक, मिर्च-मसालें वाली चीजों के खाने से रक्त दूषित हो जाता है जिसके कारण से व्यक्ति को कुष्ठ रोग हो जाता है।

शक्तिशाली एन्टीबायोटिक तथा तेज औषधियों का सेवन करने के कारण भी कुष्ठ रोग हो जाता है क्योंकि इन दवाइयों के कारण शरीर के खून में जहरीले तत्व फैल जाते हैं।

अधिक नशीली चीजों का सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है क्योंकि इन नशीली चीजों के कारण शरीर का रक्त दूषित हो जाता है।

कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-


कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके साथ-साथ प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक उपचार करने से कुष्ठ रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

कुष्ठ रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में कम से कम 2 बार भापस्नान करना चाहिए ताकि पसीना अधिक निकले। इसके बाद रोगी को आधे घण्टे तक सुबह के समय में मेहनस्नान और शाम के समय में उदरस्नान करना चाहिए।

कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए तथा फिर बिना पके हुए भोजन का सेवन करना चाहिए। हरी सब्जियां तथा अंकुरित अन्न का सेवन बहुत लाभदायक होता है।

रोगी व्यक्ति को अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर हरी बोतल के सूर्यतप्त नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए तथा इसके साथ-साथ रात के समय में अपने पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए। रोगी को कम से कम 8 दिनों तक हरी तथा पीले रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा दिन में 8 बार पीना चाहिए।

कुष्ठ रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में नंगे बदन धूपस्नान करना चाहिए क्योंकि सूर्य की किरणों में कुष्ठ रोग के कीटाणुओं को मारने की क्षमता होती है।

कुष्ठ रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में सोने से पहले किसी बर्तन में कच्चे चने डालकर उसमें पानी भरकर, भिगोने के लिए रखना चाहिए। सुबह के समय में उठकर रोगी व्यक्ति को ये चने खा जाने चाहिए तथा इसके पानी को पी लेना चाहिए। इस क्रिया को कुछ दिनों तक लगातार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

चुकन्दर, भिगोए हुए अंकुरित काले चने, अंजीर, खजूर, तुलसी के पत्ते, त्रिफला में थोड़ी हल्दी मिलाकर तथा नीम की पत्तियों का सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

चने का साग लगातार 2 महीने तक खाने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में नमक तथा चीनी नहीं खानी चाहिए।

रात को सोते समय तांबे के बर्तन में पानी को भरकर रख दें। सुबह के समय में इस पानी को पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने पाचन-संस्थान की सफाई करनी चाहिए ताकि उसकी पाचनक्रिया ठीक प्रकार से हो सके। रोगी को अपने पेट की सफाई करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। फिर रोगी को अपने पेट पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए तथा इसके बाद कटिस्नान, कुंजल क्रिया करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुष्ठ रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


सोरायसिस रोग Psoriasis

 परिचय: सोरायसिस रोग जब किसी व्यक्ति को हो जाता है तो जल्दी से ठीक होने का नाम नहीं लेता है। यह छूत का रोग नहीं है। इस रोग का शरीर के किसी भाग पर घातक प्रभाव नहीं होता है। जब यह रोग किसी को हो जाता है तो उस व्यक्ति का सौन्दर्य बेकार हो जाता है तथा वह व्यक्ति भद्दा दिखने लगता है। यदि इस बीमारी के कारण भद्दा रूप न हो और खुजली न हो तो सोरायसिस के साथ आराम से जिया जा सकता है।


सोरायसिस रोग होने के लक्षण- जब किसी व्यक्ति को सोरायसिस हो जाता है तो उसके शरीर के किसी भाग पर गहरे लाल या भूरे रंग के दाने निकल आते है। कभी-कभी तो इसके दाने केवल पिन के बराबर होते हैं। ये दाने अधिकतर कोहनी, पिंडली, कमर, कान, घुटने के पिछले भाग एवं खोपड़ी पर होते हैं। कभी-कभी यह रोग नाम मात्र का होता है और कभी-कभी इस रोग का प्रभाव पूरे शरीर पर होता है। कई बार तो रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने का अनुमान भी नहीं होता है। शरीर के जिस भाग में इस रोग का दाना निकलता है उस भाग में खुजली होती है और व्यक्ति को बहुत अधिक परेशान भी करती है। खुजली के कारण सोरायसिस में वृद्धि भी बहुत तेज होती है। कई बार खुजली नहीं भी होती है। जब इस रोग का पता रोगी व्यक्ति को चलता है तो रोगी को चिंता तथा डिप्रेशन भी हो जाता है और मानसिक कारणों से इसकी खुजली और भी तेज हो जाती है।

सोरायसिस रोग के हो जाने के कारण और भी रोग हो सकते हैं जैसे- जुकाम, नजला, पाचन-संस्थान के रोग, टान्सिल आदि। यदि यह रोग 5-7 वर्ष पुराना हो जाए तो संधिवात का रोग हो सकता है।


सोरायसिस रोग होने का कारण:-


अंत:स्रावी ग्रन्थियों में कोई रोग होने के कारण सोरायसिस रोग हो सकता है।

पाचन-संस्थान में कोई खराबी आने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

बहुत अधिक संवेदनशीलता तथा स्नायु-दुर्बलता होने के कारण भी सोरायसिस रोग हो सकता है।

खान-पान के गलत तरीकों तथा असन्तुलित भोजन और दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी सोरायसिस रोग हो सकता है।

असंयमित जीवन जीने, जीवन की विफलताएं, परेशानी, चिंता तथा एलर्जी के कारण भी यह रोग हो सकता है।

सोरायसिस रोग के होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फलों का रस (गाजर, खीरा, चुकन्दर, सफेद पेठा, पत्तागोभी, लौकी, अंगूर आदि फलों का रस) पीना चाहिए। इसके बाद कुछ सप्ताह तक रोगी व्यक्ति को बिना पका हुआ भोजन खाना चाहिए जैसे- फल, सलाद, अंकुरित दाल आदि और इसके बाद संतुलित भोजन करना चाहिए। रोगी को अपने भोजन में फल, सलाद का अधिक सेवन करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति यदि उपचार करे तो उसका सोरायसिस रोग कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।

सोरायसिस रोग से पीड़ित रोगी को दूध या उससे निर्मित खाद्य पदार्थ, मांस, अंडा, चाय, काफी, शराब, कोला, चीनी, मैदा, तली भुनी चीजें, खट्टे पदार्थ, डिब्बा बंद पदार्थ, मूली तथा प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।

नारियल, तिल तथा सोयाबीन को पीसकर दूध में मिलाकर प्रतिदिन पीने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

आंवले का प्रतिदिन सेवन करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

विटामिन `ई´ युक्त पदार्थों का अधिक सेवन करने से यह रोग कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।

जौ, बाजरा तथा ज्वार की रोटी इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए बहुत अधिक लाभदायक है।

सूर्यतप्त हरी बोतल का पानी प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से तथा सूर्यतप्त हरी बोतल का नारियल का तेल दानों पर लगाने से सोरायसिस रोग ठीक हो जाता है।

सोरायसिस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में खुली हवा में गहरी सांस लेनी चाहिए तथा धूप स्नान करना चाहिए। इसके बाद नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से रोगी को स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 1 बार पानी में नमक डालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन एनीमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए तथा कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन कुछ समय तक हरी घास पर नंगे पैर चलना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने पर सोरायसिस रोग ठीक हो जाता है।


टयूमर रोग Tumour

 परिचय: टयूमर का रोग शरीर के भीतरी और बाहरी दोनों भागों में हो सकता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के शरीर में गांठ, सूजन तथा गिल्टी हो जाती है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी होती है।


टयूमर होने का कारण : यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जिनके शरीर में दूषित द्रव्य जमा होने लगता है। जब यह रोग बहुत अधिक पुराना हो जाता है तो यह जल्दी ठीक नहीं होता है।


टयूमर होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार -


इस रोग का उपचार करने के लिए व्यक्ति को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा उपवास के समय में फलों का रस पीना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को कब्ज की शिकायत हो तो उसे प्रतिदिन शाम के समय में एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके।

रोगी व्यक्ति को कम से कम 2 सप्ताह तक फल, दूध या सादे भोजन पर रहना चाहिए और प्रतिदिन साधारण स्नान करना चाहिए इसके बाद पूरे शरीर की सूखी मालिश करनी चाहिए।

रोगी व्यक्ति को दिन में 2 बार अपने शरीर को गीले तौलिये से पोंछना चाहिए। इसके बाद पानी में नमक मिलाकर उस पानी से दिन में 2 बार स्नान करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को अपने भोजन में नमकीन, मिठाई, तली-भुनी चीजों तथा मैदा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को शराब, चाय, कॉफी, पान, तम्बाकू आदि का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में हल्का व्यायाम करना चाहिए तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जब तक रोगी का रोग ठीक न हो जाए तब तक रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में व्यायाम करना चाहिए और रोग वाले भाग पर मिट्टी की गर्म गीली पट्टी दिन में कम से कम 2 बार लगानी चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से इस रोग का उपचार करने से कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है।

टयूमर रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिसके करने से यह रोग ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- भुजंगासन, शलभासन, वज्रासन, पश्चिमोत्तानासन, पवनमुक्तासन, उडि्डयान बंध, मूलबंध तथा सूर्य नमस्कार आदि। इन आसनों को सुबह के समय में करना चाहिए।


चेचक रोग Chicken Pox

 परिचय: जब चेचक का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो इस रोग को ठीक होने में 10-15 दिन लग जाते हैं। लेकिन इस रोग में चेहरे पर जो दाग पड़ जाते हैं उसे ठीक होने में लगभग 5-6 महीने का समय लग जाता है। यह रोग अधिकतर बसन्त ऋतु तथा ग्रीष्मकाल में होता है। यदि इस रोग का उपचार जल्दी ही न किया जाए तो इस रोग के कारण  रोगी व्यक्ति की  मृत्यु हो सकती है।


चेचक का रोग 3 प्रकार का होता है-


रोमान्तिका या दुलारी माता

मसूरिका (छोटी माता या शीतला माता)

बड़ी माता (शीतला माता)


रोमान्तिका (दुलारी माता): जब किसी व्यक्ति को रोमान्तिका का रोग हो जाता है तो इसके दाने उसके शरीर की त्वचा के रोमकूपों पर निकलते हैं। इसलिए इस चेचक को रोमान्तिका कहते हैं। इस प्रकार के चेचक से पीड़ित रोगी की मृत्यु नहीं होती है। इस रोग में निकलने वाले दाने 2-3 दिन में ठीक हो जाते हैं। यह रोग 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अधिक होता है। इस रोग के दाने बहुत बारीक होते हैं। चेचक का रोमान्तिका रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।


रोमान्तिका (दुलारी माता) के लक्षण- रोमान्तिका रोग में रोगी व्यक्ति के चेहरे पर लाल रंग के दाने निकलने लगते हैं तथा जब ये दाने निकलते हैं तो रोगी व्यक्ति को बुखार हो जाता है और बैचेनी सी होने लगती हैं। यह दाने 2-3 दिनों के बाद फफोलों का रूप ले लेते हैं तथा इसके बाद कुछ दिनों बाद ये सूख कर झड़ने लगते हैं।


मसूरिका (छोटी माता या शीतला माता): जब किसी व्यक्ति को चेचक का मसूरिका रोग हो जाता है तो उसके शरीर पर मसूर की दाल के बराबर के दाने निकलने लगते हैं। इसलिए इसे चेचक का मसूरिका रोग कहते हैं। इस चेचक को ठीक होने में कम से कम 11-12 दिनों का समय लग जाता है। कभी-कभी इस चेचक को ठीक होने में बहुत अधिक समय भी लग जाता है। इस चेचक के कारण शरीर पर घाव भी हो जाते हैं, जिससे रोगी के शरीर में कहीं-कहीं निशान भी पड़ जाते हैं। इस रोग के कारण त्वचा पर पड़े निशान कम से कम 2 महीने के बाद साफ होते हैं। यह बहुत ज्यादा संक्रामक रोग है। इस रोग के दाने कम से कम 10 दिनों में निकल आते हैं। जब यह रोग आक्रमक होता है तो रोगी के शरीर पर बहुत सारे दाने निकल आते है और इनके निकलने के 5-6 घण्टों के अन्दर ही इनमें पीब भर जाती है और दाने 1-2 दिनों में फफोलों की तरह त्वचा पर नज़र आने लग जाते हैं। यदि इस रोग का उपचार सही से किया जाए तो यह कुछ ही दिनों में ये ठीक हो जाते हैं।


मसूरिका रोग के लक्षण- जब रोगी को मसूरिका चेचक हो जाता है तो उसे बुखार हो जाता है, सिर में दर्द होने लगता है, उसकी आंखें पानी से भर आती हैं और उसे जुकाम हो जाता है। रोगी को रोशनी अच्छी नहीं लगती है, खांसी हो जाती है, छींके आने लगती हैं। मसूरिका रोग में रोगी के शरीर पर कम से कम 2 दिनों में दाने निकलने लगते हैं। इस रोग में दाने कभी-कभी बिना बुखार आए भी निकलने लगते हैं।


बड़ी माता - चेचक रोग में बड़ी माता से पीड़ित व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी होती है। इस चेचक के रोग को ठीक होने में कम से कम 20 से 30 दिनों का समय लग जाता है तथा इसके निशान त्वचा पर जीवन भर रहते हैं।


बड़ी माता के लक्षण- बड़ी माता चेचक के दाने बड़े-बड़े फफोलों के रूप में शरीर पर निकलने लगते हैं इसलिए इसको बड़ी माता कहते हैं। जब इसके दाने फूटते हैं तो उनमे से पानी निकलने लगता है और कभी-कभी उनमें पीब तथा मवाद भी पड़ जाती है तथा बदबू भी आने लगती है। इस चेचक के कारण रोगी की आंखों में फुल्ली पड़ जाती है या रोगी बहरा हो जाता है। इस चेचक के दाग गहरे होते हैं तथा जीवन भर नहीं मिटते हैं।

