आयुर्वेद

'आयुर्वेद' नाम का अर्थ है, 'जीवन से सम्बन्धित ज्ञान'। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।

आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है

आयुर्वेद 5,000 वर्षों से भारत में प्रचलित है। यह शब्द संस्कृत के शब्द अयुर (जीवन) और वेद (ज्ञान) से आया है। आयुर्वेद, या आयुर्वेदिक चिकित्सा को कई सदियों पहले ही वेदों और पुराणों में प्रलेखित किया गया था।

आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर

आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों (जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु) से मिलकर बना है। वात, पित्त और कफ इन पांच तत्वों के संयोजन और क्रमपरिवर्तन हैं जो सभी निर्माण में मौजूद पैटर्न के रूप में प्रकट होते हैं।

पित्त शरीर की चयापचय प्रणाली के रूप में व्यक्त करता है

आग और पानी से बना है। यह पाचन, अवशोषण, आत्मसात, पोषण, चयापचय और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। संतुलन में, पित्त समझ और बुद्धि को बढ़ावा देता है। संतुलन न होने से, पित्त क्रोध, घृणा और ईर्ष्या पैदा करता है।

शरीर का शुद्धिकरण

आयुर्वेद में पंचकर्म में एनीमा, तेल मालिश, रक्त देना, शुद्धिकरण और अन्य मौखिक प्रशासन के माध्यम से शारीरिक विषाक्त पदार्थों को समाप्त करने का अभ्यास है। आयुर्वेदिक हर्बल दवाओं में बड़े पैमाने पर उपयोग किए जाने वाले उपयुक्त घरेलू उपचार जीरा, इलायची, सौंफ और अदरक हैं जो शरीर में अपच को ठीक करते है।

रसाहार

 सब्जियों के रस (वैजिटेबल जूस) को रसाहार कहा जाता है लेकिन रस की तुलना में सब्जियों में मिनरल्स अधिक मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए जिन व्यक्तियों के शरीर में मिनरल्स की कमी हो जाती है उन्हे इसकी पूर्ति के लिए आमतौर पर सब्जियों का रस ही दिया जाता है। अब सवाल यह उठता है कि सब्जियों का जूस लेना अच्छा है या उन्हे खाना अच्छा है। इसका जवाब यही है कि इन्हे खाना अच्छा है लेकिन फिर भी रोगियों आदि को जूस दिया जाता है क्यों ? ऐसा इसलिए होता है कि मान लीजिए आपने उपवास किया है और आपको फल का जूस पीने के लिए दिया जाता है लेकिन आपका मन जूस पीने का नहीं है तो आपको उस स्थिति में जूस के स्थान पर अधिक मात्रा में फल का सेवन करना पड़ेगा।

उदाहरण- किसी व्यक्ति को एसीडिटी की प्रॉब्लम है और डॉक्टर ने उसे गाजर के जूस का सेवन करने के लिए कहा है लेकिन उसे अगर गाजर के जूस के स्थान पर गाजर खाने को दी जाए तो वह कितनी गाजर खा पाएगा। इसलिए ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को गाजर का जूस ही दिया जाएगा। इसी तरह उपवास में या शरीर की आंतरिक सफाई करने के लिए जूस पीना ज्यादा अच्छा है क्योंकि जूस शरीर की सारी गंदगी को निचोड़कर बाहर निकाल देता है। यदि कोई व्यक्ति अपना स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए उपवास रखता है तो उसे हर एक-एक घंटे के बाद नींबू पानी, नींबू-शहद-पानी, सब्जियों का रस या फलों का रस देना चाहिए। इससे उस व्यक्ति को एनर्जी मिलने के साथ ही भूख भी महसूस नहीं होगी। उसके शरीर में पानी की कमी दूर होगी और अगले दिन तक शरीर पूर्ण रूप से साफ हो जाएगा।

रसाहार के दौरान कई व्यक्तियों की शिकायत रहती है कि इसका सेवन करने के काल में मुझे गैस की प्रॉब्लम महसूस होने लग गई है ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए होता है कि हम लोग रसाहार को अक्सर एक ही सांस में या जल्दी से पी जाते हैं जो कि गलत है। रस को हमेशा चाय की तरह आराम-आराम से पीना चाहिए इससे यह आसानी से डाइजेस्ट हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जूस में मौजूद स्टार्च यहीं पर ग्लूकोज में बदल जाता है। उदाहरण- संतरे का रस मुंह में रखते ही खट्टा लगने लगता है लेकिन थोड़ी देर तक उसे मुंह में रखने से वह रस मीठा लगने लगता है क्योंकि तब तक उसका स्टार्च ग्लूकोज में बदल चुका होता है।

रस को हमेशा ताजा-ताजा ही पीना चाहिए क्योंकि ज्यादा देर तक रखने से यह खराब हो जाता है।

कुछ लोग रस का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें चीनी या नमक मिला लेते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। इसलिए रस को हमेशा बिना कुछ मिलाए ही सेवन करना चाहिए।

भोजन बनाने में सावधानी- आमतौर पर हम जब भोजन तैयार करते हैं तो उस दौरान बहुत सी गलतियां करते हैं। जैसे आटा गूंथने से पहले उसे छान लिया जाता है जिससे उसमें मौजूद चोकर भी बाहर निकल जाता है जो कि सही नहीं है- आटे से कंकर, पत्थर या अन्य चीजें निकाल दें लेकिन चोकर न निकालें क्योंकि चोकर में फाइबर और विटामिन दोनों मौजूद होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। चावल भी बिना पॉलिस वाला खाएं क्योंकि पॉलिस किए हुए चावल से सारे विटामिन निकल जाते हैं। इसके बाद सबसे जरूरी चीज है- तेल और चिकनाई।

चिकनाई बहुत जल्द बॉडी में जमा होने लगती है और बढ़ती ही जाती है। W.H.O वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन में भी कहा गया है कि पके हुए तेल या चिकनाई को एक बार से ज्यादा नहीं प्रयोग करना चाहिए। लेकिन हम क्या करते हैं कि जब कोई चीज तेल में पकाते हैं और पकाने के बाद जो तेल बच जाता है उस बचे तेल को रख लेते हैं। दूसरी बार कोई चीज पकानी होती है तो उसे इसी बचे तेल में पकाते हैं। इससे क्या होता है कि तेल में पॉयजन बनता रहता है जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही नुकसानदायक होता है। आपने देखा होगा कि बाजार के पकौड़े खाने के बाद अक्सर एसीडिटी की प्रॉब्लम हो जाती है, पेट खराब हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह लोग एक ही तेल को बार-बार प्रयोग में लाते रहते हैं।

रेशेदार भोजन, फाईबर फूड- नैचुरल भोजन में भरपूर मात्रा में फाईबर होता है और हम जितना फाईबर फूड लेंगे, हमारी आंतें उतनी ही साफ रहेंगी, पाचन शक्ति ठीक रहेगी, शौच खुलकर आएगी और शरीर स्वस्थ रहेगा।

फाईबर फूड में क्या-क्या आता है? इसमें सबसे पहले आता है दूध। आज के समय में जब तक बच्चा मां का दूध पीता है तब तक उसके लिए सही है क्योंकि आज दूध में मिलावट बहुत है। अपने सामने दूध निकलवाने के बाद भी शुद्ध दूध की गारंटी नहीं होती क्योंकि गाय या भैंस को ऑक्सीकरण के लिए इंजेक्शन लगाया जाता है और दूसरा उसके चारे में कैमिकल डाला जाता है ताकि वह दूध ज्यादा दे। अब मिलावटी दूध से बचने के लिए क्या करें? इसके लिए आप अपना अल्टर्नेटिव वैजिटेरियन दूध बना सकते हैं।

सफेद तिल, सोयाबीन, मूंगफली, नारियल, बादाम और काजू आदि किसी का भी आप दूध बना सकते है। इसके लिए दूध बनाने का सिम्पल सा तरीका है- कच्चा नारियल लेकर मिक्सी में पीस लें, फिर उसका पेस्ट बनाकर उसमें गर्म या ठंडा पानी डालकर छान लें, बस तैयार हो गया नारियल का दूध। यह दूध इतना हल्का होता है जैसे- गाय का दूध। इस दूध को बूढ़े, बच्चे, जवान कोई भी पी सकता है। इसमें जितना पेस्ट हो उसका आठ गुणा पानी मिलाएं। सोयाबीन का भी दूध बना सकते हैं। सोयाबीन को बारह घंटे पानी में भिगो दें, इसके बाद उसे मिक्सी में पीस लें और उसमें गर्म या ठंडा पानी डालकर, छानकर प्रयोग करें। इस दूध में बेस्ट क्वालिटी का प्रोटीन होता है।

यह हार्ट पेसेंट अर्थात ह्रदय रोगियों के लिए बहुत बढ़िया माना जाता है साथ ही डाइबिटीज वालों के लिए भी यह लाभकारी है। कैल्शियम की कमी होने पर सफेद तिल का दूध पीना चाहिए। सफेद तिल को बारह घंटे तक पानी में भिगोकर, मिक्सी में पीसकर उसमें गर्म-ठंडा पानी डालकर दूध बनाकर लें। मूंगफली को पानी में भिगोकर मिक्सी में पीसकर गर्म या ठंडा पानी डालकर व छानकर प्रयोग करें। इस दूध में भैंस के दूध जैसे गुणों होते हैं। इसमें फैट्स, प्रोटीन और कैल्शियम तीनों चीजें पाई जाती है। सोयाबीन में प्रोटीन ज्यादा है और सफेद तिल में कैल्शियम ज्यादा है। इसलिए अपनी आवश्यकतानुसार दूध बनाकर लें।

सोयाबीन से दही और पनीर दोनों बनाई जा सकती है। इसके लिए 12 घंटे तक सोयाबीन को पानी में भिगोकर मिक्सी में पीस लें और उसमें पानी डालकर उबाल लें। इसके बाद छानकर उसमें दही डालकर दही जमा लें। यदि केवल पीना है तो इसमें गर्म पानी मिलाकर छानकर पी सकते हैं लेकिन कुछ बनानी हो तो इसे उबालना जरूरी है।

ड्राईफ्रूट या अन्य सख्त चीजों को हमेशा भिगोकर ही खाना चाहिए। यदि ड्राईफ्रूट को बिना भिगोए खाते हैं तो उसको हजम करने के लिए आंतों को अधिक एनर्जी लगानी पड़ती है या जब तक वह पचने लायक मुलायम होता है तब तक शौच के रास्ते बाहर आ जाता है। इससे हमने जो ड्राईफ्रूट खाया था वह बिना पचे ही नष्ट हो गया और दूसरा उसको पचाने में आंतों को जो मेहनत करनी पड़ी वह भी बेकार गई। लेकिन यदि हम ड्राईफ्रूट को भिगो देते हैं तो वह मुलायम हो जाता है और उसे पचाने के लिए आंतों को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। इससे शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट भी नहीं बनता।

उदाहरण- काजू को कच्चा खाने में बहुत मजा आता है लेकिन इसके दो नुकसान भी हैं। एक तो इसमें कॉलेस्ट्राल होता है और दूसरा इसका प्रोटीन बहुत सख्त होता है जो आसानी से डाइजेस्ट नहीं होता। बादाम बिना भिगोए कितना भी चबाकर खा लें वह डाइजेस्ट नहीं होता। यदि ड्राईफ्रूट के स्थान पर रोस्टेड लेते हैं तो उसे चबाना तो आसान हो जाता है लेकिन उसका काफी हिस्सा डेड हो चुका होता है। इसके कारण इसका कोई फायदा नहीं होता। जब रोस्टेड को फ्राई करते हैं तो इसका काफी हिस्सा डेड हो जाता है और इसे पचाने में भी परेशानी होती है।

यदि हम कोई सख्त चीजें खाते हैं या ड्राईफूड खाते हैं तो इसका हमें दो प्रकार से नुकसान होता है अर्थात हमारी एनर्जी दो जगह वेस्ट (नष्ट) होती है- पहला यदि हम कोई सख्त चीज खाते हैं तो उसे पचाने के लिए आंतों को बहुत एनर्जी लगानी पड़ती है और दूसरा ठीक से डाइजेस्ट न होने के कारण उससे एनर्जी भी प्राप्त नहीं होती। इस तरह दोनों ही रूपों में सख्त चीज खाने से नुकसान ही है। यही चीज हमारी बॉडी के साथ भी है भोजन हम जितना पकाकर खाते हैं उससे हमारे बॉडी में वेस्ट (गंदगी) तो बढ़ती ही है और उस वेस्टेज को बाहर निकालने के लिए शरीर को जो एनर्जी लगानी पड़ती है वह भी व्यर्थ ही होती है।

जिस दिन फलाहार खाते हैं, हल्का भोजन करते हैं उस दिन आलस्य नहीं आता, शरीर में फुर्ती बनी रहती है, ताजगी बनी रहती है और जिस दिन आप गरिष्ट भोजन करते हैं आपको उस दिन आलस्य आता है। इसका कारण यह है कि जब हम गरिष्ठ भोजन अर्थात अधिक तला-भुना भोजन करते हैं तो शरीर की सारी एनर्जी उसे पचाने में लग जाती है और शरीर को उससे उतनी एनर्जी मिल नहीं पाती जिससे आलस्य और सुस्ती महसूस होती है।

कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन लेने का समय- कार्बोहाईड्रेट सुबह के समय लेना सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि पूरे दिन काम करने के लिए हमे एनर्जी की आवश्यकता होती है। यदि हम शाम के समय कार्बोहाईड्रेट लेते हैं तो लीवर पहले उसे स्टोर करेगा, इसके बाद ग्लूकोज को लाईकोडिन में बदलेगा और फिर दूसरे दिन लीवर उस लाईकोडिन को ग्लूकोज में बदलेगा। इस प्रक्रिया में हमारी काफी एनर्जी वेस्ट होगी और बेकार में लीवर का एक कार्य बढ़ जाएगा।

प्रोटीन शाम के समय लेना चाहिए क्योंकि दिनभर काम करने के दौरान शरीर के सेल्स डेड हो जाते हैं और रात के समय में नए सेल्स बन जाते हैं। यदि प्रोटीन सुबह लेते हैं तो वह भी शरीर में वेस्ट पड़ा रहेगा और ओवरडोज हो जाएगा।

