परिचय:-
अपच रोग आमाशय या आंतों के ठीक से काम न करने के कारण होता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को खाया-पिया भोजन पचता नहीं है तथा उसे खट्टी डकारे आने लगती है। अपच रोग साधारण हो या बहुत अधिक यह आमाशय और आंतों की बहुत सारी बीमारियों के होने का कारण बनता है। आमाशय और आंतों की बहुत सारी बीमारियों से बचने के लिए रोगी व्यक्ति को अपच रोग का जल्दी से उपचार कराना चाहिए, नहीं तो यह बीमारी और भी रोगों को जन्म दे सकती है जैसे- जी मिचलाना, डकारें आना, उल्टी आना, हृदय में जलन, पेट में दर्द तथा मरोड़, अम्ल, मुंह में घाव होना, मसूढ़ों से खून आना आदि। यदि यह रोग बहुत अधिक हो जाता है तो रोगी को डायरिया या कब्ज जैसे रोग भी हो सकते हैं।
यदि इस रोग के होने का कारण पता लग जाए तो बीमारी के लक्षणों का उपचार हो सकता है। यदि इस रोग के होने का कारण पता न लगे तो भी इस रोग का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से हो सकता है। इस रोग के होने का सीधा संबन्ध हमारे भोजन करने के तरीके तथा भोजन संबन्धी आदतों से होता है। यदि हम अपने भोजन करने के तरीके तथा भोजन संबन्धी आदतों में सुधार करते हैं तो यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
अपच रोग होने का लक्षण :-
अपच रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है तथा उसके मुंह से बिना पचा भोजन बाहर आने लगता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को खट्टी-खट्टी डकारे आने लगती हैं तथा उसका जी मिचलाने लगता है और उसका कुछ भी खाने का मन नहीं करता है।
रोगी व्यक्ति के गले तथा हृदय में जलन होने लगती है और उसकी सांसों से बदबू आने लगती है तथा पेट में गैस बनने लगती है।
इस रोग से पीड़ित रोगी अगर थोड़ा सा भी खाना खा लेता है तो उसका पेट भारी होने लगता है तथा पेट और छाती में दर्द होने लगता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी उल्टियां भी होने लगती है और उसकी जीभ पर मैल जम जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कब्ज भी होने लगती है तथा जब इस रोग की अवस्था अधिक गंभीर हो जाती है तो उसे डायरिया जैसे रोग जाते हैं।
इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को और भी कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जो इस प्रकार हैं- आंतों में सूजन, जिगर की बीमारियां, एपेन्डिसाइटिस, बड़ी आंतों में सूजन, आंतों में घाव तथा गुर्दे की बीमारियां आदि।
अपच रोग होने का कारण :-
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अपच रोग उस व्यक्ति को हो जाता है जो अपनी भूख से अधिक भोजन करता है, जल्दी-जल्दी भोजन करता है तथा खाना ठीक से चबाकर नहीं खाता है।
अपच रोग कई प्रकार के गरिष्ठ (भारी तथा दूषित भोजन), तैलीय भोजन, बासी तथा सड़े-गले खाद्य पदार्थों का भोजन में उपयोग करने के कारण होता है।
अपच रोग उन व्यक्तियों को भी हो जाता है जो भोजन करने के तुरंत बाद काम में लग जाते हैं।
भय, चिंता, ईर्ष्या, क्रोध, तनाव से ग्रस्त व्यक्तियों को यह रोग जल्दी हो जाता है।
भोजन के साथ-साथ पानी पीना, चाय का अधिक सेवन करना, कॉफी, साफ्ट ड्रिंक तथा शराब आदि का अधिक सेवन करने के कारण भी अपच रोग हो जाता है।
अधिक धूम्रपान करने, सही समय पर भोजन न करने तथा काम न करने के कारण भी अपच रोग हो सकता है।
बार-बार बिना भूख लगे ही खाना खाने के कारण भी यह रोग हो जाता है।
ठीक समय पर खाना न खाने अथार्त खाने खाने का कोई निश्चित समय न होने के कारण भी अपच रोग हो जाता है।
गलत तरीके से खान-पान तथा जल्दी-जल्दी खाना खाने तथा तनाव में खाना खाने के कारण भी यह रोग हो जाता है।
भोजन करते समय कोई मानसिक परेशानी तथा भावनात्मक रूप से परेशान रहने के कारण भी अपच रोग हो जाता है।
कब्ज बनने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
अत्यधिक सिगरेट पीने के कारण भी यह रोग हो जाता है।
जब शरीर में भोजन को जल्दी पचाने वाले एन्जाइम में कमी हो जाती है तो भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