जिस व्यक्ति को चेचक के दाने निकलने को होते हैं, उस व्यक्ति की भूख मर जाती है, रोगी की जीभ का स्वाद बिगड़ जाता है, उसके शरीर में सुस्ती, कमजोरी और सिर में भारीपन होने लगता है। रोगी व्यक्ति को कब्ज रहने लगती है तथा उसकी रीढ़ की हड्डी में दर्द भी होने लगता है।


चेचक रोग होने का कारण: किसी भी तरह का चेचक रोग होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना है। यह एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को भी हो जाता है। यह रोग गन्दगी तथा गन्दे पदार्थों का सेवन करने से होता है।


चेचक रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-


चेचक रोग से पीड़ित रोगी को पूरे दिन में कई बार पके नारियल का पानी चेचक के दागों पर लगाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक उपचार करने से चेचक के दाग ठीक होने लगते हैं।

रोमान्तिका चेचक को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सफाई वाले स्थानों पर ही आराम करना चाहिए तथा उसे भोजन में दूध और फलों का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को कब्ज हो तो उसे एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

मसूरिका चेचक के रोग में रोगी व्यक्ति को छाया में आराम करना चाहिए तथा यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जहां पर आराम कर रहा है वह स्थान साफ-सुथरा तथा हवादार हो। रोगी व्यक्ति को अपनी आंखों को गुलाब जल या फिटकरी के पानी से दिन में 2-3 बार धोना चाहिए तथा इसके बाद पलकों को आपस में चिपकने से बचाने के लिए अच्छी किस्म की बैसलीन या शुद्ध घी का काजल लगाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए और अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। पानी में नींबू के रस को मिलाकर पीने से रोगी को बहुत फायदा मिलता है। जब तक बुखार न उतर जाए तब तक रोगी को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। जब बुखार ठीक हो जाए तब रोगी को फलों का रस पीना चाहिए। रोगी व्यक्ति को दोपहर के समय फल तथा सब्जियों का सेवन करना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को 3-4 दिनों बाद नाश्ते में 1 गिलास दूध तथा फलों का रस पीना चाहिए फिर सामान्य भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से मसूरिका चेचक जल्द ही ठीक हो जाता है।

यदि चेचक के दाग बहुत अधिक पुराने हो गए हो तो ये बहुत मुश्किल से ठीक होते हैं। जब चेचक के दाने सूखकर झड़ने लगें तो उन पर साफ गीली मिट्टी का लेप अच्छी तरह से कुछ दिनों तक लगातार लगाने से चेचक के दाग कुछ ही दिनों में दूर हो जाते हैं तथा रोगी का चेहरा भी साफ हो जाता है।

बड़ी माता के रोग को ठीक करने के लिए करेले की बेल, पत्ते तथा फल के 10 मिलीलीटर रस में 1 चम्मच शहद मिलकर रोगी व्यक्ति को दिन में 3 बार चटाने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

कच्चे करेले को काटकर पानी में उबाल लें। फिर उस पानी को गुनगुना ही दिन में कम से कम 3 बार रोगी को प्रतिदिन पिलाएं। इससे कुछ ही दिनों में बड़ी माता का रोग ठीक हो जाता हैं।

पानापोटी के 3-4 पत्ते और 7 कालीमिर्च के दानों को एक साथ पीसकर पानी में मिलाकर 3 दिनों तक रोगी को पिलाने से बड़ी माता  ठीक हो जाती है।

रुद्राक्ष को पानी में घिसकर चेचक के रोगी के घावों पर लगाने से उसकी जलन दूर होती है और घाव भी जल्दी ठीक होते हैं।

चेचक के रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों उपवास रखना चाहिए। उपवास के दौरान रोगी को पानी में नींबू का रस मिलाकर दिन में कम से कम 6 बार पीना चाहिए तथा गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके। रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम के समय में उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए।

चेचक के निशानों को दूर करने के लिए अंकोल का तेल, आटे और हल्दी को एक साथ मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर कुछ दिनों तक लगाने से चेचक के दाग चेहरे से दूर हो जाते हैं और चेहरा साफ हो जाता है।

बनफ्शा की जड़, कूट, जलाया हुआ बारहसिंगा, मुर्दासंग, अर्मनी का बुरादा तथा उशुक को 1-1 ग्राम लेकर मक्खन मिले दूध में पीसकर लेप बना लें। इस लेप को चेचक के निशानों पर कुछ दिनों तक प्रतिदिन लगाने से यह निशान कुछ दिनों में ही साफ हो जाते हैं।

हाथी के दांत का चूर्ण, अर्मनी का बुरादा और साबुन को आपस में मिलाकर लेप तैयार कर लें। इस लेप को रात को सोते समय चेहरे पर चेचक के निशानों पर लगाएं और सुबह के समय में उठने पर चेहरे को पानी से धो डालें। इस प्रकार से प्रतिदिन चेहरे पर लेप करने से कुछ ही दिनों में चेचक के दाग समाप्त हो जाते हैं और चेहरा बिल्कुल साफ और सुन्दर बन जाता है।


बाघी घाव Bubo

 परिचय: यह एक प्रकार का घाव है जो रोगी की जांघ और जननेन्द्रियों के बीच ऊपर की तरफ पुट्ठों में निकलता है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो सबसे पहले उसकी जननेन्द्रियों के पास सूजन हो जाती है, उसके बाद वहां एक कठोर सी गांठ बन जाती है। इन गांठों में कभी-कभी तो दर्द होता है और कभी-कभी दर्द नहीं होता है। यह दोनों ही प्रकार की होती है। बाघी घाव कभी पकता है तो कभी नहीं पकता है। बाघी घाव के कारण जब दर्द होता है तो वह बहुत तेज होता है और दर्द का असर पूरी जांघ तक होता है।


बाघी घाव होने का कारण-


1. बाघी घाव के होने का सबसे प्रमुख कारण अनियमित यौनक्रिया करना और कूदना तथा छलांग लगाना आदि है।


2. शरीर में दूषित मल उत्पन्न होने के कारण जब दूषित मल खून में फैल जाता है तो यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।


बाघी घाव होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


1. बाघी घाव से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में गर्म पानी से कटिस्नान करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को स्नान करते समय अपने सिर को ठंडे पानी से धोना चाहिए और मस्तिष्क पर ठंडे पानी से भीगा एक तौलिया रखना चाहिए।


2. रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करने के बाद 2 मिनट तक दुबारा ठंडे पानी से कटिस्नान करना चाहिए। इस क्रिया को दिन में 3 बार दोहराना चाहिए।


3. बाघी घाव का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति का बाघी घाव जब तक पक न जाए, तब तक उस पर प्रतिदिन 2-3 बार गुनगुना पानी छिड़कना चाहिए या फिर 10 मिनट तक दो से तीन बार कम से कम दो घण्टे तक बदल-बदल कर गर्म मिट्टी का लेप करना चाहिए या फिर कपड़े की गीली पट्टी करनी चाहिए। जब बाघी घाव पक जाए तो उसे फोड़कर पीब तथा जहरीले रक्त को बाहर निकाल देना चाहिए। इसके बाद नीम की पत्तियां पीसकर लेप बनाकर बाघी घाव पर लगानी चाहिए तथा कपड़े से पट्टी कर लेनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदन पट्टी करने से बाघी घाव कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


4. रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके तथा दूषित द्रव्य उसके शरीर से बाहर निकल सके।


5. नींबू के रस को पानी में मिलाकर, उस पानी से बाघी घाव को धोना चाहिए। इसके बाद बाघी घाव पर कपड़े की पट्टी कर लेनी चाहिए। जब बाघी घाव पीबयुक्त हो जाए तो उस पर कम से कम पांच मिनट तक गर्म पानी से भीगे कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। इसके बाद बाघी घाव को फोड़कर पीब तथा जहरीले रक्त को बाहर निकाल देना चाहिए और फिर इसके बाद ठंडे पानी में भीगे कपड़े से दिन में 3-4 बार सिंकाई करनी चाहिए। इससे बाघी घाव कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


6. जब बाघी घाव फूट जाए तो दिन में 2 बार उस पर हल्की भाप देकर बलुई मिट्टी की भीगी गर्म पट्टी या कपड़े की भीगी पट्टी बदल-बदलकर लगानी चाहिए। इसके बाद जब इस पट्टी को खोलें तो पट्टी को ठंडे पानी से धोकर खोलना चाहिए।


7. बाघी घाव को मक्खी आदि से बचाने के लिए उस पर नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए और इसके साथ-साथ इसका प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। ऐसा करने से बाघी घाव जल्दी ही ठीक हो जाता है।


8. रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में नीम की 4-5 पत्तियां चबाने से उसका बाघी घाव जल्दी ही ठीक हो जाता है।


अल्सर रोग Ulcer

 परिचय: पेट के श्लेष्मकला अस्तर जब क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तो उसके कारण अम्लों का जरूरत से ज्यादा स्राव होने लगता है जिसके कारण पेट में अल्सर रोग हो जाता हैं। श्लेष्मा झिल्ली के पेट में क्षतिग्रस्त होने पर गैस्ट्रिक अल्सर तथा डुओडेन क्षतिगस्त होने पर इसे डुओडेनल अल्सर कहते हैं।


अल्सर रोग का लक्षण :-


1. जब किसी व्यक्ति को अल्सर रोग हो जाता है तो रोगी के पेट में जलन तथा पेट में दर्द होने लगता है।


2. अल्सर रोग से पीड़ित व्यक्ति जब भोजन जल्दबाजी में करता है तो उसके कुछ देर बाद उसके पेट में दर्द होना बंद हो जाता है। कभी-कभी भोजन करने के बाद दर्द थोड़ा कम हो जाता है लेकिन फिर भी थोड़ा-थोड़ा दर्द होता रहता है।  


3. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी जब भोजन करने में जल्दबाजी में करता है या चिंता-फिक्र अधिक करता है या फिर चिकनाई युक्त भोजन करता है तो इस रोग की अवस्था और भी बिगड़ने लगती है।


अल्सर रोग होने का कारण :-  


खान-पान सम्बन्धित गलत आदतें तथा भोजन करने का समय सही न होने के कारण अल्सर रोग हो जाता है।

अधिक उत्तेजक पदार्थ युक्त भोजन, तेज मसालेदार भोजन, चाय तथा कॉफी सेवन करने से अल्सर रोग हो सकता है।

शराब पीने, ध्रूमपान करने या तंबाकू का सेवन करने के कारण भी अल्सर रोग हो सकता है।

शारीरिक, भावात्मक या मनोवैज्ञानिक तनाव होने के कारण भी अल्सर रोग व्यक्ति को हो सकता है।


अल्सर रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए तथा इसके बाद प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।

अल्सर रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को नियमित अंतराल पर ठंडा दूध पीना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले भोजन करने का समय बनाना चाहिए तथा इसके बाद उत्तेजक पदार्थ, मिर्च मसालेदार भोजन, मांसाहारी पदार्थ का सेवन करना छोड़ देना चाहिए क्योंकि इन पदार्थों का सेवन करने से रोग की अवस्था और भी गम्भीर हो सकती है।

अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में ठंडे पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके और कब्ज की शिकायत हो तो दूर हो सके। इस प्रकार से उपचार करने से अल्सर रोग ठीक हो जाता है।

अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट पर प्रतिदिन ठंडे कपड़े की लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।

अल्सर रोग को ठीक करने के लिए गैस्ट्रो-हैपेटिक लपेट का उपयोग करना चाहिए।

पेट पर मिट्टी का लेप करने से पेट से गैस बाहर निकल जाती है जिसके परिणामस्वरूप अल्सर रोग ठीक हो जाता है।

अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन ठंडे पानी से कटि-स्नान करना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

अल्सर रोग से पीड़ित रोगी के पेट में अधिक जलन हो रही हो तो उसके पेट पर तुरंत बर्फ की थैली का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार का उपचार करने से पेट में जलन होना तथा दर्द होना बंद हो जाता है।

अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को शारीरिक तथा मानसिक रूप से अधिक आराम करना चाहिए तथा प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।


खुजली Eczema

 परिचय: खुजली एक प्रकार का संक्रामक रोग है और यह रोग त्वचा के किसी भी भाग में हो सकता है। यह रोग अधिकतर हाथों और पैरों की उंगुलियों के जोड़ों में होता है। खुजली दो प्रकार की होती है सूखी खुजली तथा तर या गीली खुजली।


खुजली होने का लक्षण: जब खुजली का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उस व्यक्ति की शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे दाने (फुंसियां) निकलने लगते हैं। इन दानों के कारण व्यक्ति की त्वचा पर बहुत अधिक जलन तथा खुजली होती है। जब रोगी व्यक्ति फुंसियों को खुजलाने लगता है तो वे फूटती हैं और उनमें से तरल दूषित द्रव निकलता है।


खुजली होने के कारण:-


खुजली होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना है। जब रक्त में दूषित द्रव्य मिल जाते हैं तो दूषित द्रव शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे दानों के रूप में निकलने लगते हैं।

शरीर की ठीक प्रकार से सफाई न करने के कारण भी खुजली हो जाती है।

पाचनतंत्र खराब होने के कारण भी खुजली रोग हो सकता है क्योंकि पाचनतंत्र सही से न काम करने के कारण शरीर के खून में दूषित द्रव्य फैलने लगते हैं जिसके कारण खुजली हो सकती है।

अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी खुजली हो सकती है।


खुजली होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


खुजली का उपचार करने के लिए कभी भी पारा तथा गन्धक आदि विषैली औषधियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनके प्रयोग से शरीर में और भी अनेक बीमारियां हो सकती हैं।