इसलिए कार्बोहाईड्रेट सुबह और प्रोटीन शाम को लेना चाहिए। वैसे इसमें थोड़ा-बहुत आगे-पीछे चल सकता है जैसे- बादाम आदि को सुबह भिगोकर ले सकते हैं। हाई ब्लडप्रेशर वाले व्यक्तियों के लिए बादाम आदि भिगोकर लेना सही रहता है। वैसे उन्हें ड्राई, फ्राइड, रोस्टेड लेना ही नहीं चाहिए। बहुत से लोग फ्राइड की जगह पर रोस्टेड लेते हैं जो शरीर के लिए सही नहीं होता क्योंकि इसमें घी या कोलेस्ट्राल नहीं होता साथ ही पकने के बाद पोषक तत्व भी बहुत कम हो जाते हैं। उदाहरण के लिए-चना।

आप यदि चने को भिगो दो तो उसमें अंकुर आ जाएगा, अर्थात यह जीवित भोजन है। लेकिन उसी को भून लो फिर कितना भी पानी डालों उसमें अंकुर नहीं फूट सकता क्योंकि उसका बहुत सारा हिस्सा नष्ट हो गया होता है और केवल थोड़ा-बहुत न्यूट्रिशन बचता है। ऐसे में यदि हम खा ही रहे हैं तो हम पूरा न्यूट्रिशन क्यों खाएं, हम वेस्टप्रोडेक्ट को शरीर में क्यों बनने दें जिसे निकालने के लिए अनावश्यक एनर्जी भी लगानी पड़े।


अंकुरित अनाज

 किसी भी अनाज, गिरी तथा बीज आदि को अंकुरित करने का एक सीधा-सा तरीका है- इसके लिए अनाज को 12 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद छानकर एक कपड़े में बांध लें। लेकिन इसके लिए तीन नियमों का पालन करना जरूरी हैं- पहला भिगोने के बाद पानी हटाना, दूसरा पानी हटाने के बाद हवा लगाना और तीसरा अंधेरा। मूंगफली में 12 घंटे में अंकुर फूटते हैं, चना 24 घंटे में और गेहूं आदि 36 घंटे में अंकुरित होते हैं। वैसे तो अंकुरित अनाजों को कच्चा ही खाना चाहिए लेकिन यदि उन्हे स्वादिष्ट बनाना है तो उनमें थोड़ी मूंग भिगोकर मिला दें। फिर उसमें हरा धनिया, टमाटर, अदरक और प्याज मिला लें।

यदि उसमें चना मिलाना चाहे तो मिला सकते हैं लेकिन बिल्कुल थोड़ी मात्रा में। अब प्रश्न उठता है कि इन्हे अलग-अलग भिगोएं या एक साथ। इसे अलग-अलग भिगोना अच्छा है जैसे- आपने चना भिगोया और उसके साथ मूंग भी भिगो दी लेकिन दोनों के अंकुरित होने का समय अलग-अलग है। ऐसे में मूंग पहले ही अंकुरित हो जाएगा, लेकिन चना नहीं हो पाएगा। यदि चने के साथ मूंग को 24 घंटे छोड़ते हैं तो मूंग का अंकुर अधिक लम्बा हो जाएगा और उसका न्यूट्रेशन कम हो जाएगा। जिनका अंकुरण समय एक समान हो उन अनाजों को एक साथ भिगो सकते हैं।


अंकुरित आहार लेने का फायदा-

इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें वेस्टेज नहीं होता जिसके कारण उसे निकालने के लिए शरीर को अनावश्यक एनर्जी नहीं लगानी पड़ती। शरीर में वेस्टेज न होने से एनर्जी शरीर की सफाई में लग जाती है जिससे सारे शरीर की सफाई हो जाती है। इससे रोग पैदा होने का जो भी कारण है वह शरीर से बाहर निकल जाता है।

उदाहरण- किसी को हार्ट ब्लॉकेज है तो उसको पूर्ण रूप से नैचुरल डाईट पर डाल दें। इससे उसके हार्ट की सारी ब्लॉकेज खुल जाएगी। किडनी प्रॉब्लम में क्या होता है कि जब 50 या 60 प्रतिशत किडनी खराब हो चुकी होती है तब उसके बारे में पता लग पाता है और जब टैस्ट करवाया जाता है तो पता चलता है कि 20 या 30 प्रतिशत ही किडनी काम कर रही है।

इस प्रॉब्लम का ट्रीटमेंट प्राकृतिक चिकित्सा से करें और नैचुरल डाईट लें। इससे शरीर में बाहर से कोई वेस्टेज नहीं जाएगा जिससे किडनी का कार्य कम हो जाएगा अर्थात उस वेस्टेज को निकालने के लिए किडनी को कम काम करना पड़ेगा। नैचुरल डाईट से वेस्टेज नहीं बन पाता है, जिससे किडनी को आराम मिलता है। जिस तरह सुबह को काम करने और रात को सोने से सारी थकावट दूर हो जाती है उसी तरह जब किडनी को आराम मिलता है तो धीरे-धीरे किडनी के सारे सेल्स नए बनने लगते हैं जिससे किडनी फिर से अपना काम ठीक तरह से करने लगती है।

प्राकृतिक तरीके से नैचुरल डाईट द्वारा शरीर का वेस्ट-प्रोडेक्ट बाहर निकालने से रोग धीरे-धीरे सही हो जाता है।

हार्मोन्स बनाने वाली ग्रंथि में खराबी आई हो तो उसे नैचुरल डाईट से ठीक किया जा सकता है और इसके साथ ही योग के द्वारा पुराने सेल्सों को भी नए बनाए जा सकते हैं।


औषधीय चाय

 काली चाय


पातालकोट अक्सर आना जाना लगा रहता है और यहां आदिवासियों के बीच चाय मेहमान नवाज़ी का एक अहम हिस्सा है। जबरदस्त मिठास लिए ये चाय बगैर दूध की होती है और चाय की चुस्की लेते हुए जब इन आदिवासियों से इस चाय की ज्यादा मिठास की वजह पूछी जाए तो जवाब भी उतना ही मीठा मिलता है, 'आपके और हमारे बीच संबंधों में इस चाय की तरह मिठास बनी रहे'। खैर, इस चाय को तैयार करने के लिए 2 कप पानी में एक चम्मच चाय की पत्ती और 3 चम्मच शक्कर को डालकर उबाला जाता है। जब चाय लगभग एक कप शेष रह जाती है, इसे उतारकर छान लिया जाता है और परोसा जाता है। हर्बल जानकारों के अनुसार मीठी चाय दिमाग को शांत करने में काफी सक्रिय भूमिका निभाती है यानि यह तनाव कम करने में मदद करती है। आधुनिक शोध भी चाय के इस गुण को प्रमाणित करते हैं। सच ही है, यदि चाय की एक मिठास रिश्तों में इस कदर मजबूती ले आए तो अपने आप हमारे जीवन से तनाव छू मंतर हो जाए। 


गौती चाय


बुंदेलखंड में आपका आदर सत्कार अक्सर गौती चाय या हरी चाय से किया जाता है। लेमन ग्रास के नाम से प्रचलित इस चाय का स्वरूप एक घास की तरह होता है। हल्की सी नींबू की सुंगध लिए इस चाय की चुस्की गजब की ताजगी ले आती है। लेमन ग्रास की तीन पत्तियों को हथेली पर कुचलकर दो कप पानी में डाल दिया जाता है और उबाला जाता है। स्वादानुसार शक्कर डालकर इसे तब तक उबाला जाता है जब तक कि यह एक कप बचे। जो लोग अदरख का स्वाद पसंद करते हैं, वे एक चुटकी अदरख कुचलकर इसमें डाल सकते हैं। इस चाय में भी दूध का उपयोग नहीं होता है। गौती चाय में कमाल के एंटी ओक्सीडेंट गुण होते हैं और शरीर के अंदर किसी भी प्रकार के संक्रमण को नियंत्रित करने में गौती चाय काफी असरकारक होती है। यह चाय मोटापा कम करने में काफी सक्षम होती है। आधुनिक शोध भी इस तथ्य को प्रमाणित करते दिखाई देती है। हरी चाय वसा कोशिकाओं यानि एडिपोसाईट्स के निर्माण को रोकती है। इसी वजह से दुनिया के अनेक देश गौती चाय को मोटापा कम करने की औषधि के तौर पर देख रहें हैं और इस पर निरंतर शोध जारी है। नई शोधें बताती है कि वसा और कोलेस्ट्राल को कम करने वाले प्रोटीन काईनेस को क्रियाशील करने में गौती चाय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।


खट्टी गौती चाय


गौती चाय बनाते समय इसी चाय में संतरे या नींबू के छिल्के डाल दिये जाते हैं और कुछ मात्रा नींबू रस की भी डाल दी जाती है और फिर परोसी जाती है खट्टी गौती चाय। इस तरह की मेहमानी आप देख सकते हैं मध्यभारत के गोंडवाना क्षेत्र में। मूल रूप से गोंड, कोरकु और बैगा जनजातियों के बीच प्रचलित इस चाय के भी गजब के औषधीय गुण हैं। गाँव के बुजुर्गों से उनकी लंबी उम्र का राज पूछा जाए तो सीधा जवाब मिलता है, 'खट्टी गौती चाय' और मजे की बात यह भी है कि सदियों पुराने इस एंटी एजिंग फार्मुले को आदिवासी अपनाते रहें हैं और अब आधुनिक विज्ञान इस पर ठप्पा लगाना शुरु कर रहा है। नई शोधें बताती है कि हरी चाय और नींबू का मिश्रण उम्र के पड़ाव की प्रक्रिया को धीमा कर देता है यानि आप इस चाय का प्रतिदिन सेवन करें तो अपने यौवन को लंबा खींच सकते हैं।


मसाला चाय


गुजरात में किसी भी गाँव में जाएंगे तो मेहमानी के तौर पर मसाला चाय आपके स्वागत के लिए हमेशा तत्पर रहेगी। घरों में अक्सर मेहमान नवाज़ी के लिए छाछ या चाय का उपयोग किया जाता है। यदि आप चाय के शौकीन हैं तो आपको मसाला चाय परोसी जाएगी। काली मिर्च, सौंठ, तुलसी, दालचीनी, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, लौंग, पीपरामूल, जायफ ल, जायपत्री और लौंग मिलाकर एक मसाला तैयार होता है। चाय पत्ती और दूध के उबलते पानी में चुटकी भर मसाला डाल दिया जाता है। स्वादिष्ठ मसाला चाय जब आपको परोसी जाती है, ना सिर्फ  ये गज़ब का स्वाद लिए होती है बल्कि शरीर ताजगी से भरपूर हो जाता है। मसालों के औषधीय गुणों से हम सभी 'गाँव कनेक्शन' के पिछले अंकों में रूबरू हो चुके है, यानि इन सभी मसालों का संगम जिस चाय में होगा, उसके औषधीय गुण भी कमाल के होंगे ही।


बस्तर की सैदी या मीठी चाय  


शहद होने की वजह से इस चाय को शहदी चाय या सैदी चाय कहा जाता है। दंतेवाड़ा के किसी दुरस्थ गाँव में आप जाईये, आपका स्वागत सैदी चाय से होगा। साधारण चाय पत्ती (2 चम्मच) के साथ कुछ मात्रा में शहद (लगभग 2 चम्मच) और दूध (2 चम्मच) डालकार फेंटा जाता है। दूसरी तरफ  एक बर्तन में 2 कप पानी को उबाला जाता है। पानी जब उबलने लगे तो इसमें इस फेंटे हुए मिश्रण को डाल दिया जाता है। यदि आवश्यकता हो तो थोड़ी सी मात्रा अदरख की डाल दी जाती है और तैयार हो जाती है सैदी चाय। माना जाता है कि यह चाय शरीर में गजब की स्फू र्ति लाती है। शहद, अदरक और चाय के अपने-अपने औषधीय गुण है और जब इनका संगम होता है तो ये गजब का टोनिक बन जाते हैं।


धनिया चाय


राजस्थान के काफी  हिस्सों में धनिया की चाय स्वास्थ्य सुधार के हिसाब से दी जाती है। लगभग 2 कप पानी में जीरा, धनिया, चायपत्ती और कुछ मात्रा में सौंफ  डालकर करीब 2 मिनिट तक खौलाया जाता है, आवश्यकतानुसार शक्कर और अदरख डाल दिया जाता है। कई बार शक्कर की जगह शहद डालकर इसे और भी स्वादिष्ठ बनाया जाता है। गले की समस्याओं, अपचन और गैस से त्रस्त लोगों को इस चाय का सेवन कराया जाता है। स्वाद के साथ सेहत भी बेहतर करने वाली इस चाय को धनिया चाय के नाम से जाना जाता है।


मुलेठी चाय


सौराष्ट्र में जेठीमद चाय के नाम मशहूर इस चाय को मध्यभारत में मुलेठी चाय के नाम से जाना जाता है। साधारण चाय तैयार करते समय चुटकी भर मात्रा मुलेठी की डाल दी जाए तो चाय में एक नयी तरह की खुश्बु का संचार होता है और चाय स्वादिष्ठ भी लगती है। दमा और सर्दी खांसी से परेशान लोगों को इस चाय को प्रतिदिन दिन में दो से तीन बार लेना चाहिए, माना जाता है कि मुलेठी के गुणों की वजह से चाय सेहत के हिसाब से अत्यंत लाभकारी होती है।


बर्फीली चाय  


गर्मियों की तपिश और लू के चपेटों से बचने के लिए पानी में एक नींबू का रस, थोड़ी सी चायपत्ती और लेमनग्रास डालकर उबाला जाए और ठंडा करके रेफ्रिजरेट किया जाए। जब यह चाय बिल्कुल ठंडी हो जाए तो इसमें बर्फ  के कुछ डालकर पिया जाए तो ताजगी के साथ शरीर में ऊर्जा का संचार भी होता है। यह चाय सेहत के लिए भी बेहतर होती है।