अपच रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी के अपच रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले इसके होने के कारणों को दूर करना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को 1 से 3 दिनों तक रसाहार (नारियल पानी, संतरा, अनन्नास, अनार, नींबू पानी और कई प्रकार के फलों का रस) पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद कुछ दिनों तक रोगी को फलों का सेवन करना चाहिए तथा इसके बाद सामान्य भोजन का सेवन करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
2. रोगी व्यक्ति को मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य, मिठाइयों, चीनी, मैदा आदि का भोजन में उपयोग नहीं करना चाहिए तभी अपच रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
3. इस रोग से पीड़ित रोगी को बार-बार भोजन नहीं करना चाहिए बल्कि भोजन करने का समय बनाना चाहिए और उसी के अनुसार भोजन करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को भोजन उतना ही करना चाहिए जितना कि उसकी भूख हो। भूख से अधिक भोजन कभी भी नहीं करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को भोजन कर लेने के बाद सोंफ खानी चाहिए और तुरंत पेशाब करना चाहिए और इसके बाद वज्रासन पर बैठ जाना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
4. रोगी व्यक्ति को अपनी पाचनशक्ति को बढ़ाने के लिए तुलसी के पत्तों या पुदीने के पत्ते पीसकर पानी में घोलकर पीना चाहिए।
5. रोगी व्यक्ति के रोग को ठीक करने के लिए पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए तथा गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए। फिर रोगी को कुंजल क्रिया तथा जलनेति क्रिया करानी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
6. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसनों का उपयोग किया जा सकता है और ये आसन इस प्रकार हैं-
अर्धमत्स्येन्द्रासन,
उत्तानपादासन,
सुप्त पवनमुक्तासन
योगमुद्रासन,
सर्वांगासन
चक्रासन,
वज्रासन,
शवासन,
भुजंगासन
इन सभी यौगिक क्रियाओं को करने से रोगी का अपच रोग ठीक हो जाता है तथा इसके अलावा योग मुद्रा, कपालभाति, लोम अनुलोम, उज्जायी प्राणायाम करने से भी रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
1. अपच रोग से पीड़ित रोगी को अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
2. रोगी व्यक्ति को अपना उपचार कराने से पहले वसायुक्त खाद्य पदार्थ, कॉफी, चाय, शराब, धूम्रपान तथा उच्च प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।
3. इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट पर गर्म तथा ठण्डी सिंकाई करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप पेट में दर्द तथा गैस बनना बंद हो जाती है तथा यह रोग ठीक हो जाता है।
4. अपच रोग को ठीक करने के लिए गैस्ट्रो-हैपेटिक लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए जिसके फलस्वरूप दर्द से आराम मिलता है और इस रोग से रोगी को आराम मिलता है।
5. पेट के अवयवों में रक्त संचार को सुधारने के लिए मिट्टी लपेट का उपयोग करना चाहिए। इसके फलस्वरूप रक्त संचार में सुधार हो जाता है और इस रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक आराम मिलता है।
6. अपच रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन कम से कम 40 से 60 मिनट तक पेट पर ठंडा लपेट करना चाहिए। इसके फलस्वरूप रोगी को बहुत आराम मिलता है और रोग ठीक हो जाता है।
7. इस रोग से पीड़ित रोगी को पेट के बल लेटना चाहिए तथा पवनमुक्तासन का अभ्यास करना चाहिए। इसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक आराम मिलता है।
8. इस रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले नींबू के रस में पानी को मिलाकर दिन में कम से कम 3-4 बार पीना चाहिए तथा कम से कम 3 दिन तक उपवास रखना चाहिए और कटिस्नान करना चाहिए। इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को अपने पेट को साफ करने के लिए पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाए।
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