खुजली रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को 2-3 दिनों तक फलों और साग-सब्जियों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए।

उपवास रखने के समय रोगी व्यक्ति को गर्म पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके। इसके बाद रोगी को कम से कम 7 दिनों तक फलों का रस तथा साग-सब्जियों का सेवन करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सप्ताह में 1 बार भापस्नान लेना चाहिए और उसके बाद कटिस्नान करना चाहिए।

खुजली रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में सोने से पहले अपने पेडू पर गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए और सो जाना चाहिए। इसके बाद रोगी को सुबह के समय में कटिस्नान करना चाहिए।

खुजली रोग से पीड़ित रोगी को अधिक मात्रा में फल जैसे संतरा, सेब, अंगूर तथा सब्जियों में हरा चना, मूली, पालक का अधिक सेवन करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को चने के आटे की रोटी, शहद, कच्चा दूध, मट्ठा आदि चीजों का सेवन करना चाहिए।

नींबू के रस को पानी में मिलाकर प्रतिदिन दिन में कम से कम 5 बार पीना चाहिए।

खुजली रोग से पीड़ित रोगी को सुबह का नाश्ता नहीं खाना चाहिए केवल दिन में एक बार तथा शाम के समय में भोजन करना चाहिए तथा नमक बिल्कुल भी सेवन नहीं करना चाहिए।

खुजली रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में कम से कम 3 बार अपने पूरे शरीर पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए तथा धूप में बैठना चाहिए। जब लेप सूख जाए तब रोगी को एक टब में पानी भरकर उसमें 30 मिनट तक बैठकर स्नान करना चाहिए।

खुजली रोग से पीड़ित रोगी को खुली हवा में घूमना चाहिए तथा गहरी सांस लेनी चाहिए।

खुजली रोग से पीड़ित रोगी को हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा दिन में रोजाना 4 बार पीना चाहिए। इसके बाद अपने शरीर पर कम से कम दिन में आधे घण्टे तक नीले तथा हरे रंग का प्रकाश डालना चाहिए।

जब रोगी के शरीर में अधिक संख्या में खुजली की फुंसियां निकल रहीं हो तो रोगी व्यक्ति को 2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए और फलों का रस पीना चाहिए। दिन में गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए और इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिए। रोग को सप्ताह में एक बार खुजली वाली फुंसियों पर ठंडी पट्टी रखकर स्नान करना चाहिए तथा पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन 2 बार कटिस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए। रात के समय में रोगी को अपने पेट पर मिट्टी की गर्म पट्टी रखनी चाहिए। इसके अलावा रोगी को गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए तथा तौलिये से अपने शरीर को पोंछना चाहिए। रोगी को अपने शरीर की खुजली की फुन्सियों पर हरा प्रकाश तथा इसके बाद नीला प्रकाश भी देना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से खुजली की फुंसियां जल्दी ठीक हो जाती हैं।

खुजली की फुंसियों को मक्खी आदि से बचाने के लिए उन पर नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए और इसके साथ-साथ इसका प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। इसके फलस्वरूप खुजली की फुन्सियां जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।

रोगी को सुबह के समय में नीम की 4-5 पत्तियां चबानी चाहिए इससे उसकी खुजली की फुन्सियां जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।

खुजली से पीड़ित रोगी को पानी में नीम की पत्तियां डालकर उस पानी को उबालकर फिर पानी में से नीम की पत्तियों को निकालकर, पानी को गुनगुना करके प्रतिदिन दिन में उस पानी से 2 बार स्नान करने से खुजली जल्दी ही ठीक हो जाती है।


दाद Ringworm

 परिचय: यह एक प्रकार का चर्म रोग है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर की त्वचा पर छल्ले जैसे चकत्ते हो जाते हैं। दाद शरीर की त्वचा पर धब्बे के रूप में भी पाया जाता है। दाद व्यक्तियों की हथेलियों, एड़ियों, खोपड़ी, दाढ़ी तथा शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। दाद शरीर के जिस भाग पर होता है उस भाग पर खुजली मचती है और जब व्यक्ति इसे खुजलाने लगता है तो यह और भी फैलने लगता है।


दाद होने का कारण:-


दाद शरीर की त्वचा पर एक विशेष प्रकार के कीटाणु की उत्पत्ति के कारण होता है।

दाद रोग शरीर की ठीक प्रकार से सफाई न करने के कारण होता है।

शरीर का कोई अंग अधिक पानी में भीगने लगता है तो यह रोग उस व्यक्ति को हो जाता है।

दाद का रोग एक प्रकार का तेज संक्रामक रोग है। इसलिए जिस व्यक्ति को यह रोग हो गया हो, उसके तौलियों ब्रशों तथा और भी ऐसी चीजें जिन्हें वह व्यक्ति उपयोग करता है, उन चीजों को यदि कोई अन्य व्यक्ति उपयोग करता है तो यह रोग उस दूसरे व्यक्ति को भी हो जाता है।


दाद होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-


दाद रोग से पीड़ित रोगी को इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठंडी सिंकाई करके, उस पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इससे दाद जल्दी ही ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति के दाद वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए इसके फलस्वरूप दाद कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।

यदि दाद से बहुत अधिक दूषित द्रव्य निकल रहा हो तो दाद वाले भाग को गुनगुने पानी में कम से कम तीन बार डुबोना चाहिए और इसके बाद उस पर गर्म और ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन रात को सोने से पहले दाद वाले स्थान पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए और सप्ताह में कम से कम दो बार पूरे शरीर पर गीली चादर की लपेट लगानी चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन दिन में 2 बार कटिस्नान करना चाहिए और दो बार दाद पर भापस्नान देना चाहिए। इसके बाद गीली मिट्टी की गर्म पट्टी दाद पर करनी चाहिए इसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका दाद ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके, अपने पेट को साफ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को नींबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और भोजन सादा करना चाहिए।

दाद रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर प्रतिदिन कम से कम दो घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।

दाद रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल की 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीना चाहिए, इससे दाद का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।


एक्जिमा रोग Eczema

 परिचय: एक्जिमा रोग शरीर की त्वचा को प्रभावित करता है और यह एक बहुत ही कष्टदायक रोग है। यह रोग स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे शरीर में हो सकता है।


एक्जिमा रोग होने के लक्षण :


जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर पर जलन तथा खुजली होने लगती है। रात के समय इस रोग का प्रकोप और भी अधिक हो जाता है।

एक्जिमा रोग से प्रभावित भाग में से कभी-कभी पानी अधिक बहने लगता है और त्वचा भी सख्त होकर फटने लगती है। कभी-कभी तो त्वचा पर फुंसियां तथा छोटे-छोटे अनेक दाने निकल आते हैं।

एक्जिमा रोग खुश्क होता है जिसके कारण शरीर की त्वचा खुरदरी तथा मोटी हो जाती है और त्वचा पर खुजली अधिक तेज होने लगती है।


एक्जिमा रोग होने के कारण:-


एक्जिमा रोग अधिकतर गलत तरीके के खान-पान के कारण होता है। गलत खान-पान की वजह से शरीर में विजातीय द्रव्य बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं।

कब्ज रहने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।

दमा रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की औषधियां प्रयोग करने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।

शरीर के अन्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाना, एलर्जी, निष्कासन के कारण त्वचा निष्क्रिय हो जाती है जिसके कारण एक्जिमा रोग हो जाता है।

एक्जिमा रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


औषधियों के द्वारा एक्जिमा रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं हैं, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

एक्जिमा रोग में सबसे पहले रोगी व्यक्ति को गाजर का रस, सब्जी का सूप, पालक का रस तथा अन्य रसाहार या पानी पीकर 3-10 दिन तक उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और इसके बाद 2 सप्ताह तक साधारण भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से भोजन का सेवन करने की क्रिया उस समय तक दोहराते रहना चाहिए जब तक कि एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक न हो जाए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को फल, हरी सब्जी तथा सलाद पर्याप्त मात्रा में सेवन करना चाहिए तथा 2-3 लीटर पानी प्रतिदिन पीना चाहिए।

एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को नमक, चीनी, चाय, कॉफी, साफ्ट-ड्रिंक, शराब आदि पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में लगभग 15 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद पीड़ित रोगी को नीम की पत्ती के उबाले हुए पानी से स्नान करना चाहिए। इस पानी से रोगी को एनिमा क्रिया भी करनी चाहिए जिससे एक्जिमा रोग ठीक होने लगता है।

सुबह के समय में रोगी व्यक्ति को खुली हवा में धूप लेकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए तथा शरीर के एक्जिमा ग्रस्त भाग पर कम से कम 2-3 बार स्थानीय मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। जब रोगी के रोग ग्रस्त भाग पर अधिक तनाव या दर्द हो रहा हो तो उस भाग पर भाप तथा गर्म-ठंडा सेंक करना चाहिए।

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1-2 दिन भापस्नान तथा गीली चादर लपेट स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद रोगग्रस्त भाग की कपूर को नारियल के तेल में मिलाकर मालिश करनी चाहिए या फिर सूर्य की किरणों के द्वारा तैयार हरा तेल लगाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस उपचार के साथ-साथ सूर्यतप्त हरी बोतल का पानी भी पीना चाहिए।

नीम की पत्तियों को पीसकर फिर पानी में मिलाकर सुबह के समय में खाली पेट पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप एक्जिमा रोग धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सूत्रनेति, कुंजल तथा जलनेति करना भी ज्यादा लाभदायक है। इन क्रियाओं को करने के फलस्वरूप एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में उपचार करने के साथ-साथ हलासन, मत्स्यासन, धनुरासन, मण्डूकासन, पश्चिमोत्तानासन तथा जानुशीर्षसन क्रिया करनी चाहिए। इससे उसका एक्जिमा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, प्राणायाम क्रिया करना भी लाभदायक है। लेकिन इस क्रिया को करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार भी करना चाहिए तभी एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज कराने के साथ-साथ कुछ खाने पीने की चीजों जैसे- चाय, कॉफी तथा उत्तेजक पदार्थों का परहेज भी करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए हरे रंग की बोतल के सर्यूतप्त नारियल के तेल से पूरे शरीर की मालिश करनी चाहिए और धूप में बैठकर या लेटकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए। इससे एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 28 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 8 बार पीना चाहिए तथा रोगग्रस्त भाग पर हरे रंग का प्रकाश कम से कम 25 मिनट तक डालना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


मूत्रपथ संक्रमण Urinary Tract infection

 मूत्रपथ संक्रमण रोग के लक्षण-

इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को पेशाब करते समय दर्द तथा जलन होती है।

रोगी व्यक्ति को रात के समय में बार-बार पेशाब आता है।

रोगी व्यक्ति के पेशाब के साथ पीब तथा रक्तकण भी निकलने लगता है।

मूत्रपथ संक्रमण रोग से पीड़ित रोगी की कमर में दर्द तथा उल्टियां भी होने लगती है।

मूत्रपथ संक्रमण रोग हो जाने के कारण स्त्री रोगी को योनि रोग भी हो जाता है।

मूत्रपथ संक्रमण रोग होने के कारण-


जब कोई मनुष्य मूत्र के वेग को बार-बार रोकता है तो उसे यह रोग हो जाता है।

पुरुषग्रन्थि के अधिक बढ़ जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है।

मूत्रपथ संक्रमण रोग उन व्यक्तियों को भी हो जाता है जिन्हें गुर्दे का रोग होता है।

मधुमेह के रोगियों को भी मूत्रपथ संक्रमण रोग हो जाता है।

जननांग की ठीक तरह से सफाई न करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।


मूत्रपथ संक्रमण रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


इस रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को सबसे पहले 2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए। उपवास के समय रोगी व्यक्ति को अधिक मात्रा में फलों का रस पीना चाहिए।

मूत्रपथ संक्रमण रोग को ठीक करने के लिए रोगी को खीरे का रस, मूली का रस, पालक का रस तथा नारियल पानी को बराबर मात्रा में मिलाकर कुछ दिनों तक प्रतिदिन सेवन कराना चाहिए।

मूत्रपथ संक्रमण रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। इस रोग में कच्चे नारियल का पानी, जौ का पानी, हरे धनिया का पानी, मट्ठा तथा फटे दूध का सेवन करना भी लाभदायक होता है।

मूत्रपथ संक्रमण रोग से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक बिना पका हुआ भोजन खाना चाहिए तथा भोजन में नमक बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए।

काले तिल और शहद को मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से मूत्रपथ संक्रमण रोग कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।

प्रतिदिन तुलसी का सेवन करने से मूत्रपथ संक्रमण रोग ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को अपना पेट साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। रोगी को अपने पेड़ू पर गीली पट्टी करनी चाहिए तथा सोने से पहले कम से कम 15 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए।

मूत्रपथ संक्रमण रोग से पीड़ित रोगी को खुली हवा में टहलना चाहिए तथा गहरी सांस लेनी चाहिए।

मूत्रपथ संक्रमण रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद मूत्र त्याग जरूर करना चाहिए ताकि उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाएं।


मूत्राशय की पथरी Bladder Stone

 परिचय: इस रोग से पीड़ित रोगी के मूत्राशय में पथरी हो जाती है जिसके कारण से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी होती है।


मूत्राशय की पथरी के लक्षण-


इस रोग से पीड़ित रोगी दर्द के कारण चीखने-चिल्लाने लगता है।

मूत्राशय की पथरी से पीड़ित रोगी अपने लिंग और नाभि को हाथ से दबाए रखता है तथा पेशाब करने के समय में खांसने से वायु के साथ उसका मल भी निकल जाता है। रोगी का पेशाब बूंद-बूंद करके गिरता रहता है।