अनंतमूली चाय


पातालकोट में सर्द दिनों में अक्सर आदिवासी अनंतमूली चाय पीते हैं। अनंतमूल स्वभाव से गर्म प्रकृति का पौधा होता है, इसकी जड़ें निकालकर लगभग 1 ग्राम साफ  जड़ पानी में खौलायी जाती है। इसी पानी में थोड़ी सी चाय की पत्तियों को भी डाल दिया जाता है। दमा और सांस की बीमारी से ग्रस्त रोगियों को इसे दिया जाता है। जब ज्यादा ठंड पड़ती है तो इसी चाय का सेवन सभी लोग करते हैं, माना जाता है कि यह चाय शरीर में गर्मी बनाए रखती है। अनंतमूल का उपयोग करने की वजह से इसे अनंतमूली चाय के नाम से जाना जाता है।


गेहूं

 खांसीः 20 ग्राम गेहूं के दानों को नमक मिलाकर 250 ग्राम जल गरम  गरम पीलें। ऐसा लगभग एक सप्ताह करने से खांसी दूर होती है।


 उदर शूलःगेहूं की दलिया में चीनी व बादाम गिरी मिलाकर सेवन करने से मस्तिष्क ,दिमाग की कमजोरी, नपुंसकता तथा छाती में होने वाली पीड़ा शांत हो जाती है।


 खुजलीः गेहूं के आटे को गूथ कर त्वचा की जलन खुजली बिना पके फोड़े फुंसी तथा आग में झुलस जाने पर लगा देने से ठंडक पड़  जाती है।


 अस्थि भंगः थोड़े से गेहूं को तवे पर भूनकर पीस लें और शहद मिलाकर कुछ दिनों तक चाटने से अस्थिभंग दूर हो जाता है।


 कीट दंशः यदि कोई जहरीला कीड़ा काट ले तो गेहूं के आटे में सिरका मिलाकर दंश स्थान पर लगाना चाहिए।


 बालतोड़ :शरीर के किसी भी अंग पर से बाल टूट जाने से फोड़ा हो जाता है, जो कि अत्यंत दाहक और कष्टकर होता है। इसमें मुख से गेंहू के दाने चबा चबाकर बांधने से 2-3 दिन में ही लाभ हो जाता है।


 पथरी. गेहूं और चने को उबालकर उसके पानी को कुछ दिनों तक रोगी व्यक्ति को पिलाते रहने से मूत्राशय और गुरदा की पथरी गलकर निकल जाती है।


गेहूं में है सबसे अधिक फाइबर

सभी तरह के फाइबर जरूरी हैं, चाहे उन्हें किसी भी स्रेत से प्राप्त किया जा रहा हो। शरीर के लिए इन सभी के अपने-अपने फायदे हैं। गेहूं का चोकर फाइबर का सबसे अच्छा स्त्रोत है। बादाम-अखरोट, चावल जैसे अन्य अनाजों की अपेक्षा गेहूं के चोकर में अधिक फाइबर होता है।  साबुत गेहूं और गेहूं के चोकर के फायदों को समझने के लिए भोजन में मौजूद रेशे के विषय में जानना जरूरी है। वनस्पति का वह भाग जो खाने योग्य, लेकिन अपाच्य होता है, आहारीय फाइबर कहलाता है। इसलिए, अच्छी सेहत के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ खाना आवश्यक है।


गेहूं का चोकर क्या हैं

 साबुत गेहूं में पाया जाने वाला चोकर अपने स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न गुणों के कारण महत्वपूर्ण है। गेहूं के दाने का बाहरी आवरण गेहूं का चोकर है, जिसे सामान्य बोलचाल में गेहूं का छिलका कहा जाता है। गेहूं की पिसाई के समय इसका बाहरी आवरण हट जाता है और अंदरूनी श्वेतसार पिस कर आटा बन जाता है। चोकर के कारण गेहूं का आटा भूरा दिखाई देता है। गेहूं के चोकर में अघुलनशील फाइबर होता है, जिसे सैलूलोज कहते हैं। इसमें कैल्शियम, सिलीनियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस जैसे खनिजों के साथ-साथ विटमिन ई और बी कॉम्प्लेक्स पाए जाते हैं। इसलिए, जहां मैदा रिफाइंड आटा देखने में सुंदर लगता है और कुछ पकवानों को चिकना बनाता है, वहीं छिलका सहित साबुत गेहूं का आटा सेहत के लिए फायदेमंद होता है। आवश्यक फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर छिलका सहित गेहूं और इसका चोकर स्टार्च के पाचन के लिए कुदरत का पौष्टिक उपहार है। इसलिए विशेषज्ञ इसके सेवन पर जोर देते हैं।


पाचन तंत्र मजबूत बनाएं

हमारी पाचनशक्ति और सामान्य तंदुरुस्ती में फाइबर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आहार में फाइबर की कमी होने से पाचनतंत्र उपयुक्त ढंग से काम नहीं करता है। हालांकि, हमारा पाचनतंत्र अस्वास्थ्यकर आहार और भावनात्मक आवेग से उत्पन्न तनाव का कुछ समय तक तो सामना कर सकता है, लेकिन बाद में समस्या खड़ी हो सकती है। इसलिए अपने पाचनतंत्र की शक्ति बनाए रखने के लिए सही कदम उठाना जरूरी है।


कब्ज से दिलाए राहत

इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि कब्ज दूर करने और सहज शौच के लिए गेहूं का चोकर सर्वश्रेष्ठ फाइबर है। यह पाचनतंत्र में पदार्थों की गति बनाए रखता है। अनेक लोगों को समय-समय पर पेट फूलने और सुस्ती जैसी पाचन संबंधी गड़बड़ी की शिकायत रहती है। जब हम अनियमित आहार अपनाते हैं और हमारी पाचन क्रिया की गति धीमी हो जाती है तब हालत और भी बिगड़ सकते हैं। लेकिन फाइबर और खासकर गेहूं के चोकर का पर्याप्त सेवन करने से पाचन संबंधी परेशानी और कब्जियत से मुक्ति में मदद मिलती है।


सुखी सब्जियाँ

 गाजर को कद्दूकस कर सुखाकर पीस लें। इसे भी मसालादानी में रखें। प्रतिदिन मसालों के साथ इसका भी प्रयोग करें। विटामिन्स से भरपूर खाना प्रतिदिन खाएँ और खिलाएँ।

अदरक को काटकर, सुखाकर पीस लें। इसे भी मसालादानी में रखें। प्रतिदिन आप मसालों के साथ पिसी अदरक का भी उपयोग कर सकते हैं। चाय मसाले में भी इसे उपयोग में ला सकते हैं।

हरी मिर्च को काटकर सुखा लें। थोड़े-से तेल में सेंककर मिक्चर में मिलाएँ, स्वाद बढ़ जाएगा।

हरी मिर्च के डंठल तोड़कर सुखा लें। पीसकर पावडर बना लें। इसे भी मसालादानी में रखें। भिंडी, चतुरफली, बरबटी आदि सब्जियों के हरे रंग के लिए एवं मसालों के साथ इसका उपयोग करें।


अमरूद

 कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) का दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रातःकाल करना चाहिए। अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रातः खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। 

अमरूद खाने या अमरूद के पत्तों का रस पिलाने से भांग का नशा कम हो जाता है। ताजे अमरूद के 100 ग्राम बीजरहित टुकड़े लेकर उसे ठंडे पानी में 4 घंटे भीगने दीजिए। इसके बाद अमरूद के टुकड़े निकालकर फेंक दें। इस पानी को मधुमेह के रोगी को पिलाने से लाभ होता है। 

अमरूद के ताजा पत्ते में एक छोटा-सा टुकड़ा कत्था लपेटकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। पके हुए अमरूद का 50 ग्राम गूदा, 10 ग्राम शहद के साथ खाने से शरीर में शक्ति व स्फूर्ति बढ़ती है। 

सुबह-शाम एक अमरूद भोजन के पश्चात खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है। साथ ही चिड़चिड़ापन एवं मानसिक तनाव दूर होता है।


हरड़

 हरड़ का काढ़ा त्वचा संबंधी एलर्जी में लाभकारी है। हरड़ के फल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और इसका सेवन दिन में दो बार नियमित रूप से करने पर जल्द आराम मिलता है। एलर्जी से प्रभावित भाग की धुलाई भी इस काढ़े से की जा सकती है। इसी तरह, फंगल एलर्जी या संक्रमण होने पर हरड़ के फल और हल्दी से तैयार लेप प्रभावित भाग पर दिन में दो बार लगाएं, त्वचा के पूरी तरह सामान्य होने तक इस लेप का इस्तेमाल जारी रखें। मुंह में सूजन होने पर हरड़ के गरारे करने से फायदा मिलता है।


हरड़ का लेप पतले छाछ के साथ मिलाकर गरारे करने से मसूढ़ों की सूजन में भी आराम मिलता है। इसी तरह, हरड़ का चूर्ण दुखते दांत पर लगाने से भी तकलीफ कम होती है। हरड़ स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक होता है जिसके प्रयोग से बाल काले, चमकीले और आकर्षक दिखते हैं। हरड़ के फल को नारियल तेल में उबालकर (हरड़ पूरी तरह घुलने तक) लेप बनाएँ और इसे बालों में लगाएं या फिर प्रतिदिन 3-5 ग्राम हरड़ पावडर एक गिलास पानी के साथ सेवन करें। हरड़ का गूदा कब्ज से राहत दिलाने में भी गुणकारी होता है। इस गूदे को चुटकीभर नमक के साथ खाएं या फिर 1/2 ग्राम लौंग अथवा दालचीनी के साथ इसका सेवन करें।


गुणकारी छिलके

 नींबू और संतरे के छिलकों को सुखाकर अलमारी में रखा जाए तो इनकी खुशबू से झिंगुर व अन्य कीट भाग जाते हैं। ऐसे सूखे छिलकों को जलाने से जो धुआं होता है उनसे मच्छर मर जाते हैं। इसकी राख से दांत साफ किए जाएँ तो दुर्गंध दूर हो जाती है। नींबू निचोड़ने के बाद बचे हुए हिस्से को त्वचा पर रगड़ने से त्वचा की चिकनाई कम होती है। इसके रगड़ने से मुंहासे भी कम होते हैं और रंग निखरता है। पीतल और तांबे के बर्तन इससे चमकदार बनते हैं।


नींबू के छिलकों को कोहनी और नाखूनों पर रगड़ने से कालापन कम होता है और गंदगी हट जाती है। इन्ही छिलकों को नमक, हींग, मिर्च और चीनी के साथ पीसने से स्वादिष्ट चटनी बनती है। संतरे का रस तो चेहरे को कांतिमय बनाता ही है, छिलकों को यदि छाया में सुखाकर पीसा जाए तो यह उबटन का काम करता है जिससे चेहरे के दाग-धब्बे हटते हैं और त्वचा खूबसूरत बनती है। संतरे के छिलके को पानी में डालकर नहाने से पसीने की दुर्गंध दूर होती है और ताजगी आती है। 


कैल्शियम

 प्रत्येक युवक की यह तमन्ना होती है कि उसकी भुजाएँ बलिष्ठ हों और चेहरे से ज्यादा आकर्षण पूरे शरीर में दिखे। इसके लिए वे तरह-तरह के व्यायाम करते हैं और अत्याधुनिक मशीनी सुविधाओं से सज्जित जिम में भी जाते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि मजबूत भुजाएँ और बलिष्ठ शरीर के लिए कैल्शियम का कितना महत्व है?


आइए देखते हैं हमारे भोजन मे यह किस तरह से मिलता है और शरीर को मजबूती प्रदान करता है। इसके महत्व को आमतौर पर सभी माताएँ जानती हैं। बच्चों को दिन में दो-तीन बार जबरन दूध पिलाने वाली आज की माताएँ जानती हैं कि कैल्शियम उसकी बढ़ती हड्डियों के लिए कितना जरूरी है। वहीं पुराने समय की या कम पढ़ी-लिखी ग्रामीण माताएँ भी इतना तो अवश्य जानती थीं कि दूध पीने से बच्चे का डील-डौल व कद बढ़ता है। यह बच्चे को चुस्त व बलिष्ठ भी बनाता है। भले ही उन्हें दूध में पाए जाने वाले अनमोल कैल्शियम का ज्ञान न हो, जो बच्चों की हड्डियों, दाँतों के स्वरूप, उनके आकार व उन्हें स्वस्थ व मजबूत बनाने में अति सहायक सिद्ध हुआ है। इसी कैल्शियम की निरंतर कमी के कारण बच्चों के दाँत, हड्डियाँ व शरीर कमजोर हो जाते हैं।


'आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति' में भी कैल्शियम का बड़ा महत्व है। कैल्शियम को कमजोर व पतली हड्डियों को मजबूत करने, दिल की कमजोरी, गुर्दे की पथरियों को नष्ट करने और महिलाओं के मासिक धर्म से संबंधित रोगों के उपचार में लाभकारी पाया गया है।

इसलिए हमें प्रतिदिन कैल्शियम तत्व निम्न रूप से लेना चाहिए-


• गर्भवती व दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए 1200 मिलीग्राम।

• 6 मास से छोटे बच्चों के लिए 400 मिलीग्राम।

• 6 मास से 1 वर्ष के बच्चों के लिए 600 मिलीग्राम।

• 1 वर्ष से 10 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 800 मिलीग्राम।

• 11 वर्ष से ऊपर सभी आयु वर्ग के लिए 1200 मिलीग्राम।


दैनिक भोजन में हमें कुछ पदार्थों से कैल्शियम तत्व मिल सकता है जैसे पनीर, सूखी मछली, राजमा, दही, गरी गोला, सोयाबीन आदि। इसी प्रकार दूध एक गिलास (गाय) से 260 मिलीग्राम, दूध एक गिलास (भैंस) से 410 मिलीग्राम कैल्शियम मिलता है। प्रेशर कुकर में पकाए गए चावल, मोटे आटे की रोटी से हमें काफी कैल्शियम मिल सकता है। कैल्शियम उचित मात्रा में खाने से हमारी बुद्धि प्रखर होती है और तर्क शक्ति भी बढ़ती है। हरी पत्तेदार सब्जियों में भी यह तत्व पाया जाता है।


