परिचय: जीर्णातिसार को साधारण भाषा में पुराने दस्त भी कहते हैं। यह रोग जीवाणुओं से फैलता है। इस रोग को दूर करने के लिए पहले जीवाणुओं को नष्ट करने वाला उपचार करना चाहिए। जीवाणु नष्ट होने से यह रोग अपने आप समाप्त हो जाता है। जीर्णातिसार रोगी के पेट में दर्द होता है और छूने से दर्द बढ़ जाता है।
जल चिकित्सा द्वारा रोगों का उपचार- जीर्णातिसार रोग को दूर करने के लिए आसानी से हजम न होने वाले भोजन का सेवन बन्द कर देना चाहिए। इस रोग में शुद्ध व स्वच्छ भोजन करें तथा क्षारीय आहार रस आदि का ही सेवन करें। इससे जीवाणु की उत्पत्ति समाप्त हो जाती है। इसके साथ ही रोग को दूर करने के लिए गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करें। इससे पेट में मौजूद श्लेष्मा और कीटाणु बाहर निकल जाते हैं। एनिमा क्रिया करने पर रोगी में कमजोरी उत्पन्न होती है अत: इस रोग में एनिमा लेने के बाद आराम से बिस्तर पर लेटे रहना चाहिए। जितनी बार भी शौच के लिए जाए, उतनी बार 95 फारेनहाइट पानी से एनिमा क्रिया करें। गर्म पानी का एनिमा लेने के बाद कुछ देर रूककर ठंडे पानी का एनिमा क्रिया करें।
जीर्णातिसार रोग में प्रतिदिन एनिमा क्रिया करने से आंतों की सफाई करने के बाद 250 ग्राम ठंडे पानी का एनिमा लें। यदि चाहो तो इस पानी में दही या मट्ठा भी मिलाकर एनिमा ले सकते हैं। अतिसार के समाप्त होने पर कमजोरी और शरीर के दूषित तत्वों का निकालने के लिए वाष्पस्नान करें और बाद में ठंडे पानी का समस्नान कुछ देर करें।
सावधानी- जीर्णातिसार में ठंडे रस, गर्म पट्टी या अधिक देर तक सेंक देना हानिकारक है। इस रोग के खत्म हो जाने पर भोजन आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
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