रोगी व्यक्ति के पेड़ू में अत्यंत जलन तथा दर्द होता है और उसमें सुई गड़ने जैसी पीड़ा होती है।

रोगी व्यक्ति के हृदय तथा गुर्दे में भी दर्द होता रहता है।


मूत्राशय की पथरी रोग होने के अनेक कारण हैं-

          मनुष्य के शरीर में रक्त का दूषित द्रव्य गुर्दों के द्वारा छनकर पेशाब के रूप में मूत्राशय में जमा होता रहता है जहां वह मूत्र की नलिकाओं के द्वारा शरीर से बाहर हो जाता है। जब शरीर या मूत्रयंत्रों में किसी प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाने के कारण उनकी कार्य प्रणाली में कोई गड़बड़ी हो जाती है तो मूत्राशय के अन्दर आया हुआ दूषित द्रव्य सूखकर पत्थर की तरह कठोर हो जाता है जिसे मूत्राशय की पथरी का रोग कहते हैं।


          जो पुरुष संभोग क्रिया के समय में अधिक आनन्द प्राप्त करने के लिए स्थानाच्युत या निकलते हुए वीर्य को रोक लेते हैं उन व्यक्तियों का वीर्य रास्ते में ही अटक कर रह जाता है और बाहर नहीं निकल पाता है। जब अटका हुए वीर्य वायु लिंग तथा फोतों के बीच में अर्थात मूत्राशय के मुंह पर आकर सूख जाता है तो वह वीर्य की पथरी कहलाता है।


मूत्राशय की पथरी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


मूत्राशय की पथरी रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने गुर्दे का उपचार करना चाहिए ताकि गुर्दे का कार्य मजबूत हो सके और मूत्राशय के कार्य में सुधार हो सके।

रोगी व्यक्ति को उचित भोजन करना चाहिए तथा शरीर की आंतरिक सफाई करनी चाहिए ताकि गुर्दे तथा मूत्राशय पर दबाव न पड़े और उनका कार्य ठीक तरीके से हो सके। ऐसा करने से पथरी का बनना रुक जाता है तथा इसके साथ ही पेट में दर्द या कई प्रकार के अन्य रोग भी नहीं होते हैं तथा शरीर के स्वास्थ्य में भी सुधार हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को 2-4 दिनों तक पानी में नींबू या संतरे का रस मिलाकर पीना चाहिए और उसके बाद 2-3 दिनों तक केवल रसदार खट्टे-मीठे फलों का सेवन करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करके पेट की सफाई करनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से रोगी के गुर्दों के कार्य में सुधार हो जाता है जिसके फलस्वरूप पथरी का बनना बंद हो जाता है।

मूत्राशय की पथरी रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में पानी में 1 नीबू का रस मिलाकर पीना चाहिए तथा इसके बाद नाश्ते में 250 मिलीलीटर दूध पीना चाहिए। फिर इसके बाद एक गिलास पानी में एक नींबू का रस मिलाकर दोपहर के समय में पीना चाहिए। रोगी व्यक्ति को दही और भाजी, सलाद तथा लाल चिउड़ा का फल खाना चाहिए तथा शाम के समय में फलों का रस पीना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को अपनी पाचनक्रिया को ठीक करने के लिए सुबह तथा शाम को टहलना चाहिए तथा हल्का व्यायाम भी नियमित रूप से करना चाहिए। इसके अलावा रोगी को 14 दिनों के बीच में एक बार उपवास रखना चाहिए। इससे रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

पथरी के रोग से पीड़ित रोगी को एक दिन में कम से कम 5-6 गिलास शुद्ध ताजा जल या फल का रस पीना चाहिए।

पथरी के रोग को ठीक करने के लिए नारियल, ताड़ और खजूर का ताजा मीठा रस, फलों और शाक-सब्जियों का रस, दूध, मखनियां, दही तथा मठा पीना लाभदायक होता है।

मूत्राशय की पथरी को ठीक करने के लिए और भी कई प्रकार के फल तथा औषधियां हैं जिनका सेवन करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है जो इस प्रकार हैं- तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी, मक्खन, गूलर, पका केला, चूड़ा, चावल, गेहूं का दलिया, कुलथी का पानी, शहद, किशमिश, पिण्ड खजूर, अंजीर, छुहारा, नारियल की गिरी, मूंगफली तथा बादाम आदि।

पथरी के रोग से पीड़ित रोगी को मांस, मछली, दाल, अण्डा, चीनी, नमक, पकवान, मिठाई, मिर्च-मसाले, आचार, चटनी, सिरका आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।


भगन्दर रोग Fistula

 परिचय: जब किसी व्यक्ति को यह रोग हो जाता है तो उसके गुदाद्वार के पास सूजन होकर फोड़ा बन जाता है जिसको भगन्दर कहते हैं। यह फोड़ा कुछ दिनों में फूट जाता है और उसमें से मवाद तथा दूषित रक्त निकलने लगता है। यह फोड़ा कभी-कभी बहुत चौड़ा तथा गहरा होता है। इस फोड़े के कारण रोगी व्यक्ति को गुदाद्वार के पास बहुत तेज दर्द होता है।


भगन्दर रोग के लक्षण: इस रोग से पीड़ित रोगी के मलद्वार के पास फोड़ा हो जाता है जिसके फूटने पर खून निकलने लगता है तथा रोगी को जलन और दर्द महसूस होता है।


भगन्दर रोग होने का कारण: भगन्दर रोग होने का सबसे प्रमुख कारण यह है कि जब किसी व्यक्ति के मलद्वार के पास कोई फोड़ा बन जाता है और उसमें जब कई मुंह बन जाते हैं और रोगी व्यक्ति इस फोड़े से छेड़छाड़ करता है तो उसे यह रोग हो जाता है। अधिक चटपटी चीजें खाने के कारण मलद्वार के पास फोड़ा हो जाता है जो आगे बढ़कर भगन्दर का रूप ले लेता है।


भगन्दर रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


भगन्दर रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम 2 सप्ताह तक उपवास रखना चाहिए। उपवास के समय में रोगी व्यक्ति को फलों का रस पीना चाहिए और गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ होकर कब्ज बनना रुक सके।

भगन्दर रोग से पीड़ित रोगी को पीले रंग की बोतल तथा हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त तेल बराबर मात्रा में मिला लेना चाहिए। इस तेल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 8 बार सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

भगन्दर रोग में रोगी व्यक्ति के गुदाद्वार के पास का फोड़ा जब तक पक न जाए तब तक उस पर प्रतिदिन 2-3 बार गुनगुना पानी छिड़कना चाहिए या फिर 10 मिनट तक 2-3 बार कम से कम 2 घण्टे तक बदल-बदल कर गर्म मिट्टी का लेप करना चाहिए। भगन्दर रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके तथा दूषित द्रव्य उसके शरीर से बाहर हो सके।

नींबू के रस को पानी में मिलाकर उस पानी से भगन्दर के फोड़े को धोना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।

भगन्दर के फोड़े पर प्रतिदिन हरा प्रकाश देकर नीला प्रकाश देना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर भगन्दर के फोड़े पर लगाने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

भगन्दर रोग से पीड़ित व्यक्ति को सुबह के समय में नीम की 4-5 पत्तियां चबानी चाहिए। इसके फलस्वरूप भगन्दर रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।


कंधों में दर्द Shoulder Pain

 परिचय: वैसे देखा जाए तो कंधों में आर्थराइटिस नहीं पाया जाता है। जब जोड़ों की सरंचना किसी कारण से प्रभावित होती है तो कंधे में दर्द होने लगता है। कंधे में दर्द होने के कारण रोगी व्यक्ति को चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है। कंधे सुन्न पड़ जाने की बीमारी 50 से 75 वर्ष की उम्र के स्त्री-पुरुषों में अधिक पाई जाती है। दर्द के कारण कंधा निष्क्रिय पड़ जाता है।


कंधे में दर्द होने का लक्षण: इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के कंधे में दर्द होता है तथा उसका कंधा सुन्न पड़ जाता है। रोगी को कंधे में अकड़न भी होने लगती है और जब दर्द तेज हो जाता है तो रोगी व्यक्ति को नींद भी नहीं आती है।


कंधे में दर्द होने का कारण: कंधे के जोड़ तथा इसकी संरचनाओं का तन्त्रिका वितरण मुख्य रूप में पांचवी ग्रीवा-मूल के माध्यम से होता है जो ग्रीवा-कशेरुका से निकलती है। यह कंधे की जड़ तथा ऊपरी बांह के ऊपर फैली हुई त्रिकोणिका मांसपेशी के क्षेत्र में निहित होती है इसलिए अधिकतर इसमें दर्द महसूस होता रहता है।


कंधे में दर्द होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार: कंधे के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सबसे पहले अपने कंधे की मालिश करानी चाहिए तथा गर्म व ठंडी सिंकाई करवानी चाहिए ताकि यदि कंधे के पास की रक्त कोशिकाओं में रक्त जम गया हो तो उस स्थान पर रक्त का संचारण हो सके। इसके फलस्वरूप कंधे का दर्द ठीक हो जाता है।

रोगी के कंधे के दर्द से प्रभावित भाग को सूर्य की किरणों के पास करके सिंकाई करनी चाहिए क्योंकि सूर्य की पराबैंगनी किरणों में दर्द को ठीक करने की शक्ति होती है। फिर रोगी व्यक्ति को कंधे पर ठंडी सिंकाई करनी चाहिए तथा इसके बाद उस पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप कंधे के दर्द का रोग ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को रात के समय में कम से कम 1 घण्टे तक ठंडा लेप कंधे पर करना चाहिए। इसके फलस्वरूप कंधे का दर्द तथा अकड़न ठीक हो जाती है।

इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में व्यायाम करने से लाभ होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को मांस, मछली तथा अन्य मांसाहारी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।


थाइराइड रोग Thyroid

 परिचय: जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसकी थाइराइड ग्रन्थि में वृद्धि हो जाती है जिसके कारण शरीर के कार्यकलापों में बहुत अधिक परिवर्तन आ जाता है। यह रोग स्त्रियों में अधिक होता है। यह रजोनिवृति के समय, शारीरिक तनाव, गर्भावस्था के समय, यौवन प्रवेश के समय बहुत अधिक प्रभाव डालता है।


थाइराइड रोग निम्न प्रकार का होता है-


थाइराइड का बढ़ना- इस रोग के होने पर थाइराइड ग्रन्थि द्वारा ज्यादा हारमोन्स स्राव होने लगता है।


थाइराइड के बढ़ने के लक्षण: इस रोग से पीड़ित रोगी का वजन कम होने लगता है, शरीर में अधिक कमजोरी होने लगती है, गर्मी सहन नहीं होती है, शरीर से अधिक पसीना आने लगता है, अंगुलियों में अधिक कंपकपी होने लगती है तथा घबराहट होने लगती है। इस रोग के कारण रोगी का हृदय बढ़ जाता है, रोगी व्यक्ति को पेशाब बार-बार आने लगता है, याददाश्त कमजोर होने लगती है, भूख नहीं लगती है तथा उच्च रक्तचाप का रोग हो जाता है। कई बार तो इस रोग के कारण रोगी के बाल भी झड़ने लगते हैं। इस रोग के हो जाने पर स्त्रियों के मासिकधर्म में गड़बड़ी होने लगती है।


थाइराइड का सिकुड़ना- इस रोग के हो जाने पर थाइराइड ग्रन्थि के द्वारा कम हारमोन बनने लगते हैं।


थाइराइड के सिकुड़ने का लक्षण: इस रोग के होने पर रोगी व्यक्ति का वजन बढ़ने लगता है तथा उसे सर्दी लगने लगती है। रोगी के पेट में कब्ज बनने लगती है, रोगी के बाल रुखे-सूखे हो जाते हैं। इसके अलावा रोगी की कमर में दर्द, नब्ज की गति धीमी हो जाना, जोड़ों में अकड़न तथा चेहरे पर सूजन हो जाना आदि लक्षण प्रकट हो जाते हैं।


घेँघा (गलगंड)- इस रोग के कारण थाइराइड ग्रन्थि में सूजन आ जाती है तथा यह सूजन गले पर हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के गले पर कभी-कभी यह सूजन नज़र नहीं आती है लेकिन त्वचा पर यह महसूस की जा सकती है।


घेघा (गलगंड) रोग होने के लक्षण:-


इस रोग से पीड़ित रोगी की एकाग्रता शक्ति (सोचने की शक्ति) कमजोर हो जाती है। रोगी को आलस्य आने लगता है तथा उसे उदासी भी हो जाती है। रोगी व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है, मानसिक संतुलन खो जाता है और वजन भी कम होने लगता है। किसी भी कार्य को करने में रोगी का मन नहीं करता है। धीरे-धीरे शरीर के भीतरी भागों में रुकावट आने लगती है।


थाइराइड रोग होने का कारण:-


यह रोग अधिकतर शरीर में आयोडीन की कमी के कारण होता है।

यह रोग उन व्यक्तियों को भी हो जाता है जो अधिकतर पका हुआ भोजन करते हैं तथा प्राकृतिक भोजन बिल्कुल नहीं करते हैं। प्राकृतिक भोजन करने से शरीर में आवश्यकतानुसार आयोडीन मिल जाता है लेकिन पका हुआ खाने में आयोडीन नष्ट हो जाता है।

मानसिक, भावनात्मक तनाव, गलत तरीके से खान-पान तथा दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

थाइराइड रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


थाइराइड रोगों का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का रस (नारियल पानी, पत्तागोभी, अनन्नास, संतरा, सेब, गाजर, चुकन्दर, तथा अंगूर का रस) पीना चाहिए तथा इसके बाद 3 दिन तक फल तथा तिल को दूध में डालकर पीना चाहिए। इसके बाद रोगी को सामान्य भोजन करना चाहिए जिसमें हरी सब्जियां, फल तथा सलाद और अंकुरित दाल अधिक मात्रा में हो। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कम से कम 1 वर्ष तक फल, सलाद, तथा अंकुरित भोजन का सेवन करना चाहिए।