आयुर्वेदिक काढ़ा

 दशमूल काढ़ा : विषम ज्वर, मोतीझरा, निमोनिया का बुखार, प्रसूति ज्वर, सन्निपात ज्वर, अधिक प्यास लगना, बेहोशी, हृदय पीड़ा, छाती का दर्द, सिर व गर्दन का दर्द, कमर का दर्द दूर करने में लाभकारी है व अन्य सूतिका रोग नाशक है।


महामंजिष्ठादि काढ़ा : समस्त चर्म रोग, कोढ़, खाज, खुजली, चकत्ते, फोड़े-फुंसी, सुजाक, रक्त विकार आदि रोगों पर विशेष लाभकारी है।


महासुदर्शन काढ़ा : विषम ज्वर, धातु ज्वर, जीर्ण ज्वर, मलेरिया बुखार आदि समस्त ज्वरों पर विशेष लाभकारी है, भूख बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति बढ़ाता है। श्वास, खांसी, पांडू रोगों आदि में हितकारी। रक्त शोधक एवं यकृत उत्तेजक ।


महा रास्नादि काढ़ा : समस्त वात रोगों में लाभकारी। आमवात, संधिवात, सर्वांगवात, पक्षघात, ग्रध्रसी, शोथ, गुल्म, अफरा, कटिग्रह, कुब्जता, जंघा और जानु की पीड़ा, वन्ध्यत्व, योनी रोग आदि नष्ट होते हैं।


रक्त शोधक : सब प्रकार की खून की खराबियां, फोड़े-फुंसी, खाज-खुजली, चकत्ते, व्रण, उपदंश (गर्मी), आदि रोगों पर लाभकारी है तथा खून साफ करता है।


सामान्य मात्रा : 10 से 25 मिली तक बराबर पानी मिलाकर भोजन करने के बाद दोनों समय पिए जाते हैं।

विविध

अर्क अजवायन : पेट व आंतों के दर्द में लाभकारी। बदहजमी, अफरा, अजीर्ण, मंदाग्नि में लाभप्रद। दीपक तथा पाचक व जिगर की बीमारियों को दूर करता है।


अर्क दशमलव : प्रसूत ज्वर एवं सब प्रकार के वात रोगों में लाभदायक है।


अर्क सुदर्शन : अनेक तरह के बुखारों में लाभदायक है। पुराने बुखार, विषम ज्वर, त्रिदोष ज्वर, इकतारा, तिजारी बुखारों को नष्ट करता है।


अर्क सौंफ : भूख बढ़ाता है। आंव-पेचिस आदि में लाभदायक है। मेदा व जिगर की बीमारियों में फायदेमंद है। प्यास व अफरा कम करता है। पित्त, ज्वर, बदहजमी, शूल, नेत्ररोग आदि में लाभकारी है।


खमीरा गावजवां : दिल-दिमाग को ताकत देता है। घबराहट व चित्त की परेशानी दूर करता है। प्यास कम करता है, नेत्रों को लाभदायक है। खांसी, श्वास (दमा), प्रमेह आदि में लाभकारी। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह-शाम चाटना चाहिए।


खमीरा सन्दल : अंदरूनी गर्मी को कम करता है, प्यास को कम करता है, दिल को ताकत देता है व खास तौर पर दिल की धड़कन को कम करता है। पैत्तिक दाह, मुंह सूखना, घबराहट, जलन, गर्मी से जी मिचलाना तथा मूत्र दाह में लाभकारी। शीतल व शांतिदायक। गर्भवती स्त्रियों के लाभदायक। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह, दोपहर व शाम अर्क गावजवां के साथ या केवल चाटना चाहिए।


गुलकन्द प्रवाल युक्त : अत्यंत शीतल है। कब्ज दूर करता है व पाचन शक्ति बढ़ाता है। दिल, फेफड़े, मैदा व दिमाग को ताकत देता है। जिगर की सूजन व हरारत कम करता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष लाभदायक है। गर्मी के मौसम में बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सबको इसका सेवन करना चाहिए। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह शीतल जल या दूध के साथ लेना चाहिए।


माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।


सिरका गन्ना : पाचक, रुचिकारक, बलदायक, स्वर शुद्ध करने वाला, श्वास, ज्वर तथा वात नाशक। मात्रा 10 से 25 मि.ली. सुबह व शाम भोजन के बाद।


सिरका जामुन : यकृत (लीवर) व मेदे को लाभकारी। खाना हजम करता है, भूख बढ़ाता है, पेशाब लाता है व तिल्ली के वर्म को दूर करने की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 10 से 25 मि.ली. सुबह व शाम भोजन के बाद।


आयुर्वेदिक चूर्ण

 हम इससे पहले आयुर्वेदिक दवाओं में गोलियों, वटियों भस्म व पिष्टी की जानकारी आपको दे चुके हैं। आयुर्वेद के कुछ चूर्ण, जो दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं, की जानकारी दी जा रही है-


अश्वगन्धादि चूर्ण : धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।


अविपित्तकर चूर्ण : अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं। मात्रा 3 से 6 ग्राम भोजन के साथ।


अष्टांग लवण चूर्ण : स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।


आमलकी रसायन चूर्ण : पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं। मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।


आमलक्यादि चूर्ण : सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।


एलादि चूर्ण : उल्टी होना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि में लाभदायक तथा प्यास नाशक है। मात्रा 1 से 3 ग्राम शहद से।


गंगाधर (वृहत) चूर्ण : अतिसार, पतले दस्त, संग्रहणी, पेचिश के दस्त आदि में। मात्रा 1 से 3 ग्राम चावल का पानी या शहद से दिन में तीन बार।


जातिफलादि चूर्ण : अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी (जुकाम) को नष्ट करता है। मात्रा 1.5 से 3 ग्राम शहद से।


दाडिमाष्टक चूर्ण : स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद।


चातुर्जात चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम दिन में तीन बार शहद से।


चातुर्भद्र चूर्ण : बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।


चोपचिन्यादि चूर्ण : उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।


गोंद के औषधीय गुण


किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .

• कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .

• नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है

पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।

• आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।

• सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।

• बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।

• हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है • एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती

• गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .

• प्रपोलीश• यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने मंच तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।

• ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।

• इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .


घर का बना घी

 ह्रदयरोग के साथ मोटापे और दिल के रोगियों का सबसे अधिक गुस्सा घी पर ही उतरता है। आयुर्वेद में घी को ओषधी माना गया है । इस सबसे प्राचीन सात्विक आहार से सर्वदेशों का निवारण होता है । वात और पित्त को शांत करने में सर्वश्रेष्ट है साथ ही कफ भी संतुलित होता है । इससे स्वस्थ वसा प्राप्त होती है , जो लीवर और रोग प्रतिरोधक प्रणाली को ठीक रखने के लिए जरूरी है । घर का बना हुआ घी बाजार के मिलावटी घी से कही बेहतार होता है । यह तो पूरा का पूरा सैचुरेटेड फैट है ,कहते हुए आप  इंकार में अपना सिर हिला रहे होगे । ज़रा धीरज रखे । घी में उतने अवगुण पाली अनासोचुरेतेड वसा को आग पर चढना अस्वास्थकर होता है ,क्योंकी ऐसा करने से पैराक्सैड्स और एनी फ्री रेडिकल्स निकलते है । इन पदार्थों की वजह से अनेक  बीमारिया और समस्याएँ पैदा होती है । इसका अर्थ यह भी है कि वनास्पतिजन्य सभी खाध्य तेल स्वास्थ केलिए कमोवेश हानिकारक  तो है ही।


फायदेमंद है घी


घी का मामला थोड़ा जुदा है। वो इसलिए कि घी का स्मोकिंग पाइंट दूसरी वसा ओं की तुलना में बहुत अधिक है । यही वजह है कि पकाते समय आसानी से नहीं जलता । घी में स्थिर सैचुरेटेड बाँडस बहुत अधिक होते है जिससे फ्री रेडीकल्स निकलने की आशंका बहुत कम होती है । घी की छोटी फैटी एसिड की चेन को शरीर बहुत जल्दी पचा लेता है । अब तक तो सभी यही समझा रहे थे कि देशी घी ही रोगों की सबसे बड़ी जड़ है ?


कोलेस्ट्राल कम होता है


घी पर हुए शोध बताते है कि इससे रक्त और आँतों में मोजूद कोलेस्ट्राल कम होता है । ऐसा इसलिए होता है , क्यों कि घी से बाइलारी लिपिड का स्राव बढ़ जाता है । घी नाही प्रणाली एवं मस्तिष्क की श्रेष्ट ओषधि माना गया है । इससे आँखों पर पड़ने वाला दबाव कम होता है , इसलिए ग्लूकोमा के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है । सकता है इस जानकारी ने आपको आश्चर्य में दाल दिया हो । घी पेट के एसिड्स के बहाव को बढाने में उत्प्रेरक का काम करता है जिससे पाचन क्रिया ठीक होती है । दूसरे अन्य वसा में यह गुण नहीं है । मक्खन , तेल आदि पाचन क्रिया को धीमा कर देते है और पेट में निष्क्रिय होकर बैठ जाते है । जाहिर है कि आप ऐसा नहीं चाहेगे । घी में भरपूर एंटी आक्सीडेट्स होते है तथा यह अन्य खाध्य पदार्थों से प्राप्त विटामिन और खनिजों को जज्ब करने में मदद करता है ।


यह शरीर के सभी ऊतकों की प्रत्येक सतह का पोषण करता है तथा रोग प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है । इसमें ब्यूटिरिक एसिड नामक फैटी एसिड भी भरपूर होता हैजिसे एंटीवायरल माना जाता है । एंटीवायरल विशेषता ओं के कारण कैसर की गठान की वृद्दि रूक जाती है । जलने के कारण हुए फफोलों पर घी बहुत अच्छा काम करता है । घी याददाश्त को बढाने और सीखने की प्रवृत्ति को विकसित करने में मदद करता है । ध्यान देने योग्य सलाह यह है की कोलेस्ट्राल की मात्रा कम हो लेकिन जिनका कोलेस्ट्राल पहले से ही बढ़ा हुआ है उन्हें घी से परहेज रखना चाहिए ।


घी खाएं या नहीं …


यदि आप स्वास्थ्य है, तो घी जरूर खाएं ,क्योंकी यह मक्खन से अधिक सुरक्षित है । इसमें तेल से अधिक पोषक तत्व है। आपने पंजाब और हरियाणा के निवासियों को देखा होगा । वे टनों घी खाते है ,लेकिन सबसे अधिक फिट और मेहनीत होते है ।यद्यपि घी पर अभी और शोधों के नतीजे आने शेष है , लेकिन प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में अल्सर , कब्ज , आँखों की बीमारियों के साथ त्वचा रोगों के इलाज के लिए घी का प्रयोग किया जाता है ।


क्या रखें सावधानियां ……


भैस के दूध के मुकाबले गाय के दूध में वसा की मात्रा कम होती है । इसलिए शुरू में निराश न हो । हमेशा इतना बनाएं की वह जल्दी ही ख़त्म हो जाए । अगले हफ्ते पुनः यही प्रक्रिया दोहराई जा सकती है । गाय के दूध में सामान्य दूध की ही तरह प्रदूषण का असर हो सकता है , मसलन कीटनाशक और कृत्रिम खाद के अंश चारे के साथ के पेट में जा सकते है । जैविक घी में इस तरह के प्रदूषण से बचने की कोशिश की जाती है । यदि संभव हो तो गाय के दूध में कीटनाशकों और रासायनिक खाद के अंश की जांच कराई जा सकती है । जिस तरह हर चीज की अति बुरी होती है इसी तरह घी का प्रयोग भी संतुलित मात्रा में किया जाना चाहिए ।


नींबू

 1-शुद्ध शहद में नींबू की शिकंजी पीने से मोटापा दूर होता है।


2-नींबू के सेवन से सूखा रोग दूर होता है।


3-नींबू का रस एवं शहद एक-एक तोला लेने से दमा में आराम मिलता है।


4-नींबू का छिलका पीसकर उसका लेप माथे पर लगाने से माइग्रेन ठीक होता है।


5- नींबू में पिसी काली मिर्च छिड़क कर जरा सा गर्म करके चूसने से मलेरिया ज्वर में आराम मिलता है।


6-नींबू के रस में नमक मिलाकर नहाने से त्वचा का रंग निखरता है और सौंदर्य बढ़ता है।


7- नौसादर को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद ठीक होता है।


8- नींबू के बीज को पीसकर लगाने से गंजापन दूर होता है।


9-बहरापन हो तो नींबू के रस में दालचीनी का तेल मिलाकर डालें।


10-आधा कप गाजर के रस में नींबू निचोड़कर पिएं, रक्त की कमी दूर होगी।


11- दो चम्मच बादाम के तेल में नींबू की दो बूंद मिलाएं और रूई की सहायता से दिन में कई बार घाव पर लगाएं, घाव बहुत जल्द ठीक हो जाएगा।


12- प्रतिदिन नाश्ते से पहले एक चम्मच नींबू का रस और एक चम्मच ज़ैतून का तेल पीने से पत्थरी से छुटकारा मिलता है।


13- किसी जानवर के काटे या डसे हुए भाग पर रूई से नींबू का रस लगांए, लाभ होगा।


14- एक गिलास गर्म पानी में नींबू डाल कर पीने से पांचन क्रिया ठीक रहती है।


15- चक्तचाप, खांसी, क़ब्ज़ और पीड़ा में भी नींबू चमत्कारिक प्रभाव दिखाता है।


16- विशेषज्ञों का कहना है कि नींबू का रस विटामिन सी, विटामिन, बी, कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरस, मैग्नीशियम, प्रोटीन और कार्बोहाईड्रेट से समृद्ध होता है।


17- विशेषज्ञों का कहना है कि यदि मसूढ़ों से ख़ून रिसता हो तो प्रभावित जगह पर नींबू का रस लगाने से मसूढ़े स्वस्थ हो जाते हैं।


