शतावरी

 शतावरी वैसे तो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही उपयोगी व लाभप्रद गुणों से युक्त जड़ी है, फिर भी यह स्त्रियों के लिए विशेष रूप से गुणकारी एवं उपयोगी है।


गुण : यह भारी, शीतल, कड़वी, स्वादिष्ट, रसायनयुक्त, मधुर रसयुक्त, बुद्धिवर्द्धक, अग्निवर्द्धक, पौष्टिक, स्निग्ध, नेत्रों के लिए हितकारी, गुल्म व अतिसार नाशक, स्तनों में दूध बढ़ाने वाली, बलवर्द्धक, वात-पित्त, शोथ और रक्त विकार को नष्ट करने वाली है। यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है।


विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- शतावरी। हिन्दी- शतावर। मराठी- शतावरी। गुजराती- सेमुखा। बंगाली- शतमूली। तेलुगू- एट्टुमट्टी टेंडा। तमिल- सडावरी। कन्नड़- माज्जिगे गड्डे। फारसी- शकाकुल। इंग्लिश- एरेस मोसस। लैटिन- एस्पेरेगस रेसिमोसस।


परिचय : यह लता जाति का काँटेदार पौधा होता है जो जड़ से ही अनेक शाखाओं में फैला हुआ होता है। इसके पत्ते छोटे और सोया (सुआ) जैसे होते हैं। फूल छोटे और सफेद रंग के होते हैं। इसकी शाखाएँ तिकोनी, चिकनी और रेखांकित होती हैं।


उपयोग : इसका उपयोग विभिन्न नुस्खों में व्याधियों को नष्ट कर शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने के लिए किया जाता है।


गर्भकाल में : गर्भवती स्त्री के लिए नवमास चिकित्सा का विवरण बताया है। शतावरी के चूर्ण का उपयोग दूसरे, छठे और सातवें मास में दूध के साथ करने और नवम मास में शतावरी साधित तेल का एनीमा लेने तथा इसमें भिगोए हुए रूई के फाहे को सोते समय योनि में रखने के बारे में बताया गया है। इससे योनि-प्रदेश लचीला, पुष्ट और स्निग्ध रहता है, जिससे प्रसव के समय प्रसूता को अधिक प्रसव पीड़ा नहीं होती।


प्रदर रोग : प्रतिदिन सुबह-शाम शतावरी चूर्ण 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में थोड़े से शुद्ध घी में मिलाकर चाटने व कुनकुना गर्म मीठा दूध पीने से प्रदर रोग से जल्दी से छुटकारा मिलता है।


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