सिंघाड़ा, मखाना तथा कमलगट्टे का सेवन करना भी लाभदायक होता है।

घेंघा रोग को ठीक करने के लिए रोगी को 2 दिन के लिए उपवास रखना चाहिए और उपवास के समय में केवल फलों का रस पीना चाहिए। रोगी को एनिमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए।

थाइराइड रोगों से पीड़ित रोगी को तली-भुनी चीजें, मैदा, चीनी, चाय, कॉफी, शराब, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

1 कप पालक के रस में 1 बड़ा चम्मच शहद मिलाकर फिर चुटकी भर जीरे का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन रात के समय में सोने से पहले सेवन करने से थाइराइड रोग ठीक हो जाता है।

कंठ के पास गांठों पर भापस्नान देकर दिन में 3 बार मिट्टी की पट्टी बांधनी चाहिए और रात के समय में गांठों पर हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए।

इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को उन चीजों का भोजन में अधिक प्रयोग करना चाहिए जिसमें आयोडीन की अधिक मात्रा हो।

1 गिलास पानी में 2 चम्मच साबुत धनिये को रात के समय में भिगोकर रख दें तथा सुबह के समय में इसे मसलकर उबाल लें। फिर जब पानी चौथाई भाग रह जाये तो खाली पेट इसे पी लें तथा गर्म पानी में नमक डालकर गरारे करें। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से थाइराइड रोग ठीक हो जाता है।

थाइराइड रोगों को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए और इसके बाद कटिस्नान करना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए ताकि थकावट न आ सके और रोगी व्यक्ति को पूरी नींद लेनी चाहिए। मानसिक, शारीरिक परेशानी तथा भावनात्मक तनाव यदि रोगी व्यक्ति को है तो उसे दूर करना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार कराना चाहिए।

अंत:स्रावी ग्रन्थियों को ठीक करने के लिए कई प्रकार की यौगिक क्रियाएं तथा योगासन हैं। जिनको प्रतिदिन करने से यह रोग ठीक हो जाता है। ये यौगिक क्रियाएं तथा योगासन इस प्रकार हैं- योगमुद्रासन, प्राणायाम, योगनिद्रा, शवासन, पवनमुक्तासन, सुप्तवज्रासन, मत्स्यासन आदि।


गर्दन में दर्द Cervical Spondylosis

 परिचय: हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी में कुल मिलाकर 33 कशेरुकाएं होती हैं जिसमें 7 कशेरुकाएं गर्दन से सम्बन्धित होती हैं। इन कशेरुकाओं को सरवाइकल वर्टिबा कहते हैं। इन कशेरुकाओं से निकली वातनाड़ियां मस्तिष्क, आंख, नाक, कान, माथा, मुंह, दांत, तालु, जीभ, थाइरायड ग्रंथि तथा कुहनियों का संचालन करती हैं। इसलिए यदि गर्दन में कोई रोग हो जाता है तो इसका प्रभाव शरीर के सभी अंगों पर भी पड़ता है।


गर्दन में दर्द होने के लक्षण- इस रोग के हो जाने पर गर्दन में अकड़न व दर्द होना शुरू हो जाता है। कुछ समय बाद गर्दन में धीरे-धीरे दर्द तथा अकड़न बढ़ती जाती है। इस रोग के कारण दर्द कभी कंधे व सिर व दोनों बाजुओं में शुरू हो जाता है। इस रोग के कारण रोगी की एक या दोनों बाजुओं में सुन्नता होने लगती है। जिसके कारण रोगी को सब्जी काटने या लिखने से कठिनाई महसूस होती है, सिर में चक्कर भी आने लगते हैं, हाथ पैरों की पकड़ कमजोर पड़ जाती है तथा गर्दन को इधर-उधर घुमाने में परेशानी होने लगती है। इस रोग के कारण रोगी को बेचैनी जैसी समस्याएं भी होने लगती हैं।


गर्दन में दर्द होने के कारण-


अपने भोजन में तली-भुनी, ठण्डी-बासी या मसालेदार पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण भी गर्दन में दर्द का रोग हो सकता है।

गर्दन में दर्द गलत तरीके से बैठने या खड़े रहने से भी हो जाता है जैसे-खड़े रहना या कूबड़ निकालकर बैठना।

भोजन में खनिज लवण तथा विटामिनों की कमी रहने के कारण भी गर्दन में दर्द की समस्या हो सकती है।

कब्ज बनने के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।

पाचनशक्ति में गड़बड़ी हो जाने के कारण गर्दन में दर्द का रोग हो सकता है।

अधिक चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, शोक या मानसिक तनाव की वजह से भी गर्दन में दर्द हो सकता है।

किसी दुर्घटना आदि में किसी प्रकार से गर्दन पर चोट लग जाने के कारण भी गर्दन में दर्द का रोग हो सकता है।

अधिक शारीरिक कार्य करने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।

मोटे गद्दे तथा नर्म गद्दे पर सोने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।

गर्दन का अधिक कार्यो में इस्तेमाल करने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।

अधिक देर तक झुककर कार्य करने से गर्दन में दर्द हो सकता है।

व्यायाम न करने के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।

अधिक दवाइयों का सेवन करने के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।

शारीरिक कार्य न करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

चिंता, क्रोध, मानसिक तनाव, ईर्ष्या तथा शोक आदि के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।

किसी दुर्घटना में गर्दन पर चोट लगने के कारण भी यह रोग हो सकता है।


गर्दन के दर्द को प्राकृतिक चिकित्सा से ठीक करने के लिए उपचार-


गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सबसे पहले रोगी के गलत खान-पान के तरीकों को दूर करना चाहिए और फिर रोगी का उपचार करना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा पौष्टिक भोजन करना चाहिए। रोगी को अपने भोजन में विटामिन `डी` लोहा, फास्फोरस तथा कैल्शियम का बहुत अधिक प्रयोग करना चाहिए ताकि हडि्डयों का विकास सही तरीके से हो सके और हडि्डयों में कोई रोग पैदा न हो सके।

शरीर में विटामिन `डी` लोहा, फास्फोरस तथा कैल्शियम मात्रा को बनाये रखने के लिए व्यक्ति को अपने भोजन में गाजर, नीबू, आंवला, मेथी, टमाटर, मूली आदि सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए। फलों में रोगी को संतरा, सेब, अंगूर, पपीता, मौसमी तथा चीकू का सेवन अधिक करना चाहिए।

गर्दन में दर्द से पीड़ित व्यक्ति को चोकरयुक्त रोटी व अंकुरित खाना देने से बहुत जल्दी लाभ होता है।

गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के ही एक भाग जल चिकित्सा का सहारा लिया जा सकता है। इस उपचार के द्वारा रोगी को स्टीमबाथ (भापस्नान) कराया जाता है और उसकी गर्दन पर गरम-पट्टी का सेंक करते है तथा इसके बाद रोगी को रीढ़ स्नान कराया जाता है जिसके फलस्वरूप रोगी की गर्दन का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस प्रकार से उपचार करने से रोगी के शरीर में रक्त-संचालन (खून का प्रवाह) बढ़ जाता है और रोमकूपों द्वारा विजातीय पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिसके फलस्वरूप रोगी की गर्दन का दर्द तथा अकड़न होना दूर हो जाती है।

गर्दन के दर्द तथा अकड़न को दूर करने के लिए सूर्य किरणों द्वारा बनाए गए लाल व नारंगी जल का उपयोग करने से रोगी को बहुत अधिक फायदा होता है। सूर्य की किरणों में हडि्डयों को मजबूत करने के लिए विटामिन `डी` होता है। सूर्य की किरणों से शरीर में विटामिन `डी` को लेने के लिए रोगी को पेट के बल खुले स्थान पर जहां पर सूर्य की किरणें पड़ रही हो उस स्थान पर लेटना चाहिए। ताकि सूर्य की किरणें सीधी उसकी गर्दन व रीढ़ की हड्डी पर पड़े। इस क्रिया को करते समय सिर पर कोई कपड़ा रख लेना चाहिए ताकि सिर पर छाया रहें।

गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी की गर्दन पर सरसों या तिल के तेल की मालिश करनी चाहिए। मालिश करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि मालिश हमेशा हल्के हाथों से करनी चाहिए। मालिश यदि सूर्य की रोशनी के सामने करें तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

योगासन के द्वारा भी गर्दन के दर्द तथा अकड़न को ठीक किया जा सकता है। योगासन द्वारा गर्दन के दर्द तथा अकड़न को ठीक करने के लिए सबसे पहले गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं और फिर धीरे-धीरे गर्दन को आगे की ओर झुकाएं। फिर ठोड़ी को कंठ कूप से लगाएं। इसके कुछ देर बाद गर्दन को दाएं से बाएं तथा फिर बाएं से दाएं हल्के झटके के साथ घुमाएं।

गर्दन के दर्द तथा अकड़न को दूर करने के लिए भुजंगासन, धनुरासन या फिर सर्पासन करना लाभकारी रहता है।

गर्दन के दर्द तथा अकड़न को ठीक करने के लिए प्राणायाम व ध्यान का अभ्यास करें।

गर्दन के दर्द तथा अकड़न की समस्या को दूर करने के लिए रोजाना सुबह के समय में खुली ताजी हवा में घूमें।

गर्दन में दर्द होने पर इसका उपचार करने के लिए सबसे पहले गर्दन में दर्द होने के कारणों को दूर करना चाहिए।

योगाभ्यास तथा विशेष व्यायाम से गर्दन के दर्द से पूरी तरह छुटकारा मिल सकता है।

गर्दन के दर्द से पीड़ित रोगी को अपने कंधों को ऊपर से नीचे की ओर करना।

कंधों को सामने तथा पीछे की ओर गतिशील करना चाहिए इससे गर्दन का दर्द ठीक हो जाता है।

कंधों को घड़ी की दिशा में सीधी तथा उल्टी दिशा में घुमाना चाहिए जिससे गर्दन कां दर्द ठीक हो जाता है।

गर्दन से पीड़ित रोगी को अपनी उंगुलियों को गर्दन के पीछे आपस में फंसाना चाहिए और फिर फंसी उंगुलियों की तरफ दबाव देते हुए अपने कोहनी को आगे से पीछे की ओर गतिशील करना चाहिए जिसके फलस्वरूप गर्दन का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है।

गर्दन से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में विटामिन `डी´, लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस की अधिकता वाले खाद्य पदार्थों का अधिक उपयोग करना चाहिए।

संतरा, सेब, मौसमी, अंगूर तथा पपीता व चीकू का उपयोग भोजन में अधिक करना चाहिए।


गर्दन में दर्द तथा अकड़न से बचने के लिए कुछ सावधानियां-


सोने के लिए व्यक्ति को सख्त तख्त का ही प्रयोग करना चाहिए।

सोते समय गर्दन के नीचे तकिए का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

किसी भी कार्य को करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को तनी हुई और बिल्कुल सीधी रखनी चाहिए।

गर्दन के दर्द तथा अकड़न का उपचार करते समय अधिक सोच-विचार नहीं करना चाहिए।

गर्दन में दर्द तथा अकड़न की समस्या से बचने के लिए वह कार्य नहीं करना चाहिए जिससे गर्दन या आंखों पर अधिक बोझ या तनाव पड़े।

गर्दन में दर्द तथा अकड़न की समस्या से बचने के लिए प्रतिदिन 6 से 8 घण्टे की तनाव रहित नींद लेना बहुत ही जरूरी है।

गर्दन के दर्द तथा अकड़न से बचने के लिए यह ध्यान देना चाहिए कि यदि खड़े है तो तनकर खड़े हो तो अपनी पीठ सीधी रखनी चाहिए।

आगे की ओर झुककर किसी भी कार्य को नहीं करना चाहिए।


कण्ठमाला Tonsillitis

 परिचय: कण्ठमाला रोग से पीड़ित रोगी की गर्दन में गांठें हो जाती हैं जिसके कारण उसके शरीर में मल का विष अधिक बढ़ जाता है जिसकी सफाई होना बहुत बहुत आवश्यक है।


कण्ठमाला का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी को 2 दिन के लिए उपवास रखना चाहिए और उपवास के समय में केवल फलों का रस पीना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद रोगी को प्रतिदिन उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए।

कण्ठों के पास की गांठों पर भापस्नान देकर दिन में 3 बार मिट्टी की पट्टी बांधनी चाहिए और रात के समय में इन गांठों पर हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए।

यदि रोगी की गर्दन पर गांठ बननी शुरू हुई है तो तुलसी और अरण्डी की पत्ती बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर फिर उनमें थोड़ा-सा नमक मिलाकर गर्म-गर्म ही गांठ पर बांध देने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 2 भाग तथा लाल रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 1 भाग मिलाकर लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से तथा गांठों पर लगभग 10 मिनट तक नीला प्रकाश डालने और सप्ताह में 1-2 बार एप्सम साल्टबाथ (गर्म पानी में हल्का नमक डालकर, उस पानी से स्नान करना) भी करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस उपचार को करने के साथ-साथ व्यक्ति को शरीर और सांस की हल्की कसरत भी करनी चाहिए।


गले के रोग Throat Disease

 परिचय: गले में कोई रोग हो जाने के कारण व्यक्ति को बोलने तथा खाना खाने में बहुत परेशानी होती है। गले के रोग से पीड़ित रोगी के गले में रुकावट, भारीपन, ज्वर, सिर में दर्द, आवाज बैठना तथा भारीपन जैसी समस्याएं हो जाती हैं।


गले के रोग होने के कारण-


दूषित वायु तथा पानी को पीने से गले में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।