18- नींबू का रस पानी में मिलाकर ग़रारा करने से गला खुल जाता है।


19- नींबू के रस को पानी में मिलाकर पीने से त्वचा रोगों से भी बचाव होता है अतः त्वचा चमकती रहती है, कील मुंहासे भी इससे दूर होते हैं और झुर्रियों की भी रोकथाम करता है।


20- नींबू का रस रक्तचाप को संतुलित रखता है।


21-अगर बॉडी में विटामिन सी की मात्रा कम हो जाए, तो एनिमिया, जोड़ों का दर्द, दांतों की बीमारी, पायरिया, खांसी और दमा जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। नीबू में विटामिन सी की क्वॉन्टिटी बहुत ज्यादा होती है। इसलिए इन बीमारियों से दूरी बनाने में यह आपकी मदद करता है।


22- पेट खराब, पेट फूलना, कब्ज, दस्त होने पर नीबू के रस में थोड़ी सी अजवायन, जीरा, हींग, काली मिर्च और नमक मिलाकर पीने से आपको काफी राहत मिलेगी।


23- गर्मी में बुखार होने पर अगर थकान महसूस हो रही हो या पीठ और बांहों में दर्द हो, तो भी आपके पास नींबू का उपाय है। आप एक चम्मच नींबू के रस में दस बूंद तुलसी की पत्तियों का रस, चार काली मिर्च और दो पीपली का चूर्ण मिलाकर लें। इसे दो खुराक के तौर सुबह-शाम लें।


24-चेहरे पर मुंहासे होना एक आम समस्या है। इसे दूर करने के लिए नींबू रस में चंदन घिसकर लेप लगाएं। अगर दाद हो गया है, तो इसी लेप में सुहागा घिसकर लगाएं, आपको आराम मिलेगा।


25- कई बार लंबी दूरी की यात्रा करने पर शरीर में बहुत थकान महसूस होती है। ऐसे में एक गिलास पानी में दो नींबू निचोड़कर उसमें 50 ग्राम किशमिश भिगो दें। रातभर भीगने के बाद सुबह किशमिश पानी में मथ लें। यह पानी दिनभर में चार बार पिएं। इससे एनर्जी मिलेगी और बॉडी की फिटनेस भी बनी रहेगी।


26-अधिक थकान और अशांति के कारण कई बार नींद नहीं आती। अगर आप भी इस प्रॉब्लम से जूझ रहे हैं, तो लेमन रेमेडी अपनाएं। रात को सोने से पहले हाथ-पांव, माथे, कनपटी व कान के पीछे सरसों के तेल की मालिश करें। इसके बाद थोड़े से नीबू के रस में लौंग घिसकर चाट लें। ऐसा करने से आपको नींद बहुत जल्दी आएगी।


27-मोटापे से आजकल हर दूसरा शख्स परेशान होता है। इससे छुटकारा पाने के लिए आप मूली के रस में नीबू का रस व थोड़ा नमक मिलाकर नियमित रूप से लें। मोटापा दूर होगा।


28- अगर याददाश्त कमजोर हो गई है, तो गिरी, सोंठ का चूर्ण और मिश्री को पीसकर नींबू के रस में मिलाएं। फिर इसे धीरे-धीरे उंगली से चाटें।


29-सुंदर दिखना तो सभी चाहते हैं। अगर आपकी भी यही चाहत है, तो एक चम्मच बेसन, आधा चम्मच गेहूं का आटा, आधा चम्मच गुलाब जल और आधा चम्मच नींबू का रस मिलाकर लोशन तैयार करें। इसे धीरे-धीरे चेहरे पर मलें। कुछ ही दिनों में आपका चेहरा निखर जाएगा।


30- जहां तक हो सके, कागजी पीले रंग के नीबू का यूज करें। इसमें दो चुटकी सेंधा नमक या काला नमक मिला सकते हैं। यह टिप्स हमारी रीडर मीनू मोहले ने भेजे हैं।


अनिद्रा अर्थात नींद न आने का रोग Insomnia

 परिचय: अनिद्रा अर्थात नींद न आने का रोग आज के समय का एक बहुत ही आम रोग है तथा यह रोग नाड़ी तंत्र से सम्बन्धित रोग है। इस रोग से पीड़ित रोगी को बहुत कम नींद आती है। वैसे देखा जाए तो सभी व्यक्तियों को रोजाना 6 से 8 घण्टे की नींद लेना जरूरी होता है क्योंकि नींद के समय ही तनावयुक्त पेशियों व स्नायुओं को आराम मिलता है। लेकिन अधिक सोना (नींद लेना) भी हानिकारक होता है क्योंकि इससे रोगी के शरीर में कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं जैसे-आलस्य रोग, सुस्तीपन। नींद जितनी तेज तथा गहरी होती है, उतनी ही इसकी आवश्यकता भी कम पड़ती है तथा लाभ भी अधिक होता है। जब किसी व्यक्ति को आवश्यकता के अनुसार नींद नहीं आती है तो उसे अनिद्रा का रोगी कहते हैं। इस रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है। यह बहुत ही कष्टदायक रोग है। इस रोग के कारण कभी-कभी तो रोगी व्यक्ति पागल तक हो जाता है।

अनिद्रा रोग होने का लक्षण: इस रोग से पीड़ित रोगी को नींद बहुत ही कम आती है। कभी-कभी तो व्यक्ति को नींद भी नहीं आती है और वह पूरी रात सोते समय इधर-उधर करवट लेता रहता है। कभी-कभी जब व्यक्ति को नींद आ भी जाती है तो उसकी आंख जल्दी ही खुल जाती है तथा दुबारा नींद नहीं आती है। रोगी का शरीर थका-थका सा लगने लगता है। उसका किसी काम को करने में मन नहीं लगता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की स्मरण शक्ति भी कमजोर पड़ जाती है तथा उसका रक्तचाप सामान्य से अधिक हो जाता है। अनिद्रा रोग के रोगी के चेहरे की स्वाभाविक चमक खो जाती है।   

अनिद्रा रोग के कारण रोगी व्यक्ति को अपनी आंखें भारी-भारी सी लगने लगती है तथा वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है। रोगी व्यक्ति में मानसिक, शारीरिक तथा भावनात्मक तनाव की स्थिति हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।


अनिद्रा रोग होने का कारण:-

1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अनिद्रा रोग होने का सबसे प्रमुख कारण मानसिक तनाव है।

2. अधिक चिंता करना, जरूरत से अधिक मानसिक या शारीरिक श्रम का अभाव तथा अधिक क्रोध करने के कारण अनिद्रारोग हो जाता है।

3. पेट में कब्ज बनने के कारण भी अनिद्रा रोग हो सकता है।

4. रात के समय में अधिक भोजन का सेवन करने, भूखे पेट सो जाने, चाय-कॉफी का सेवन अधिक करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

5. शरीर में खून की कमी होने तथा अधिक कमजोरी आ जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।

6. धूम्रपान करना, वायुविकार, शरीर में किसी अन्य प्रकार का रोग हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।

7. ज्यादा औषधियों का सेवन करने के कारण भी अनिद्रा रोग हो सकता है।

8. शरीर के रक्त में किसी प्रकार से दूषित द्रव्य के मिल जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

9. मस्तिष्क के स्नायु (नाड़ियों) में किसी प्रकार से सूजन तथा दर्द होने के कारण अनिद्रा रोग हो सकता है।

10. अधिक दिमागी कार्य करने तथा शारीरिक परिश्रम कम करने या बिल्कुल न करने से, कमरे में अधिक प्रकाश होने के कारण भी यह रोग व्यक्ति हो सकता है।

11. एक ही कमरे में बहुत से व्यक्तियों के साथ सोने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।

12. सोने का स्थान अधिक गंदा होना, चारपाई तथा बिछौने आदि का गंदा होने और सोने के स्थान पर खटमल आदि होने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।

13. मानसिक, स्नायुविक उत्तेजना, शोरयुक्त वातावरण के कारण, उत्तेजना युक्त दवाइयों का सेवन करने से भी अनिद्रा रोग को हो सकता है।


अनिद्रा रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

1. इस रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिन तक रसाहार जैसे मौसमी, खीरे, संतरे आदि का रस पीना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को फलों का सेवन करना चाहिए। रोगी को बिना पका हुआ और संतुलित भोजन करना चाहिए।

2. अनिद्रा रोग से ग्रस्त व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ दिनों तक लौकी का रायता खाना चाहिए तथा दूध, दही, मट्ठे आदि का सेवन भी करना चाहिए। इन चीजों के सेवन के फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

3. दही में शहद, सौंफ, कालीमिर्च मिलाकर प्रतिदिन खाने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका अनिद्रा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

4. अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी को पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह तथा शाम को पिलाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

5. यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में छोटी हरड़ को चूसे अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

6. अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी मसालेदार या ज्यादा तले-भुने भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से रोगी का अनिद्रा रोग और भी बढ़ जाता है।

7. इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में नंगे पैर घास पर चलना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

8. सुबह के समय प्रतिदिन व्यायाम करने से अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी को रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

9 . अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इलाज करने के लिए रोगी से प्रतिदिन एनिमा क्रिया करानी चाहिए तथा इसके बाद मिट्टी की पट्टी का लेप उसके शरीर पर करना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को कटिस्नान, मेहनस्नान, रीढ़स्नान कराना चाहिए और सप्ताह में एक बार रोगी व्यक्ति को अपने शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए।

10. सोने से पहले रोगी व्यक्ति को गर्मपाद स्नान (गर्म पानी से पैरों को धोना) करना चाहिए और पैरों के तलवों पर सरसों के तेल से मालिश करनी चाहिए। इससे अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

11. रात को सोते समय रोगी व्यक्ति को अपने सिर में सूर्यतप्त नीला तेल लगाना चाहिए जिसके फलस्वरूप नींद अच्छी आती है तथा अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

12. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन सूर्य नमस्कार, वज्रासन, मकरासन, उत्तानपादासन, पश्चिमात्तानासन, हलासन, भुजंगासन,  सर्वांगासन तथा पवनमुक्तासन करें तो रोगी व्यक्ति का अनिद्रा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

13. रोगी व्यक्ति को शीतली, शीतकारी नाड़ीशोधन प्राणायाम तथा ध्यान का अभ्यास प्रतिदिन करने से अनिद्रा रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।

14. रात को सोने से पहले रोगी व्यक्ति को शवासन क्रिया करनी चाहिए या फिर उल्टी गिनती तथा योगनिद्रा की क्रिया करनी चाहिए इससे अनिद्रा रोग में बहुत लाभ मिलता है।

15. रोगी व्यक्ति को उत्तर की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए तथा बाईं करवट लेकर ही सोना चाहिए। इसके फलस्वरूप अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है तथा रोगी व्यक्ति को अच्छी नींद भी आने लगती है।

16. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अनिद्रा रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति के दोनों पैरों के बीच की उंगली के पिछले भाग को हाथ के अंगूठे से दबाना चाहिए। इसके बाद लगभग 14 से 15 मिनट के बाद फिर इसे छोड़ देना चाहिए तथा फिर से इस क्रम को दोहराना चाहिए। यह क्रिया कम से कम 10 बार करनी चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है तथा रोगी व्यक्ति को नींद भी अच्छी आने लगती है।

17. रोगी व्यक्ति को गहरी नींद लेनी चाहिए और यह नींद ऐसी होनी चाहिए जैसे जीवित प्राणी शव की भांति निश्चेष्ट होकर सम्पूर्ण रूप से विश्राम (आराम) कर रहा हो। तीन घण्टे की गहरी नींद आठ घंटे की उथली व स्वप्नों से भरी नींद से कहीं अधिक अच्छी होती है। इसलिए गहरी नींद में सोना चाहिए और चिंता फिक्र नहीं करनी चाहिए।


अच्छी नींद लेने के लिए कुछ उपाय:-

1. सोते समय सिर के नीचे तकिया लगाना चाहिए क्योंकि इससे रक्त संचारण का प्रवाह सिर से शरीर की नीचे की ओर होता है और नींद अच्छी आती है। सोते समय सिर हमेशा ऊंचा और बाकी धड़ थोड़ा नीचे रहना चाहिए।

2. सोते समय बाईं करवट लेकर सोना चाहिए क्योंकि इससे श्वास नली सीधी रहती है तथा शरीर में प्राणवायु का संचारण ठीक प्रकार से होता है।

3. नींद लेने के लिए कभी भी दवा का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि दवा से मस्तिष्क के स्नायुतंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इससे कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।

4. इस प्रकार कहा जा सकता है कि गहरी नींद में सोकर हम अनिद्रा रोग को दूर कर सकते हैं तथा स्वस्थ व निरोगी रहकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इसलिए जब कभी भी सोना चाहिए तो गहरी नींद में सोना चाहिए।

मिर्गी रोग Epilepsy

 परिचय: जब मिर्गी के रोग के दौरे पड़ते हैं तो रोगी के शरीर में खिंचाव होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और फिर रोगी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है। रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी हो जाती हैं, पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर कभी-कभी तो रोगी की जीभ भी बाहर निकल जाती है जिसके कारण रोगी के दांतों से उसकी जीभ के कटने का डर भी लगा रहता है। मिर्गी के दौरे के समय में रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। मिर्गी का दौरा कुछ समय के लिए पड़ता है और जब दौरा खत्म होता है तो उसके बाद रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है।


मिर्गी रोग होने का कारण-


यह रोग कई प्रकार के गलत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।

अत्यधिक नशीले पदार्थों जैसे तम्बाकू, शराब का सेवन या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने के कारण मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और व्यक्ति को मिर्गी का रोग हो जाता है।

पेट या आंतों में कीड़े हो जाने के कारण भी मिर्गी का रोग हो सकता है।

कब्ज की समस्या होने के कारण भी व्यक्ति को यह रोग हो सकता है।

स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बन्धित रोगों के कारण भी मिर्गी का रोग हो सकता है।

मिर्गी का रोग कई प्रकार के अन्य रोग होने के कारण भी हो सकता है जैसे- स्नायु सम्बंधी रोग, ट्यूमर रोग, मानसिक तनाव, संक्रमक ज्वर आदि।

सिर में किसी प्रकार से तेज चोट लग जाने के कारण भी मिर्गी का रोग हो सकता है।

मिर्गी का रोग उन बच्चों को भी हो सकता है जिनके मां-बाप पहले इस रोग से पीड़ित हो।


मिर्गी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


मिर्गी के रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम 2 महीने तक फलों, सब्जियों और अंकुरित अन्न का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा रोगी को फलों एवं सब्जियों के रस का सेवन करके सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए।

मिर्गी के रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय गुनगुने पानी के साथ त्रिफला के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। तथा फिर सोयाबीन को दूध के साथ खाना चाहिए इसके बाद कच्ची हरे पत्तेदार सब्जियां खाने चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट तथा माथे पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। रोगी को कटिस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद उसे मेहनस्नान, ठंडे पानी से रीढ़ स्नान और जलनेति क्रिया करनी चाहिए।

मिर्गी रोग से पीड़ित रोगी का रोग ठीक करने के लिए सूर्यतप्त जल को दिन में कम से कम 6 बार पीना चाहिए और फिर माथे पर भीगी पट्टी लगानी चाहिए। जब पट्टी सूख जाए तो उस पट्टी को हटा लेना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को सिर पर आसमानी रंग का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए।

जब रोगी व्यक्ति को मिर्गी रोग का दौरा पड़े तो दौरे के समय रोगी के मुंह में रूमाल लगा देना चाहिए ताकि उसकी जीभ न कटे। दौरे के समय में रोगी व्यक्ति के अंगूठे को नाखून को दबाना चाहिए ताकि रोगी व्यक्ति की बेहोशी दूर हो सके। फिर रोगी के चेहरे पर पानी की छींटे मारनी चाहिए इससे भी उसकी बेहोशी दूर हो जाती है। इसके बाद रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए ताकि मिर्गी का रोग ठीक हो सके।


टाइफाईड रोग Typhoid

 


परिचय: इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण बैक्टीरिया का संक्रमण है। यह बैक्टीरिया व्यक्ति के शरीर में भोजन नली तथा आंतों में चले जाते हैं और फिर वहां से वे खून में चले जाते हैं और कुछ दिनों के बाद व्यक्ति को रोग ग्रस्त कर देते हैं। इस रोग में रोगी के शरीर पर गुलाबी रंग के छोटे-छोटे दानों जैसे धब्बे निकल जाते हैं। इस रोग में रोगी की तिल्ली बढ़ जाती है और उसके पेट में गड़बड़ी बढ़ जाती है। इस रोग में व्यक्ति को शाम के समय में अधिक बुखार हो जाता है और यह बुखार कई दिनों तक रहता है।


टाइफाईड रोग के लक्षण-


टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में हर समय बुखार रहता है तथा यह बुखार शाम के समय और भी तेज हो जाता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द भी रहता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी उल्टी भी हो जाती है तथा उसका जी मिचलाता रहता है।

टाइफाईड रोग के रोगी को भूख नहीं लगती तथा उसकी जीभ पर मैल की परत सी जम जाती है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी के शरीर की मांस-पेशियों में दर्द होता रहता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को कब्ज तथा दस्त की समस्या भी हो जाती है।


टाइफाईड रोग होने का कारण-


टाइफाईड रोग एक प्रकार के जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है इस जीवाणु में बूसीलस टायफोसस जीवाणु प्रमुख है।

बूसीलस टायफोसस जीवाणु दूध तथा मक्खन में तेजी से पनपता है। जब कोई व्यक्ति इसके संक्रमण से प्रभावित चीजों का सेवन कर लेता है तो उसे टाइफाईड रोग हो जाता है।

बूसीलस टायफोसस जीवाणु पानी, नालियों में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ, मक्खियों के शरीर से, मल-मूत्र से पैदा होता है। जब कोई व्यक्ति इस चीजों के सम्पर्क में आता है तो उसे टाइफाईड रोग हो जाता है।

जिन व्यक्तियों को टाइफाईड रोग हो चुका हो उसके सम्पर्क में यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति आ जाता है तो उसे भी टाइफाईड रोग हो जाता है।

बूसीलस टायफोसस जीवाणु किसी तरह से व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाता है तो यह उसके शरीर के अंदर एक प्रकार का जहर (विष) का निर्माण करता है जो खून के द्वारा स्नायु प्रणाली जैसे सारे अंगों में फैल जाता है जिसके कारण रोगी के शरीर में रक्तविषाक्तता की अवस्था प्रकट हो जाती है और उसे टाइफाईड रोग हो जाता है।


टाइफाईड रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


टाइफाईड रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को तब तक उपवास रखना चाहिए, जब तक कि उसके शरीर में टाइफाईड रोग होने के लक्षण दूर न हो जाए। फिर इसके बाद दालचीनी के काढ़े में काली मिर्च और शहद मिलाकर खुराक के रूप में लेना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित व्यक्ति को बुखार होने पर उसे लहसुन का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए, इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित व्यक्ति को उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद धीरे-धीरे फल खाने शुरू करने चाहिए तथा इसके बाद सामान्य भोजन सलाद, फल तथा अंकुरित दाल को भोजन के रूप में लेना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से टाइफाईड रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी के बुखार को ठीक करने के लिए प्रतिदिन रोगी को गुनगुने पानी का एनिमा देना चाहिए तथा इसके बाद उसके पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए। रोगी को आवश्यकतानुसार गर्म या ठंडा कटिस्नान तथा जलनेति भी कराना चाहिए जिसके फलस्वरूप टाइफाईड रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

यदि टाइफाईड रोग का प्रभाव बहुत तेज हो तो रोगी के माथे पर ठण्डी गीली पट्टी रखनी चाहिए तथा उसके शरीर पर स्पंज, गीली चादर लपेटनी चाहिए। इसके बाद उसे गर्मपाद स्नान क्रिया करानी चाहिए।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को जिस समय बुखार तेज नहीं हो उस समय उसे कुंजल क्रिया करानी चाहिए। इससे टाइफाईड रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

यदि टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को ठण्ड लग रही हो तो उसके पास में गर्म पानी की बोतल रखकर उसे कम्बल उढ़ा देना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

रोगी के शरीर पर घर्षण क्रिया करने से भी टाइफाईड रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को पूर्ण रूप से आराम करना चाहिए तथा इसके बाद रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त नीली बोतल का पानी हर 2-2 घंटे पर पिलाने से उसका बुखार जल्दी ठीक हो जाता है और टाइफाईड रोग भी जल्दी ही ठीक होने लगता है।

शीतकारी प्राणायाम, शीतली, शवासन तथा योगध्यान करने से भी रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और टाइफाईड रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित व्यक्ति को ठंडा स्पंज स्नान या ठंडा फ्रिक्शन स्नान कराने से उसके शरीर में फुर्ती पैदा होती है और उसका बुखार भी उतरने लगता है।

रोगी की रीढ़ की हड्डी पर बर्फ की मालिश करने से बुखार कम हो जाता है टाइफाईड रोग ठीक होने लगता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को खुला हवादार कमरा रहने के लिए, हल्के आरामदायक वस्त्र पहनने के लिए तथा पर्याप्त आराम करना बहुत आवश्यक है।

जब रोगी व्यक्ति का बुखार उतर जाता है और जीभ की सफेदी कम हो जाती है तो उसे फलों का ताजा रस पीकर उपवास तोड़ देना चाहिए और इसके बाद फलों के ताजे रस को कच्चे सलाद, अंकुरित दालों व सूप का सेवन करना चाहिए ऐसा करने से उसे दुबारा बुखार नहीं होता है और टाइफाईड रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को संतरे का रस दिन में 2 बार पीना चाहिए इससे बुखार जल्दी ही ठीक हो जाता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को तुलसी के पत्तों का सेवन कराने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

तुलसी की पत्तियों को उबालकर उसमें कालीमिर्च पाउडर और थोड़ी चीनी मिलाकर पीने से टाइफाईड रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को दूध नहीं पीना चाहिए लेकिन यदि उसे दूध पीने की इच्छा हो तो दूध में पानी मिलाकर हल्का कर लेना चाहिए तथा इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर पीना चाहिए। इसमें चीनी बिल्कुल भी नहीं मिलानी चाहिए।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी को अपने चारों ओर साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार कराना चाहिए।

टाइफाईड रोग से पीड़ित रोगी का बुखार 3 दिन तक सामान्य स्थिति में रहे तो रोगी को दूध मिला हुआ अंडे का जूस बनाकर पिलाना चाहिए तथा डबलरोटी के छोटे-छोटे टुकड़े को खिलाना चाहिए और फिर रोगी को पूर्ण रूप से आराम करने के लिए कहना चाहिए। इस प्रकार से अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से कराने से रोगी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


कमजोर याददाश्त Memory Weakness

 परिचय: इस रोग के होने के कारण रोगी व्यक्ति की याददाश्त बहुत कमजोर हो जाती है। वह किसी भी चीजों को पहचान नहीं पाता है अगर पहचानता भी है तो कुछ समय सोचने के बाद।

याददाश्त कमजोर होने का लक्षण : जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके सिर में हल्का दर्द रहता है, शोर बर्दाश्त नहीं होता है, एकाग्रता नहीं रख पाता है तथा वह किसी भी बात तथा किसी भी चीजों को याद नहीं रख पाता है।


याददास्त कमजोर होने का कारण :-

यह रोग दिमाग (मस्तिष्क) में रक्तसंचार की कमी हो जाने के कारण होता है।

बहुत अधिक समस्याओं में उलझे रहने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

सिर पर किसी दुर्घटना के कारण तेज चोट लगने तथा किसी दिमागी बीमारी के कारण भी यह रोग हो सकता है।

अत्यधिक मानसिक बीमारी होने के कारण भी यह रोग हो सकता है।


याददाश्त कमजोर होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


इस रोग से पीड़ित रोगी को कॉफी, चाय, मैदा, कोला, शराब तथा मैदा और मैदा से बनी चीजों का सेवन बंद कर देना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को संतुलित आहार जिसमें ताजी सब्जियां, फल, अंकुरित अन्न आदि हो उसका सेवन करना चाहिए जिसके फलस्वरूप कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है।

प्रतिदिन गाय के दूध में तिल को डालकर पीने से कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है।

अंगूर तथा सेब का अधिक सेवन करने से रोगी को बहुत लाभ मिलता है।

पांच-छ: अखरोट तथा दो अंजीर प्रतिदिन खाने से याददाश्त से सम्बन्धित रोग दूर हो सकते हैं।

रात के समय में बादाम या मुनक्का को भिगोकर सुबह के समय में चबाकर खाने से यह रोग ठीक हो जाता है।

बादाम, तुलसी तथा काली मिर्च को पीसकर तथा इन्हें आपस में मिलाकर फिर इसमें शहद मिलाकर प्रतिदिन खाने से यह रोग ठीक हो जाता है।

तुलसी का रस शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से याददाश्त मजबूत होती है।

बादाम का तेल नाक में प्रतिदिन डालने से याददाश्त मजबूत होती है।

इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन जलनेति क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद टबस्नान, कटिस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद मेहनस्नान करने से यह रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की यौगिक क्रियाएं तथा योगासन हैं जिसे प्रतिदिन करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। ये आसन तथा यौगिक क्रियाएं इस प्रकार हैं- भस्त्रिका प्राणायाम,  नाड़ीशोधन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, शवासन, योगनिद्रा, ध्यान का अभ्यास तथा ज्ञानमुद्रा करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।


दांतों में खोखलापन तथा सुराख Dental Caries

 परिचय: दांतों में कभी गर्म या ठंडे खाने वाले पदार्थ से चीस पैदा हो जाती है और बाद में यह दर्द बन जाती है, जो लगातार बनी रहती है। यदि समय रहते इसका उपचार नहीं किया जाए तो दांत निकलवाना पड़ सकता है। कभी-कभी तो दांत में सड़न होने के कारण वे अपने आप टूट जाते हैं और उनमें खोखलापन आ जाता है और दांतों में सुराख हो जाता है।


दांतों में खोखलापन तथा सुराख होने के कारण:-  

जब या कोई व्यक्ति किसी तरह के खाने वाले पदार्थों को खाने के बाद पीने के बाद दांतों की अच्छी तरह से सफाई नहीं करता है तो उसके दांतों में कोई खाद्य पदार्थ लगा रह जाता है और फिर दांतों के उस जगह पर जीवाणु पनपने लगते हैं। ये जीवाणु दांतों को कमजोर कर देते हैं, जिसके कारण कभी-कभी दांत टूट जाते हैं, कभी दांतों में खोखलापन हो जाता है तो कभी उनमें सुराख हो जाता है।

पान, तम्बाकू, सुपारी, गुटके आदि के सेवन से भी दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।

कब्ज तथा शरीर की अनेक बीमारियों के कारण भी दांत में अनेक जीवाणु पनपते हैं जिसके कारण से दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।  

शरीर में विटामिन `सी´, `डी´, तथा कैल्शियम के कारण भी व्यक्ति के दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।

अधिक गर्म तथा ठंडा भोजन करने से भी व्यक्ति के दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।

चाकलेट का अधिक सेवन करने से व्यक्ति के दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।

अधिक मिठाइयां तथा टॉफी खाने से व्यक्ति के दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।

भोजन को ठीक तरह से चबाकर न खाने तथा मुलायम चीजें अधिक खाने से दांतों का व्यायाम नहीं हो पाता है जिसके कारण व्यक्ति के दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।

चीनी या इससे बने खाद्य पदार्थ खाने पर उन्हें पचाने के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है जो दांतों और हडि्डयों में से खिंच जाता है। जिससे हडि्डयां तथा दांत कमजोर पड़ जाते हैं और जिसके कारण दांतों में खोखलापन तथा सुराख हो सकता है।


व्यक्ति के दांत में खोखलापन तथा सुराख का उपचार: वैसे तो दांत के खोखलेपन तथा सुराख का प्राकृतिक चिकित्सा से कोई उपचार नहीं किया जा सकता लेकिन दांतों को खोखलेपन तथा सुराख से बचाया जा सकता हैं जो इस प्रकार हैं-