अधिक खट्टे, ठंडे तथा बासी खाद्य-पदार्थों के सेवन से गले के रोग हो सकते हैं।

मिर्च-मसालों का अधिक सेवन करने के कारण भी गले में अनेक रोग हो जाते हैं।

अधिक तैलीय पदार्थों का भोजन सेवन करने से गले में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।


गले के रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


गले के रोगों को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को 1-2 दिन फलों के रस को पीकर उपवास रखना चाहिए।

अनन्नास, सेब, अंजीर, शहतूत, मेथी, लहसुन तथा पपीता का सेवन अधिक करने से गले के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।

अंगूर का रस पीने से गला बैठने का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

यदि गले में खराश हो तो तुलसी और अदरक का रस शहद में मिलाकर चाटने से लाभ होता है।

यदि गला बैठा हो या सूज रहा हो तो पानी में नींबू निचोड़कर गरारा करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

मेथी के दानों को पानी में उबाल कर उस पानी से गरारा करने से मुंह के छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं।

गले के रोगों को ठीक करने के लिए मिट्टी की गर्म पट्टी गले के चारों तरफ लगाकर उपवास रखने तथा एनिमा लेने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

यदि भोजन को निगलते समय दर्द हो रहा हो तो सूर्यतप्त नीली बोतल के पानी से गरारा करने से भी रोगी को लाभ होता है।

गले के रोग को ठीक करने के लिए गले पर गर्म या ठंडा सेंक करना चाहिए। इसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक फायदा मिलता है।

गले में दर्द होने पर तुलसी का रस शहद में मिलाकर चाटने से गले में दर्द होना बंद हो जाता है।

अंजीर को पानी में उबालकर उस पानी से गरारा करने से गला बैठने का रोग ठीक हो जाता है।

त्रिफला का चूर्ण फांककर दूध में मिलाकर पीने से गले के कई रोग ठीक हो जाते हैं।

यदि गले में कोई रोग हो जाए तो अंगूठे और तर्जनी उंगली के भाग पर मालिश करने से गले का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

एक गिलास पानी में आधा चम्मच चाय की पत्ती उबालकर उस पानी से गरारा करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस क्रिया को दिन में 3-4 बार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस प्रकार से उपचार करने से गले में दर्द तथा सूजन भी ठीक हो जाती है।

एक चम्मच लहसुन के रस को एक गिलास पानी में डालकर उस पानी को उबाल लें। इस पानी से दिन में 3-4 बार गरारा करने से गले के रोगों में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

गले के रोगों को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन भी हैं जिन्हें करने से गले के रोग ठीक हो जाते हैं ये आसन इस प्रकार हैं- सूर्य नमस्कार तथा सिंहासन।


गला बैठना Hoarseness

 परिचय: इस रोग में रोगी का गला बैठ जाता है जिसके कारण रोगी को बोलने में परेशानी होने लगती है तथा जब व्यक्ति बोलता है तो उसकी आवाज साफ नहीं निकलती है तथा उसकी आवाज बैठी-बैठी सी लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्वर नली के स्नायुओं पर किसी प्रकार के अनावश्यक दबाव पड़ने के कारण वे निर्बल पड़ जाती हैं। इस रोग के कारण रोगी की आवाज भारी होने लगती है तथा गले में खुश्की हो जाती है और कभी-कभी रोगी को सूखी खांसी और सांस लेने में परेशानी होने लगती है।


गला बैठने के कारण :-  


अधिक गाना गाने, चीखने-चिल्लाने तथा जोर-जोर से भाषण देने से रोगी का गला बैठ जाता है।

ठंड लगने तथा सीलनयुक्त स्थान पर रहने के कारण गला बैठ सकता है।

ठंडी चीजों का भोजन में अधिक प्रयोग करने के कारण भी यह रोग सकता है।

शरीर के अन्दर किसी तरह का दूषित द्रव्य जमा हो जाने पर जब यह दूषित द्रव्य किसी तरह से हलक तक पहुंच जाता है तो गला बैठ जाता है।


गला बैठने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-


गला बैठने के रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी से लेप करना चाहिए तथा इसके बाद एनिमा क्रिया का प्रयोग करके पेट को साफ करना चाहिए।

गला बैठने के रोग से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम के समय में अपने गले के चारों तरफ गीले कपड़े या मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को अपने गले, छाती तथा कंधे पर बारी-बारी से गर्म या ठंडा सेंक करना चाहिए तथा इसके दूसरे दिन उष्णपाद स्नान (गर्म पानी से पैरों को धोना) करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को गर्म पानी में हल्का सा नमक मिलाकर उस पानी से गरारे करने चाहिए और सुबह तथा शाम के समय में एक-एक गिलास नमक मिला हुआ गर्म पानी पीना चाहिए।

गला बैठना रोग से पीड़ित रोगी को 1 सप्ताह तक चोकरयुक्त रोटी तथा उबली-सब्जी खानी चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को फल और दूध का अधिक सेवन करना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को पानी में नींबू का रस मिलाकर दिन में कई बार पीना चाहिए तथा इसके अलावा गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल कम से कम 25 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 6 बार पीना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।


बाल झड़ना Hair Fall

 परिचय: बाल सिर्फ चेहरे की सुन्दरता ही नहीं बढ़ाते बल्कि ये गर्मी और सर्दी से सिर की रक्षा भी करते हैं। बाल सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को शोषित करके विटामिन `ए` और `डी` को संरक्षित भी करते हैं तथा इसके साथ-ही साथ उष्णता, शीतलता, और तेज हवा से हमारे सिर की सुरक्षा भी करते हैं। जब यह बाल किसी कारण से झड़ने लगते हैं तो व्यक्ति की सुन्दरता बेकार लगने लगती हैं। इस रोग के कारण व्यक्ति के सिर के बाल झड़ने लगते हैं। जब रोगी व्यक्ति के बाल बहुत अधिक झड़ने लगते हैं तो वह गंजा सा दिखने लगता है।


बाल झड़ने का कारण:-


यह रोग व्यक्ति को अधिकतर तब होता है जब व्यक्ति के शरीर में विटामिन `बी´ एवं प्राकृतिक लवणों, लौह तत्व तथा आयोडीन की कमी हो जाती है।

कई प्रकार के लम्बे रोग जैसे- टायफाइड, उपदंश, जुकाम, नजला, साइनस तथा रक्तहीनता (खून की कमी) आदि रोग होने के कारण भी व्यक्ति के बाल झड़ने लगते हैं।

किसी प्रकार के आघात या बहुत अधिक चिंता करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को  हो जाता है।

सिर की ठीक तरीके से सफाई न करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।

शरीर में हार्मोन्स के असंतुलन के कारण भी व्यक्ति के बाल झड़ने लगते हैं।

सिर के रक्त संचारण में कमी आ जाने के कारण भी बाल झड़ने का रोग हो सकता है।

शैम्पू तथा साबुन आदि का अधिक मात्रा में उपयोग करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।

हेयर ड्रायर्स का अधिक प्रयोग करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।

अधिक मात्रा में दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।

कब्ज रहना, नींद न आना तथा अधिक दिमागी कार्य करने के कारण भी बाल झड़ने का रोग व्यक्ति को हो सकता है।

बालों को सही तरीके से पोषण न मिल पाने के कारण बाल कमजोर हो जाते हैं और झड़ने लगते हैं।

वात और पित्त कुपित जब होकर रोमछिद्रों में पहुंचते हैं तो बाल झड़ने लगते हैं।

अधिक मिर्च-मसाले तथा तली हुई चीजों का सेवन करने से बाल झड़ने लगते हैं।


बाल झड़ने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार- 


बालों के झड़ने के रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए और फिर इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।

इस रोग से बचने के लिए भोजन संतुलित तथा पौष्टिक करना चाहिए।

बाल झड़ने के रोग को ठीक करने के लिए सप्ताह में एक बार फलों का भोजन करना चाहिए।

बालों को झड़ने से रोकने के लिए पत्ता गोभी, अनन्नास तथा आंवला का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए।

बाल झड़ने से रोकने के लिए व्यक्ति को अपने भोजन में सब्जियां, सलाद, मौसम के अनुसार फल और अंकुरित अन्न का अधिक मात्रा में उपयोग करना चाहिए।

भोजन में आटे की रोटी, चावल, फल व हरी सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को पालक व गाजर के रस का अधिक सेवन करना चाहिए। इससे रोगी के बाल झड़ना बहुत जल्द ही रुक जाते हैं।

रोगी व्यक्ति को अपने सिर के पसीने को सूखने नहीं देना चाहिए।

बालों को झड़ने से रोकने के लिए आंवले का अपने भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए तथा आंवले के मुरब्बा का सेवन करना भी बहुत लाभदायक होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने सिर को दही से धोना चाहिए और फिर नारियल के दूध से खोपड़ी की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद सिर को धोना चाहिए और कुछ समय बाद बथुए के पानी से सिर को धोना चाहिए। ऐसा करने से रोगी के बाल झड़ना रुक जाते हैं।

इस रोग से पीड़ित रोगी को उंगुलियों से रात को सोने से पहले नित्य पांच मिनट तक सिर की मालिश करनी चाहिए तथा स्नान से पहले दस मिनट तक अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं।

रात में मेथी के बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए। सुबह उठने पर इन्हें पीसकर लेप जैसा बना लेना चाहिए और फिर इस लेप को बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी के बाल झड़ना रुक जाते हैं।

बाल झड़ने के रोग में बेरी के पत्तों को पीसकर इसमें नींबू का रस मिलाकर सिर पर लगाने से बाल दुबारा उगने लगते हैं।

ताजे धनिये का रस या गाजर का रस बालों की जड़ों में लगाने से रोगी व्यक्ति के बाल झड़ने बंद हो जाते हैं।

सिर में जिस जगह से बाल झड़ गये हैं उस जगह पर प्याज का रस लगाने से बाल दुबारा से उग आते हैं।

गाजर को पीसकर लेप बना लें। फिर इस लेप को सिर पर लगाये और दो घंटे के बाद धो दें। ऐसा प्रतिदिन करने से बाल झड़ने बंद हो जाते हैं।

गंजेपन को दूर करने के लिए रात को सोते समय नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर सिर की मालिश करनी चाहिए।

सूर्य तप्त नीली बोतल के तेल से सिर पर रोजाना मालिश करने से बाल गिरना रुक जाते हैं।

खाना खाने के बाद सिर को उंगलियों से खुजलाना चाहिए, इससे बाल झड़ना कुछ ही दिनों में रुक जाते हैं।

बाल झड़ने के रोग को ठीक करने के लिए रोजाना 2-3 बार लगभग पांच मिनट के लिए दोनों हाथों की उंगुलियों के नाखूनों को आपस में रगड़ना चाहिए।

सुबह सूर्योदय से पहले दैनिक कार्यों से निवृति के बाद स्नान करना चाहिए। इस प्रकार के स्नान से पेट, सिर और आंखों में गर्मी नहीं बढ़ती है। इसके फलस्वरूप बाल झड़ना रुक जाते हैं।

बालों को झड़ने से रोकने के लिए सप्ताह में कम से कम दो बार मुलतानी मिट्टी से बालों को धोना चाहिए।

इस रोग को ठीक करने के लिए खुली हवा में लंबी गहरी सांस लेनी चाहिए तथा कुछ व्यायाम भी करने चाहिए।

यदि किसी व्यक्ति को जुकाम, खांसी, तनाव, चिंता, प्रमेह आदि रोग हो गए हों तो उसे तुरंत ही इसका इलाज करना चाहिए क्योंकि ये बालों के झड़ने का कारण बन सकते हैं।

रोजाना रात को सोते समय 10 से 15 मिनट तक अपनी उंगलियों से बालों की जड़ों में सरसों या बादाम के तेल की हल्की-हल्की मालिश करनी चाहिए। ऐसा करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल घने तथा लम्बे होने लगते हैं।

आंवला, ब्राह्मी तथा भृंगराज को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में फूलने के लिए रखना चाहिए और सुबह के समय में इसको मसल कर लेप बना लेना चाहिए। इसके बाद इस लेप को 15 मिनट तक बालों में लगाएं। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल कुदरती काले हो जाते हैं।

रात को तांबे के बर्तन में पानी भरकर रखें। सुबह के समय उठते ही इस पानी को पी लें। इसके साथ ही आधा चम्मच आंवले के चूर्ण का सेवन भी करें। इससे कुछ ही समय में बालों के झड़ने का रोग ठीक हो जाता है।

गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को एक साथ पीसकर थोड़े से पानी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को सप्ताह में कम से कम दो बार आधे घण्टे के लिए बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल सफेद भी नहीं होते हैं।

लगभग 80 मिलीलीटर चुकन्दर के पत्तों के रस को सरसों के 150 मिलीलीटर तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पत्तों का रस सूख जाए तो इसे आग पर से उतार लें और ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन सिर की मालिश करने से बाल झड़ने रुक जाते हैं तथा बाल समय से पहले सफेद भी नहीं होते हैं।

कलौंजी को पीसकर पानी में मिला लें। इस पानी से सिर को कुछ दिनों तक धोने से बाल झडना बंद हो जाते हैं तथा बाल घने भी होना शुरु हो जाते हैं।

नीम की पत्तियों और आंवले के चूर्ण को पानी में डालकर उबाल लें और सप्ताह में कम से कम एक बार इस पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने से कुछ ही समय में बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।

बाल झड़ने से रोकने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन हैं जिनको करने से बाल झड़ने कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं। ये आसन इस प्रकार हैं- शवासन, सर्वांगासन, योगनिद्रा, मत्स्यासन, विपरीतकरणी मुद्रा तथा शरीर के अन्य उलटने-पलटने का आसन। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से रोगी के बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है।

इस रोग का उपचार करते समय प्राकृतिक चिकित्सा के सुझावों पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए और फिर इसका उपचार करना चाहिए।