दांत में खोखलापन तथा सुराख न हो पाये इसके लिए व्यक्ति को कभी भी चीनी, मिठाई या डिब्बा बंद खाद्य-पदार्थों का उपयोग अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए।

दांतों में खोखलापन तथा सुराख न हो पाये इसके लिए व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसके दांतों में कभी-भी खोखलापन तथा सुराख नहीं होता है।  

यदि व्यक्ति के दांतों में कोई रोग हो जाए तो व्यक्ति को तुरंत ही नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ला करना चाहिए।

सरसों के तेल में नमक तथा हल्दी मिलाकर उंगुली से नित्य मसूढ़ों तथा दांतों को रगड़कर साफ करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। उसके दांतों में कभी भी कोई रोग नहीं होता है।

प्रतिदिन सुबह, दोपहर तथा शाम को 10-10 मिनट के लिए नीम की पत्तियां चबाने से दांतों में कोई भी रोग नहीं होता है।

नीम के छिलके तथा फिटकरी को भूनकर फिर इसको पीसकर एक साथ मिलाकर एक शीशी की बोतल में भर दीजिए। इस मंजन से प्रतिदिन दांत साफ करने से दांतों में कोई भी रोग नहीं होता है।

दांतों के कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए दांतों पर स्थानीय चिकित्सा करने के साथ-साथ पूरे शरीर की प्राकृतिक साधनों से चिकित्सा करनी चाहिए जो इस प्रकार हैं- उपवास, एनिमा, मिट्टी पट्टी, कटिस्नान, गला लपेट, धूपस्नान, तथा जलनेति आदि।

दांतों में होने वाले सभी प्रकार के रोगों को ठीक करके ही दांतों को  खोखलेपन तथा सुराख होने से बचा जा सकता है।

यदि दांतों में ज्यादा अधिक खोखलापन हो जाये तो उन्हें भरवा देना चाहिए क्योंकि यदि इनको भरवाया नहीं गया तो खोखले दांतों के अन्दर कीड़े लग जायेंगे और फिर दांत को निकलवाना पड़ सकता है।


मसूढ़ों में सूजन तथा घाव Gum Inflammation and Wound

 परिचय: मसूढ़ों में सूजन होने तथा घाव होने से मसूढ़े लाल हो जाते हैं। दांतों तथा मसूढ़ों के सभी रोग निश्चय ही मुंह की अच्छी तरह से सफाई न होने के कारण, गलत तरीके से खान-पान या भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण होते हैं। मसूढ़ों में सूजन तथा घाव भोजन के ठीक तरह से न पचने तथा तेज मसालेदार, तली-भुनी चीजों का अधिक प्रयोग करने से होता है। इस रोग के हो जाने पर रोगी के मुंह से बदबू आती है तथा मसूढ़ों के दबाने पर रक्त (खून) निकलने लगता हैं। जब यह बीमारी बहुत अधिक बढ़ जाती है तो मसूढ़ों के पास घाव बन जाता है और उससे पीव निकलने लगती है।


मसूढ़ों में सूजन तथा घाव होने के कारण-

जब कोई खाद्य पदार्थ खाने के बाद या पीने के बाद दांतों की सफाई सही से नहीं हो पाती है तो दांतों के आस-पास जीवाणु पनपने लगते हैं जिसके कारण मसूढ़ों में सूजन तथा घाव हो जाते हैं।

पान, तम्बाकू, सुपारी, धूम्रपान तथा गुटके आदि के सेवन से पायरिया रोग हो सकता है जिसके कारण मसूढ़ों में सूजन तथा घाव हो जाते हैं।

कब्ज तथा शरीर में होने वाले अन्य रोग दांतों को प्रभावित करते हैं जिसके कारण मसूढ़ों में सूजन तथा घाव हो सकते हैं।

शरीर में विटामिन `सी´, `डी´, तथा कैल्शियम की कमी हो जाने के कारण मसूढ़ों में सूजन तथा घाव हो सकते हैं।

चीनी तथा चीनी से बने खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करने से मसूढ़ों में सूजन और घाव पैदा हो जाते हैं।


मसूढ़ों में सूजन तथा घाव होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


सरसों के तेल में नमक तथा हल्दी मिलाकर अंगुली से नित्य मसूढ़ों तथा दांतों को रगड़कर साफ करना चाहिए इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

मसूढ़ों की सूजन तथा घाव का इलाज करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए और इसके बाद इसका उपचार करना चाहिए।

किसी प्रकार से मसूढ़ों पर चोट लग जाने के कारण भी मसूढ़ों में सूजन तथा घाव हो जाते हैं इसलिए मसूढ़ों पर किसी तरह की चोट लगने से बचाव करना चाहिए।

मसूढ़ों में सूजन तथा घाव से पीड़ित रोगी को कभी-भी चीनी, मिठाई या डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

प्रतिदिन सुबह के समय में गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करने से मसूढ़ों में सूजन के रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

मसूढ़ों की सूजन तथा घाव को ठीक करने के लिए रोग व्यक्ति को अपने मसूढ़ों को प्रतिदिन मलना तथा रगड़ना चाहिए।

नीम के पत्तों को उबालकर उस पानी से प्रतिदिन कुल्ला करने से मसूढ़ों की सूजन तथा घाव जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।

मसूढ़ों में सूजन तथा घाव से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम के समय में नीम की लकड़ी से दातुन करना चाहिए। इससे रोगी को अधिक लाभ मिलता है।

मसूढ़ों में सूजन तथा घाव का इलाज करने के लिए रोगी को गाजर, नींबू, आंवला, संतरा, मौसमी, पालक, नारियल पानी, सफेद पेठा आदि का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद कुछ दिनों तक बिना पका हुआ भोजन जैसे फल, सलाद, अंकुरित दाल आदि का सेवन करना चाहिए। फिर इसके बाद साधारण भोजन जिसमें विटामिन `सी´, `डी´ तथा कैल्शियम की मात्रा अधिक हो उनका सेवन करना चाहिए।

अपनी उंगुली पर नींबू या आंवला का रस लगाकर, उंगुली को मसूढ़ों पर रगड़ने से मसूढ़ों की सूजन तथा घाव ठीक हो जाते हैं।

प्रतिदिन चबाने से कुछ ही दिनों में मसूढ़ों की सूजन तथा घाव ठीक हो जाते हैं।

मुद्रा, सर्वांगासन, मत्सयासन तथा पश्चिमोत्तानासन करने से भी मसूढ़ों की सूजन तथा घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं।

मसूढ़ों में सूजन तथा घाव से पीड़ित व्यक्ति को कुछ भी खाने या पीने के बाद मुंह को अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन सुबह के समय में कुछ देर तक दूब चबाए तो उसका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

मसूढ़ों की सूजन तथा घाव को ठीक करने के लिए दांतों पर स्थानीय चिकित्सा करने के साथ-साथ पूरे शरीर की प्राकृतिक साधनों से चिकित्सा करनी चाहिए जो इस प्रकार हैं- उपवास, एनिमा, मिट्टी पट्टी, कटिस्नान, गला लपेट, धूपस्नान, तथा जलोनेति आदि।

शीतकारी, शीतली प्राणायाम करने से भी मसूढ़ों में सूजन तथा घाव से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता हैं।

बादाम के छिलके तथा फिटकरी को भूनकर फिर इसको पीसकर एक साथ मिलाकर शीशे की बोतल में भर दीजिए। इस मंजन को दांतों पर रोज मलने से मसूढ़ों की सूजन तथा घाव ठीक हो जाते हैं।

प्रतिदिन होठों के आसपास व ठोड़ी पर मिट्टी की पट्टी लगाने से मसूढ़ों की सूजन तथा घाव में बहुत अधिक आराम मिलता है।


स्कर्वी रोग Scurvy

 परिचय: जब किसी व्यक्ति को स्कर्वी रोग हो जाता है तो उसके मसूढ़ों से खून निकलने लगता है तथा उसके शरीर पर काले, नीले चकत्ते से पड़ने लगते हैं ये चकत्ते अधिकतर पैरों में पड़ते हैं। इसके अलावा इस रोग में रोगी व्यक्ति को चलने में दर्द होता है, उसके बाहरी अंगों पर सूजन हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में खून की कमी भी हो जाती है।


स्कर्वी रोग होने के कारण: स्कर्वी रोग अधिकतर शरीर में विटामिन `सी´ की कमी होने के कारण होता है। तनाव के कारण भी यह रोग हो सकता है क्योंकि तनाव विटामिन `सी´ की काफी मात्रा को काम में ले लेता है और शरीर में विटामिन `सी´ की कमी हो जाती है।


स्कर्वी रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


जब किसी व्यक्ति को स्कर्वी रोग हो जाता है तो इसका उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने भोजन को संतुलित करना चाहिए। रोगी को भोजन में फल, हरी तथा पत्तेदार सब्जियां, दूध, गिरी, छाछ (मट्ठा) का अधिक प्रयोग करना चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को वह भोजन अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए जिसमें विटामिन `सी´ की प्रधानता हो। कुछ विटामिन `सी´ वाले पदार्थ इस प्रकार हैं- आंवला, नींबू, अनन्नास, संतरा, अमरूद, टमाटर, आम, हरी सब्जियां तथा अंकुरित अन्न आदि।

स्कर्वी रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम के समय में पानी में नींबू का रस मिलाकर और फिर इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है।

आवंले के रस या आंवले को सूखाकर इसका चूर्ण बनाकर, इस चूर्ण को शहद के साथ प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से स्कर्वी रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


गठिया रोग Rheumatism

 परिचय: मनुष्यों के शरीर के कई भाग होते हैं तथा उम्र के अनुसार गठिया रोग कई प्रकार का होता है-


ऑस्टियो आर्थराईटिस- इस प्रकार का गठिया रोग उम्र के बढ़ने के साथ होने वाला एक सामान्य रोग है जो हडि्डयों के जोड़ों के घिस जाने के कारण होता है। इस रोग के कारण रोगी के नितम्ब, रीढ़ की हड्डी, घुटने अधिक प्रभावित होते हैं। कभी-कभी यह रोग उंगुलियों के जोड़ों में भी हो जाता हैं। इस रोग के कारण इन अंगों में तेज दर्द होता है।


रूमेटाइड आर्थराईटिस- इस गठिया रोग के कारण छोटी उंगुलियों के जोड़, उंगलियां, कोहनियों, कलाइयों, घुटनों, टखनों आदि में दर्द होने लगता है तथा इन अंगों में अकड़न हो जाती है। हडि्डयों के जोड़ों में सूजन आ जाने के कारण उपस्थियां तो क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा इसके साथ में जो मांसपेशियां, कंडराएं तथा कोशिकाएं होती हैं उनमें विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण रोगी व्यक्ति में विकलांगपन जैसी समस्या हो जाती है। यह रोग पुरुषों से अधिक महिलाओं को होता है।


गाउटी आर्थराईटिस- इस गठिया रोग के हो जाने के कारण पैर के पंजों में बहुत तेज दर्द होता है और यह दर्द इतना अधिक होता है कि पंजों को हल्के से छूने पर रोगी अपना पंजा एक ओर को हटाने लगता है। जब यह रोग अधिक पुराना हो जाता है तो इससे संबन्धित हडि्डयां धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती हैं जिसके कारण व्यक्ति में विकलांगता उत्पन्न हो जाती है। गाऊट गठिया रोग से पीड़ित लगभग 10 प्रतिशत रोगी पथरी रोग के शिकार (रोगी हो जाना) हो जाते हैं। यह रोग पुरुषों को अधिक होता है।


सर्वाकल स्पोंडिलाईसिस- इस रोग के कारण गर्दन की हडि्डयों और कमर के निचले भाग में तेज दर्द तथा अकड़न हो जाती है।


इन सभी गठिया रोगों की पहचान: इन रोगों के कारण हडि्डयों के जोड़ों के पास तेज दर्द, सूजन तथा अकड़न हो जाती है। जब मौसम में बदलाव होता है तो इस रोग के कारण और भी तेज दर्द होना शुरू हो जाता है तथा सूजन भी अधिक बढ़ जाती है।


गठिया रोग होने का कारण:-


इस रोग के होने का सबसे मुख्य कारण हडि्डयों के जोड़ों में यूरिक एसिड का जमा हो जाना है।

भोजन में अधिक प्रोटीन का सेवन करने से भी यह रोग हो जाता है।

अधिक दवाईयों का सेवन करने के कारण भी गठिया का रोग हो सकता है।

श्रम तथा व्यायाम की कमी होने के कारण भी गठिया रोग हो जाता है।

शरीर में कब्ज तथा गैस बनाने वाले पदार्थों का खाने में अधिक सेवन करने के कारण भी गठिया रोग हो सकता है जैसे- मिर्च-मसाले, नमक, दाल, मछली, अण्डे तथा मांस आदि।


गठिया  रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


गठिया रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले शरीर में जमा यूरिक एसिड को घुलाकर शरीर से बाहर निकालने वाले पदार्थ जैसे- पोटाशियम प्रधान खाद्य पदार्थ लौकी, तरबूज, ककड़ी, खीरा, पत्तागोभी, पालक, सफेद पेठा आदि के रस को प्रतिदिन पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए।

नींबू, अनन्नास, आंवला तथा संतरे का रस पीकर उपवास रखने से भी गठिया रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कुछ सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को मौसम के अनुसार फल तथा सलाद और हरी सब्जियों का रस पीना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन नारियल का पानी पिये तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है।

अंगूर तथा शरीफा फलों को कुछ दिनों तक खाने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कच्चे आलू का रस पिलाना अधिक लाभदायक होता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में 2-3 अंजीर, 10 मुनक्का तथा 1 खुबानी को भिगोने के लिए रख दें और सुबह के समय में उठकर इसे खा लें। इससे गठिया रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में दाल, दही, दूध, तली-भुनी चीजें तथा चीनी का सेवन नहीं करना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को पानी अधिक से अधिक मात्रा में पीना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखना चाहिए। इस पानी को सुबह उठकर पीने से गठिया रोग को ठीक होने में बहुत लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को लहसुन अधिक खाने चाहिए।