जिस दिन आप प्राकृतिक चिकित्सा से इस रोग का उपचार कर रहे हों उस दिन कोई भी साबुन या शैम्पू का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।


बालों का सफेद होना Hair Greying

 परिचय: वैसे देखा जाए तो बढ़ती उम्र के साथ-साथ बालों का सफेद होना आम बात है, लेकिन समय से पहले बालों का सफेद हो जाना एक प्रकार का रोग है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके बाल दिनों दिन सफेद होने लगते हैं। बालों का सफेद होना एक चिंता का विषय है और विशेषकर महिलाओं के लिए। यदि बाल समय से पहले सफेद हो जाते हैं तो व्यक्ति की चेहरे की सुन्दरता अच्छी नहीं लगती है। इसलिए बालों के सफेद होने पर इसका इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।


बालों के सफेद होने का कारण:-


1. असंतुलित भोजन तथा भोजन में विटामिन `बी´, लोहतत्व, तांबा और आयोडीन की कमी होने के कारण बाल सफेद हो जाते हैं।  


2. मानसिक चिंता करने के कारण भी बाल सफेद होने लगते हैं।  


3. सिर की सही तरीके से सफाई न करने के कारण भी व्यक्ति के बाल सफेद होने लगते हैं।


4. कई प्रकार के रोग जैसे- साईनस, पुरानी कब्ज, रक्त का सही संचारण न होना आदि के कारण बाल सफेद हो सकते हैं।


5. रसायनयुक्त शैम्पू, साबुन, तेलों का उपयोग करने के कारण भी बाल सफेद हो सकते हैं।


6. अच्छी या पूरी नींद न लेने के कारण भी बाल सफेद हो सकते हैं।


7. बालों को सही तरीके से पोषण न मिलने के कारण भी ये सफेद हो जाते हैं।


8. अधिक क्रोध, चिंता और श्रम करने पर उत्पन्न हुई गर्मी और पित्त सिर की नाड़ियों तक पहुंचकर बालों को रूखा-सूखा तथा सफेद कर देती हैं।


9. अनियमित खान-पान तथा दूषित आचार-विचार के कारण भी बाल सफेद हो जाते हैं।


बालों के सफेद होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


1. इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को संतुलित भोजन, फल, सलाद, अकुंरित भोजन, हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए।


2. रोगी को गाजर, पालक, आंवले का रस अधिक मात्रा में पीना चाहिए।


3. रोगी व्यक्ति को काले तिल तथा सोयाबीन का दूध पीना चाहिए।


4. इस रोग से बचने के लिए व्यक्ति को बादाम तथा अखरोट का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए।


5. गाय का घी खाने में प्रयोग करने से व्यक्ति के बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं तथा सफेद बालों की समस्या भी दूर हो जाती है।


6. आंवला, ब्राह्मी तथा भृंगराज को आपस में मिलाकर पीस लें। फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में फूलने के लिए रख दें। सुबह के समय इसको मसलकर लेप बना लें फिर इसके बाद 15 मिनट तक इसे बालों में लगाएं। इस प्रकार से उपचार सप्ताह में 2 बार करने से बाल सफेद होना बंद होकर कुदरती काले हो जाते हैं।


7. गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को एकसाथ पीसकर थोड़े से पानी में मिलाकर लेप बना लें। फिर इस लेप को अपने बालों पर सप्ताह में कम से कम दो बार आधे घण्टे के लिए लगाएं। ऐसा करने से सफेद बाल काले होने लगते हैं।


8. चुकन्दर के पत्तों का लगभग 80 मिलीलीटर रस सरसों के 150 मिलीलीटर तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। फिर जब पत्तों का रस सूख जाए, तो आग पर से उतार लें। फिर इसे ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन सिर की मालिश करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं और समय से पहले सफेद नहीं होते हैं। इससे बालों की कई प्रकार की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।


9. बादाम के तेल तथा आंवले के रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इस तेल से रात को सोते समय सिर की मालिश करने से बाल सफेद होना बंद हो जाते हैं।


10. रात के समय तुलसी के पत्तों को पीसकर और इसमें आंवले का चूर्ण मिलाकर पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह के समय में इस पानी को छानकर इससे सिर को धो लें। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में सफेद बाल काले हो जाते हैं।


11. आंवले के चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर बालों में लगाने से बाल काले, घने तथा मजबूत हो जाते हैं।


12. बाल सफेद होने पर सूर्यतप्त आसमानी तेल से सिर की मालिश करने से बाल सफेद होना बंद हो जाते हैं।


13. बालों को सफेद होने से रोकने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को मानसिक दबाव तथा चिंता को दूर करना चाहिए और फिर इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।


14. कई प्रकार के योगासन (सर्वांगासन, मत्स्यासन, शवासन तथा योगनिद्रा) प्रतिदिन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसके बाल सफेद होना रुक जाते हैं।


15. भोजन करने के बाद खोपड़ी को खुजलाते हुए कंघी करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।


बालों को झड़ने तथा सफेद होने से बचाने के लिए कुछ चमत्कारी बालों का तेल बनाने का तरीका-


1. सबसे पहले एक लोहे का बर्तन ले लें। इसके बाद इसमें 1 लीटर नारियल का तेल, 100 ग्राम आंवला, रीठा, शिकाकाई पाउडर, 1 बड़ा चम्मच मेंहदी, 2 चम्मच रत्नजोत पाउडर को एकसाथ मिलाकर सूर्य की रोशनी में कम से कम एक सप्ताह तक रखें। फिर इसके बाद इसे धीमी आग पर उबालें तथा उबलने के बाद इसको छानकर इसमें नींबू का रस तथा कपूर मिलाकर बोतल में भर कर रख दें। इसके बाद प्रतिदिन इस तेल को बालों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लम्बे घने और काले हो जाते हैं।


2. आधा किलो सूखे आंवले को कूटकर साफ कर लें तथा इसके बाद मुलैठी को कूटकर आपस में मिला लें। फिर इसमें आठ गुना पानी मिलाकर किसी बर्तन में इसे फूलने के लिए छोड़ दें। फिर सुबह के समय में इसे धीमी आग पर उबालने के लिए रख दें। इस मिश्रण को तब तक गर्म करना चाहिए, जब तक कि इसका पानी आधा न रह जाए। फिर इसे आग पर से उतार लें और इसे अच्छी तरह से मिलाकर छान लें। इसके बाद फिर से इस मिश्रण को तेल में मिलाकर आग पर गर्म करें तथा इसे तब तक गर्म करें जब तक कि इसका सारा पानी जल न जाये। इसके बाद इसे आग से उतार लें और इसमें इच्छानुसर सुगन्ध तथा रंग मिलाकर किसी बोतल में भर लें। इसके बाद प्रतिदिन इस तेल को बालों पर लगाएं। इस तेल को लगाने से सिर का दर्द, बालों का सफेद होना, बालों का झड़ना रुक जाता है तथा रोज इसके उपयोग से बाल लम्बे, घने तथा काले हो जाते हैं। इस तेल से सिर की खुश्की भी दूर हो जाती है।


3. 250 ग्राम घिया (लौकी) को लेकर अच्छी तरह से पीस लें और फिर इसे महीन कपड़े से छानकर इसका सारा पानी बाहर निकाल लें। इसके बाद इसमें 250 मिलीलीटर नारियल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब तक तेल थोड़ा गर्म न हो जाए तब तक इसमें लौकी का निकाला हुआ पानी धीरे-धीरे डालते रहें और इसे उबलने दें। जब सारा पानी जल जाए तब इसको आग पर से उतार लें। इस तेल को ठंडा करके बोतल में भर दीजिए।


          इस तेल को प्रतिदिन बालों पर लगाने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं। इस तेल के उपयोग से सिर को ठंडक मिलती है। इस तेल को रोजाना इस्तेमाल करने से व्यक्ति की याद्दाश्त तेज होती है। पैर के तलवों में जलन होने पर इस तेल से पैर के तलवों की मालिश करने से बहुत आराम मिलता है। इस प्रकार से रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से रोगी के बालों से सम्बन्धित सारे रोग ठीक हो जाते हैं।


रूसी Dandruff

 परिचय: रूसी सिर में मरी हुई त्वचा के कण होते हैं, जो नई त्वचा के आने से हटते रहते हैं। इन्हीं कणों को रूसी कहते हैं। यह रोग स्त्री और पुरुष दोनों में ही पाया जाता है। ज्यादातर लोगों को यह पता नहीं होता कि उनके बालों में होने वाली रूसी तैलीय है या रूखी। रूखी रूसी के कण बहुत ही छोटे होते हैं, जो सिर की त्वचा से चिपके या बालों में फैले रहते हैं। ऐसी रूसी में बहुत खुजली होती है। जबकि तैलीय रूसी छोटे कणों के साथ सीबम से मिली होती है। कई बार रूसी ज्यादा हो जाने से बालों का गिरना भी शुरू हो जाता है।

    रूसी बालों की सबसे बड़ी दुश्मन है। इसके कारण बाल अपना आकर्षण खो देते हैं। इस रोग के कारण सिर पर खुश्की होकर सफेद-सफेद रूसी बालों में हो जाती है। जब बालों में ब्रश या कंघा करते हैं या बालों को रगड़ते हैं तो यह बालों से निकलकर बाहर गिरने लगती है। यह खोपड़ी पर दाने या पपड़ी के रूप में भी निकल सकती है। यदि इन्हें बालों से बाहर न निकाला जाए तो यह वहां के रोमकूपों को बंद कर देती है। अगर बालों को साफ न रखा जाए तो उनमें रूसी पैदा हो सकती है और यह फैलने वाली होती है। इसलिए अपने कंघे, ब्रश, साबुन और तौलिए को अलग रखना चाहिए। बालों को सप्ताह में जितनी बार ज्यादा से ज्यादा हो धोना चाहिए।


रूसी होने का कारण:-


यह शरीर में दूषित द्रव्य के जमा हो जाने तथा गलत तरीके के खान-पान और दूषित भोजन का सेवन करने के कारण होती है।

सिर की ठीक तरीके से सफाई न करने के कारण भी सिर में रूसी हो सकती है।

जिस व्यक्ति के बालों में रूसी हो उसके द्वारा इस्तेमाल किये गये कंघी, तौलिये, ब्रश आदि दूसरे व्यक्तियों को इस्तेमाल नहीं करने चाहिए नहीं तो दूसरे व्यक्ति के बालों में भी रूसी हो सकती है।

शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (रोगों से लड़ने की शक्ति) कम होने के कारण तथा भावनात्मक तनाव के कारण भी हो रूसी का रोग हो सकता है।


बालों से रूसी को खत्म करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


पानी में नींबू का रस मिलाकर 1 सप्ताह तक प्रतिदिन बालों की जड़ों में अंगुलियों से अच्छी तरह से मसल लें। फिर थोड़ी देर बाद बालों को धो दें। इससे बालों में से रूसी खत्म हो जाती है।

3 भाग जैतून के तेल में 1 भाग शहद घोल लें। इस मिश्रण को सिर और बालों पर लगाकर सिर पर गर्म तौलिया लपेट लें। इसके बाद सिर को अच्छी तरह से धोने से बालों की रूसी खत्म हो जाती है।

नारियल के तेल में चार प्रतिशत कपूर मिलाकर रख लें। फिर अपने बालों को अच्छी तरह से धोकर बालों को सुखा लें। इसके बाद इस तेल को बालों में लगाकर सिर की अच्छी तरह से मालिश करें। इससे रूसी खत्म हो जाती है।

आंवला, शिकाकाई तथा रीठा को एक साथ पानी में भिगोकर उस पानी से सिर को धोयें। इस क्रिया को 2-3 दिन तक करने से बालों में से रूसी खत्म हो जाती है।

रोजाना जैतून के गुनगुने तेल से सिर की मालिश करें। फिर गर्म पानी में तौलिया भिगोकर अच्छी तरह से निचोड़कर पूरे सिर में बांध लें। इससे तेल और भाप बालों की जड़ों तक पहुंच जाता है। 3 घंटे के बाद गुनगुने पानी से बालों को अच्छी तरह से धोने से बालों मे से सारा शैंपू निकल जाता है।

दही या मट्ठे से सिर धोने से भी लाभ होता है।

सरसों के तेल में नींबू मिलाकर या सिरके में बहुत सारा पानी मिलाकर बालों की जड़ों में लगाकर लगभग 2 घंटे के बाद सिर को धोएं। इससे बालों में से रूसी कम हो जाती है।

बालों में रूसी होने पर प्रतिदिन सुबह के समय में अपने सिर की सूखी मालिश करने से बालों में से रूसी खत्म हो जाती है।

दही में थोड़े से सरसो के तेल को मिलाकर प्रतिदिन इस दही को सिर पर कुछ समय के लिए लगाकर फिर बालों को अच्छी तरह से धोने से रूसी खत्म हो जाती है।

रोजाना आधे घंटे तक सिर पर दही की मालिश करके सिर को धोने से रूसी खत्म हो जाती है।

मेथी के बीजों को रात के समय में पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह के समय में इसे पीसकर लेप बनाकर सिर पर लगाएं और आधे घंटे के बाद सिर को धो लें।

बालों को ब्रश, शैंपू और कंघी से साफ-सुथरा रखें। संतुलित तथा सही से पचने वाला भोजन लें। पूरे सप्ताह में 2 बार गर्म तेल से सिर की मालिश करनी चाहिए।

रोजाना रोजमेरी के काढ़े से सिर की मालिश करने से लाभ मिलता है।

गर्म पानी में 1 नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाकर फिर सिर को धोने से रूसी में लाभ होता है। बालों को धोने से पहले सिर की त्वचा में तेल की मालिश के बाद गर्म या ठंडे पानी में भीगा हुआ तौलिया लपेट लें। इससे त्वचा के रोम-छिद्र खुल जाते हैं, खून का बहाव तेज होता है और रूसी भी दूर होती है।

सुबह के समय में जब धूप निकल जाए तब कम से कम आधे घंटे तक सूर्य का प्रकाश अपने सिर पर लगने दें। इसके बाद मुलतानी मिट्टी का लेप बनाकर सिर पर लगा लें और कुछ देर बाद सिर को धो लें इससे रूसी खत्म हो जाती है।

1 अंडे की सफेदी और 1 नींबू के रस को मिलाकर सिर पर आधे घंटे के लिए लगाएं। फिर इसे सादे पानी से धो लें। अंत में सिरका सादे पानी में मिलाकर बालों को धोने से लाभ मिलता है।

सूर्यतप्त नीले तेल की मालिश सिर पर कुछ दिनों तक करने से रूसी खत्म हो जाती है।

शरीर में से दूषित द्रव्यों को बाहर करने के लिए व्यक्ति को सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए तथा पत्ता गोभी का रस, पालक का रस, अन्ननास का रस सेवन करना चाहिए। एक सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। इसके बाद सामान्य भोजन करना चाहिए और भोजन में फल, अंकुरित दालें तथा सलाद अधिक लेने चाहिए।

चाय, मिर्च-मसालेदार, कॉफी, रिफाइंड वाले पदार्थ तथा मैदा से बनी चीजों का सेवन न करें। पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया की आवश्यकता पड़े तो यह क्रिया जरूर करनी चाहिए।


सिर में जुएं Head Lice

 परिचय: इस रोग के हो जाने पर रोगी के सिर में अनेक जुएं हो जाती हैं। सिर में जुएं होने के कारण व्यक्ति को और भी कई रोग हो जाते हैं इसलिए सिर की जुओं को खत्म करना बहुत जरूरी है।

सिर की जुओं को खत्म करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


सिर की जुओं को खत्म करने के लिए सिर में अच्छी तरह सफाई रखनी चाहिए। इसके बाद 1 भाग लाल बोतल के सूर्यतप्त जल और 2 भाग हरी बोतल के सूर्यतप्त तेल को आपस में मिलाकर, इस तेल से सिर की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद 25 ग्राम हल्की नीली बोतल का सूर्यतप्त जल लेकर प्रतिदिन 6 बार बालों पर लगाना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से सिर की जुएं समाप्त हो जाती हैं।


जानकारी- सिर की जुओं को खत्म करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने पेट को साफ रखना चाहिए और सदैव सादा भोजन खाना चाहिए।


सिर की खुश्की Dryness in Scalp

 परिचय: इस रोग के कारण सिर में रूसी हो जाती है जिसके कारण सिर में खुजली होने लगती है।


सिर में खुश्की होने का कारण- सिर की सही तरीके से सफाई न करने के कारण सिर में गंदगी भर जाती है जिसके कारण सिर में खुश्की पैदा हो जाती है।


सिर में खुश्की होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को आपस में पीसकर इसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को सप्ताह में कम से कम 2 बार आधे घण्टे के लिए सिर पर लगाना चाहिए ऐसा करने से बालों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं तथा सिर की खुश्की भी खत्म हो जाती है।

सिर की खुश्की को दूर करने के लिए चुकन्दर के पत्तों का लगभग 80 मिलीलीटर रस सरसों के 150 मिलीलीटर तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पत्तों का रस सूख जाए तो इसे आग पर से उतार लें और ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन मालिश करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

सिर की खुश्की को दूर करने के लिए आंवले के चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर सिर में लगाना चाहिए।

सिर की खुश्की तथा बालों के कई प्रकार के रोगों को दूर करने के लिए कई प्रकार के योगासन है जो इस प्रकार हैं- (सर्वांगासन, मत्स्यासन, शवासन तथा योगनिद्रा)

सिर की खुश्की को दूर करने के लिए 1 लीटर पानी में 1 चम्मच चोकर तथा साबूदाना मिलाकर कुछ देर तक उबालना चाहिए। इसके बाद इस पानी को ठंडा करके दिन में 2 बार सिर को अच्छी तरह से धोना चाहिए। इसके बाद गहरे रंग की बोतल के सूर्यतप्त तेल से सिर की मालिश करने से सिर की खुश्की दूर हो जाती है।

सिर की खुश्की को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने पेट की सफाई करनी चाहिए और इसके बाद इस रोग का उपचार करना चाहिए।

सिर की खुश्की से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक चोकर युक्त आटे की रोटी, सब्जी, सलाद तथा फल और दूध का सेवन करके अपने शरीर के खून को शुद्ध करना चाहिए और इसके बाद इस रोग का उपचार करना चाहिए।


जीर्णातिसार Chronic Diarrhea

 परिचय: जीर्णातिसार को साधारण भाषा में पुराने दस्त भी कहते हैं। यह रोग जीवाणुओं से फैलता है। इस रोग को दूर करने के लिए पहले जीवाणुओं को नष्ट करने वाला उपचार करना चाहिए। जीवाणु नष्ट होने से यह रोग अपने आप समाप्त हो जाता है। जीर्णातिसार रोगी के पेट में दर्द होता है और छूने से दर्द बढ़ जाता है।


जल चिकित्सा द्वारा रोगों का उपचार- जीर्णातिसार रोग को दूर करने के लिए आसानी से हजम न होने वाले भोजन का सेवन बन्द कर देना चाहिए। इस रोग में शुद्ध व स्वच्छ भोजन करें तथा क्षारीय आहार रस आदि का ही सेवन करें। इससे जीवाणु की उत्पत्ति समाप्त हो जाती है। इसके साथ ही रोग को दूर करने के लिए गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करें। इससे पेट में मौजूद श्लेष्मा और कीटाणु बाहर निकल जाते हैं। एनिमा क्रिया करने पर रोगी में कमजोरी उत्पन्न होती है अत: इस रोग में एनिमा लेने के बाद आराम से बिस्तर पर लेटे रहना चाहिए। जितनी बार भी शौच के लिए जाए, उतनी बार 95 फारेनहाइट पानी से एनिमा क्रिया करें। गर्म पानी का एनिमा लेने के बाद कुछ देर रूककर ठंडे पानी का एनिमा क्रिया करें।


जीर्णातिसार रोग में प्रतिदिन एनिमा क्रिया करने से आंतों की सफाई करने के बाद 250 ग्राम ठंडे पानी का एनिमा लें। यदि चाहो तो इस पानी में दही या मट्ठा भी मिलाकर एनिमा ले सकते हैं। अतिसार के समाप्त होने पर कमजोरी और शरीर के दूषित तत्वों का निकालने के लिए वाष्पस्नान करें और बाद में ठंडे पानी का समस्नान कुछ देर करें।


सावधानी- जीर्णातिसार में ठंडे रस, गर्म पट्टी या अधिक देर तक सेंक देना हानिकारक है। इस रोग के खत्म हो जाने पर भोजन आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए।


मन्दाग्नि Dyspepsia

 परिचय: हमारे द्वारा किया जाने वाला भोजन जब आमाशय में जाता है तो वह वहां जाकर आमाशय की अग्नि द्वारा ही पकता है। भोजन को जो अन्दर पचाकर रस बनाता है उसे जठराग्नि कहते हैं। शरीर में भोजन इसी के द्वारा पचता है परन्तु जब जठराग्नि कमजोर हो जाती है और भोजन को पचाने में असमर्थ हो जाती है तो व्यक्ति के अन्दर भूख का नाश हो जाता है अर्थात व्यक्ति को भूख नहीं लगती और शरीर में खून की कमी हो जाती है। इससे रोगी में सिर का दर्द, सिर का भारी होना तथा खून की कमी होने जैसे रोग उत्पन्न होने लगते हैं। इस रोग के कारण शरीर सूख जाता है तथा चेहरे पर उदासी व चमक में कमी आ जाती है।


कारण- इस रोग के उत्पन्न होने के अनेक कारण होते हैं। इस रोग को उत्पन्न होने का कारण अधिक मिर्च-मसाले वाला भोजन करना, अनियमित भोजन करना, कोई कार्य न करना, भोजन करने के बाद बैठना, कब्ज बनाने वाले भोजन का सेवन करना आदि है। कभी-कभी यह रोग अधिक वीर्य रस्खलन के कारण भी हो जाता है।


जल चिकित्सा द्वारा रोग का उपचार- मन्दाग्नि को दूर करने के लिए 1 दिन का उपवास रखना चाहिए। आंतों को साफ करना चाहिए और फिर उपवास करना चाहिए। इस रोग को दूर करने के लिए वीर्य की रक्षा करें।


आमाशय में अम्लस्राव Stomach Inflammation

 परिचय: आमाशय में अम्लस्राव होने के कारण रोगी के पेट में दर्द तथा जलन पैदा होने लगती है। पाचनतंत्र के रोगग्रस्त होने के कारण पूरे पाचनतंत्र पर इसका असर होता है और एक अवांछित रासायनिक क्रिया होनी शुरू हो जाती है जिसके कारण बहुत से रोग पैदा हो जाते हैं और भोजन पचाने की क्रिया मंद हो जाती है।


उपचार- आमाशय की जलन रोग को दूर करने के लिए सबसे पहले आमाशय प्रक्षालन बहुत जरूरी होता है। जिसके लिए एक विशेष तरह की नली का उपयोग किया जाता है, जिसे वापसी नली कहते हैं। इस नली का काम पानी को आमाशय में पहुंचाना और दुबारा बाहर निकाल देना है। इसके लिए 85 से 100 डिग्री तापमान का पानी उपयोग में लाना जरूरी होता है।


पाचनशक्ति को बढाने के लिए गर्म-ठंडा प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। आन्तों की धुलाई पहले गर्म पानी से और फिर दुबारा ठंडे पानी से करनी चाहिए और यह ताप धीरे-धीरे कम करते रहना चाहिए। पानी को आंतों में देर तक न रखकर कुछ सैकंड के बाद ही बाहर निकाल देना चाहिए। इससे संचार में तेजी हो जाती है और आंतों के सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा आमाशय की जलन के सारे रोग दूर हो जाते हैं। 


अफारा रोग Flatulence

 परिचय: इस रोग के कारण रोगी के पेट में गैस बनने लगती है जिसके कारण रोगी का पेट फूलने लगता है और पेट में दर्द होने लगता है। इस रोग को फ्लेटूलेन्स भी कहते हैं। इस रोग के कारण रोगी को डकारे भी आने लगती हैं।


अफारा रोग होने का कारण : जब कोई व्यक्ति वसामय भोजन को खाता है तो इसके कारण कभी-कभी जिगर से पर्याप्त मात्रा में पित्त नहीं निकल पाता है जिसके कारण भोजन के टुकड़े नहीं हो पाते हैं और भोजन के टुकड़े छोटे-छोटे कैप्सूल के रूप में बन जाते हैं। ये कैप्सूल आंतों की दीवारों से चिपककर सड़न तथा गंदी गैस निकालना शुरू कर देते हैं। ये गैस आंतों में जमा हो जाती हैं तथा बेचैनी पैदा कर देती है जिसके कारण व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।

इस रोग के होने का मुख्य कारण अजीर्ण (बदहजमी) है।

यह रोग कई प्रकार के अनावश्यक भोजनों का सेवन करने के कारण भी होता है।

खाना खाते समय हवा की मात्रा निगलने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

पाचनशक्ति कमजोर होने के कारण अफारा रोग व्यक्ति को हो जाता है।


अफारा रोग के लक्षण : 


इस रोग से पीड़ित रोगी को बेचैनी होने लगती है तथा उसका पेट फूलने लगता है।

रोगी व्यक्ति को पेट में गैस बनने के कारण दर्द होने लगता है।

 इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को डकारे आने लगती है और डकारों के द्वारा रोगी व्यक्ति के मुंह से गैस निकलने लगती है।

इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को कभी-कभी सांस लेने में परेशानी भी होने लगती है।

अफारा (पेट में वायु भर) जाने के कारण दर्द से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को 2-3 दिन तक उपवास करना चाहिए तथा दोनों समय एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को नींबू का पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए तथा इसके बाद रोगी व्यक्ति को पेट पर ठंडा सेंक लेना चाहिए। इसके बाद दिन में 2 बार अपने पेडू पर गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए।

रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए अपनी कमर पर रात के समय में गीली पट्टी लगानी चाहिए तथा सोने से पहले 15 से 20 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। सुबह के समय उठते वक्त तथा रात को सोने से पहले कागजी नींबू का रस 1 गिलास गरम पानी में निचोड़कर पी लेना चाहिए।

अफारा तथा पेट के सभी प्रकार के दर्दों को ठीक करने के लिए गहरी नीली बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 6 बार लेने से बहुत अधिक लाभ होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के साथ कुछ पदार्थों को खाने में परहेज भी करना चाहिए, तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है। ये पदार्थ इस प्रकार हैं- कच्चा खीरा, पत्ता गोभी, मटर, टमाटर, मूंगफली, किशमिश, आम, आलू, दूध तथा चावल आदि।

रोगी व्यक्ति को उन पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे अधिक मात्रा में गैस बनती है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में 1 गिलास सन्तरे का रस पीना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में 1 गिलास सेब का रस पीना चाहिए तथा इसके बाद 1 गिलास गुनगुना पानी पीना चाहिए। इससे यह रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

अफारा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी नाभि के ऊपर तथा चारों तरफ सरसों का तेल लगाने से बहुत लाभ मिलता है।

नींबू के रस के साथ सौंफ का सेवन करने तथा इसके बाद भोजन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

1 चम्मच अजवायन का पाउडर तथा थोड़ा-सा काला नमक दिन में 2 बार मट्ठे के साथ सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को मिर्च-मसालेदार तथा गैस बनाने वाले पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।