सुबह के समय में अंकुरित मेथीदाना तथा शहद का सेवन करने से गठिया रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन खजूर तथा तिलों से बने लड्डुओं का सेवन करे तो उसका यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अदरक तथा तुलसी का रस हल्के गर्म पानी में डालकर पीना चाहिए। यह रोगी के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार उपवास अवश्य रखना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन सुबह के समय में लगभग 240 मिलीलीटर सूर्यतप्त द्वारा बनाया गया हरी बोतल का पानी पिये और गठिया रोग से प्रभावित भाग पर इस जल को लगाए तो उसका यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सूर्य की रोशनी में अपने शरीर की प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट तक सिंकाई करनी चाहिए क्योंकि सूर्य की किरणों में लाल रोशनी इस रोग को बहुत जल्दी ठीक कर देती है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को गठिये से प्रभावित भाग पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को एनिमा क्रिया करके अपने पेट की सफाई करनी चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को कटिस्नान, मेहनस्नान, धूपस्नान तथा भापस्नान करना चाहिए और इसके बाद शरीर पर सूखा घर्षण स्नान (सूखे तौलिये से शरीर को पोंछना) करना चाहिए।

इस रोग को ठीक करने के लिए गर्म पानी से पैरों को धोना चाहिए जिसके फलस्वरूप गठिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

गठिया रोग से प्रभावित भाग पर गर्म पट्टी करने तथा गर्म मिट्टी की पट्टी करने या गर्म-ठंडी सिंकाई करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

प्रतिदिन योगनिद्रा करने से भी गठिया के रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को अपने जोड़ों की हल्की शुष्क मालिश करनी चाहिए तथा नींबू के रस को गठिया से प्रभावित भाग पर लगाकर मालिश करने से गठिया रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

गठिया रोग के कारण प्रभावित स्थान पर जो सूजन पड़ जाती है उस पर बर्फ की ठण्डे पानी की पट्टी करने से सूजन कम हो जाती है और रोगी को इस रोग की वजह से जो दर्द होता है वह कम हो जाता है।

गठिया रोग से प्रभावित भाग पर नारियल या सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करने से जोड़ों की अकड़न कम हो जाती है और दर्द भी कम हो जाता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को 1 चुटकी हल्दी खाकर ऊपर से पानी पीने से दर्द में आराम मिलता है।

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि हारसिंगार की 4-5 पत्तियों को पीसकर 1 गिलास पानी में मिलाकर सुबह तथा शाम लगातार 2-3 सप्ताह तक पिये तो उसका गठिया रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

टब के पानी में नमक डालकर 30 मिनट तक पानी में लेटे रहने से गठिया रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए कई आसन हैं जिन्हें प्रतिदिन करने से गठिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है ये आसन इस प्रकार हैं- पद्मासन, वज्रासन, उज्जायी, सूर्यभेदी, प्राणायाम, भस्त्रिका-नाड़ीशोधन, सिद्धासन, गोमुखासन, गोरक्षासन, सिंहासन तथा भुजंगासन आदि।


घुटने का दर्द रोग Knee Pain

 परिचय: कोई भी रोग बिना किसी कारण के नहीं होता है। जब कोई मनुष्य प्रकृति के नियमों के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसे कोई न कोई रोग हो जाता है। यदि किसी व्यक्ति के खान-पान का तरीका गलत हो, धूम्रपान और मदिरापान जैसी नशीली चीजों का सेवन करता है, अपनी जरूरत से ज्यादा काम करता है, तब उसके शरीर में कई रोग हो जाते हैं। अधिक सुख-सुविधा का जीवन जीने या अत्यधिक तैलीय पदार्थों के सेवन आदि से शरीर में वात तथा रक्त में विकृति बढ़ती ही जाती है जिसके कारण घुटने में दर्द होने लगता है। घुटने का दर्द अधिकतर उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक मोटे तथा आलसी होते हैं। इन व्यक्तियों के शरीर का वजन बढ़ने से घुटने के पास की हड्डी के जोड़ों पर वजन अधिक बढ़ जाता है जिससे जोड़ों का रोग हो जाता है। घुटने का दर्द और भी कई कारणों से होता हैं जो इस प्रकार हैं-गलत खान-पान के तरीके के कारण शरीर के खून में खटास का बढ़ना, शरीर में क्षारत्व का कम होना, अपच होना तथा अजीर्ण रोग हो जाना आदि।

          जब शरीर के किसी भाग में दर्द होता है तो इसका अर्थ यह होता है कि शरीर के उस भाग में कार्बन डाइऑक्साइड, पानी तथा अन्य जहरीले पदार्थ और वायु जमा हो गई है।


          घुटने हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। घुटनों पर ही शरीर का सारा भार टिका रहता है अत: कहा जाए तो हमें घुटनों की देखभाल अच्छी तरह से करनी चाहिए।


घुटने के दर्द का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए सबसे पहले दर्द वाले स्थान पर तेल लगा लें। फिर इसके बाद आक के पत्तों को गर्म करके उस स्थान पर रखें और इसके ऊपर से रुई रखकर लाल कपड़े की पट्टी बांध लें। इससे कुछ ही दिनों में घुटनों में दर्द का रोग ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए निर्गुण्डी के ताजे 7-8 पत्तों को कुचलकर मिट्टी के घड़े में डालकर ढक्कन लगाकर गर्म कर लें। इसके कुछ देर बाद मिट्टी के घड़े को आग पर से उतार लें और पत्ते को हल्का ठंडा करके घुटने पर उस जगह लगायें, जिस जगह पर दर्द हो रहा हो। इसके बाद ऊपर से कपड़े की पट्टी बांधें और इस पट्टी को दिन में दो बार बदलें। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए लगभग दो लीटर पानी में थोड़ी-सी नीम की पत्तियां, मेथीदाना, थोड़ी सी अजवाइन और आधा चम्मच नमक डालकर उबाल लें और जब यह गर्म हो जाए तो इसको हल्का सा ठंडा करके इस पानी में कपड़े के दो छोटे टुकड़े डाल दें और फिर इस कपड़े के टुकड़े को निकालकर, इससे घुटने पर सिंकाई करे। इसके फलस्वरूप घुटने का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए थोड़े से अरण्डी के पत्तों को पीस लें। फिर थोड़ा से कपूर और थोड़े से सरसों के तेल को इसके साथ मिलाकर कर घुटने के ऊपर लेप करें और फिर इसके ऊपर से कपड़े की पट्टी बांध लें। इसके बाद इसके ऊपर से गर्म सिंकाई करें जिसके फलस्वरूप घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए 5 ग्राम सोंठ, 50 ग्राम काला नमक तथा 100 ग्राम अजवाइन को एक सूखी कड़ाही में डालकर इसे भूने और फिर इसे गर्म-गर्म ही एक रूमाल में बांध लें। इसके बाद इससें घुटने पर सिंकाई करें। इससे कुछ ही समय में घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए मेथीदाना को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सुबह ताजे जल के साथ एक चम्मच लेने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

सुबह के समय में खाली पेट 4 से 5 अखरोट की गिरियां अच्छी तरह से चबाकर खाने से कुछ ही दिनों में घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए प्रतिदिन नारियल की गिरी का एक टुकड़ा खाना चाहिए तथा यदि ताजा नारियल न मिले तो सूखे नारियल की गिरी खानी चाहिए।

इस रोग को ठीक करने के लिए प्रतिदिन 4 से 5 लहसुन की कलियां पानी के साथ निगलने से घुटने का दर्द कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

रात को सोते समय 100 ग्राम खजूर को एक गिलास पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह के समय जब उठे तो इसे चबाकर खा जाएं। प्रतिदिन कुछ दिनों तक ऐसा करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

20 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम अजवाइन, 5 ग्राम काले नमक को एक साथ लेकर पीस लें। इस चूर्ण को रात को सोते समय आधा चम्मच सेवन करें। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

100 ग्राम छोटी हरड़ को कूट-पीसकर छान लें। रात को सोते समय इसके 5 ग्राम चूर्ण को दूध या गुनगुने पानी के साथ लें। इसका सेवन कुछ दिनों तक लगातार करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी को सूर्य की किरणों में बैठकर घुटने की मालिश करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को योग के द्वारा भी ठीक किया जा सकता है। घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को पीठ के बल लेटना चाहिए। इसके बाद अपने घुटने को मोड़ते हुए पैरों को साइकिल की तरह चलाना चाहिए। इसके बाद घुटने को बिना मोड़े अपने पैर को ऊपर नीचे लगभग 18 से 20 बार करें। जिसके फलस्वरूप घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन वज्रासन करे तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है तथा वज्रासन करते समय बैठने वाले स्थान पर गर्म तकिया रखना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को पेट के बल लेट कर पैरों को मोड़े और दोनों हाथों से एड़ियों को पकड़े। इस प्रकार से क्रिया प्रतिदिन करने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।

घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए घुटने पर लाल रंग के सूती कपड़े की पट्टी बांधनी चाहिए तथा पट्टी कम से कम 6 इंच चौड़ी होनी चाहिए।

सुबह के समय में सूर्य की किरणों के सामने अपने पैरों को इस प्रकार रखें कि सूर्य की किरणें पड़े। इस प्रकर से कम से कम आधे घण्टे तक सूर्य के सामने बैठना चाहिए।

प्रतिदिन घुटने पर लाल तेल से मालिश करनी चाहिए, जिसके फलस्वरूप घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।


घुटने के रोग से पीड़ित रोगी के लिए चेतावनी-

इस रोग से पीड़त रोगी को कभी भी किसी प्रकार की खटाई, अचार, छाछ, दही, टमाटर तथा पेट में वायु बनाने वाले पदार्थो को नहीं खाना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को दालों का सेवन नहीं करना चाहिए।

घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी को मैदे व बेसन से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

घुटने के दर्द से पीड़ित रोगी को तली-भुनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को ठंडे पदार्थों जैसे- कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम, बर्फ का पानी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।


मोच से पीड़ित रोग Strain

 परिचय: जब किसी व्यक्ति को अचानक चोट लग जाती है या किसी झटके के कारण उसकी पेशी तन जाती है या किसी दुर्घटना के कारण व्यक्ति की हडि्डयों के जोड़ों में दर्द होने लगता है तो इस अवस्था को मोच कहते हैं। हडि्डयों के बन्धन या झिल्लियों के फट जाने से जोड़ों से खून बहने लगता है, जोड़ कमजोर हो जाते हैं तथा उनमें दर्द या जलन होने लगती है तथा जोड़ में सूजन आ जाती है।


मोच आने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


मोच का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने शरीर के मोच ग्रस्त भाग पर तेल से मालिश करनी चाहिए।

मोच से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।

शरीर के मोच से ग्रस्त भाग पर आधे घण्टे के लिए बर्फ लगानी चाहिए तथा यह क्रिया हर 2-2 घण्टे में करनी चाहिए इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

रोगी को अपने शरीर के मोच ग्रस्त भाग पर ठंडी पट्टी करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप रक्तवाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं और खून का प्रवाह रुक जाता है और रक्त वाहिकाओं (खून की कोशिकाएं) के सिकुड़ने से सूजन कम हो जाती हैं और मोच ठीक हो जाती है।

रोगी को अपने मोच वाले भाग को ऊपर उठाकर रखने से सूजन कम हो जाती है।


क्षय रोग (टी.बी.) Tuberculosis

 परिचय: क्षय रोग को हिन्दी में राज्यक्ष्मा और टी.बी. कहते हैं तथा एलोपैथी में इसे ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है। इस रोग के हो जाने पर रोगी व्यक्ति का शरीर कमजोर हो जाता है। क्षय रोग के हो जाने पर शरीर की धातुओं यानी रस, रक्त आदि का नाश होता है। जब किसी व्यक्ति को क्षय रोग हो जाता है तो उसके फेफड़ों, हडि्डयों, ग्रंथियों तथा आंतों में कहीं इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।


क्षय रोग (टी.बी.) के लक्षण- जब किसी स्त्री तथा पुरुष को क्षय रोग हो जाता है तो उसका वजन धीरे-धीरे घटने लगता है तथा थकान महसूस होने लगती है। इसके साथ-साथ रोगी को खांसी तथा बुखार भी हो जाता है। रोगी व्यक्ति को भूख लगना कम हो जाता है तथा उसके मुंह से कफ के साथ खून भी आने लगता है। इस रोग में किसी-किसी रोगी के शरीर पर फोड़े तथा फुंसियां होने लगती हैं।


क्षय रोग तीन प्रकार का होता है-

फुफ्सीय क्षय

पेट का क्षय

अस्थि क्षय

क्षय-


          इस प्रकार का फुफ्फसीय क्षय रोग जल्दी पहचान में नहीं आता है। यह रोग शरीर के अन्दर बहुत दिनों तक बना रहता है। जब यह रोग बहुत ज्यादा गंभीर हो जाता है तब इस रोग की पहचान होती है। क्षय (टी.बी.) रोग किसी भी उम्र की आयु के स्त्री-पुरुषों को हो सकता है लेकिन अलग-अलग रोगियों में इसकी अलग-अलग पहचान होती है।


फुफ्फसीय क्षय रोग की पहचान-


क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सिर में दर्द होता रहता है तथा रोगी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होती है।

 पीड़ित रोगी की पाचनशक्ति खराब हो जाती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की हडि्डयां गलने लगती हैं तथा रोगी व्यक्ति के शरीर में आंख-कान की कोई बीमारी खड़ी होकर असली रोग पर पर्दा डाले रहती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की नाड़ी तेजी से चलने लगती है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी की जीभ लाल रंग की हो जाती है और रोगी व्यक्ति के शरीर का तापमान बढ़ जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को नींद नहीं आती है तथा जब वह चलता है या सोता है तो उसका मुंह खुला रहता है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है तथा रोगी व्यक्ति का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा रोगी व्यक्ति के चेहरे की चमक खो जाती है।

रोगी व्यक्ति के शरीर से पसीना आता रहता है तथा उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी थूक के साथ खून भी आने लगता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को अपने थूक का परीक्षण (जांच) समय-समय पर करवाते रहना चाहिए।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को तेज रोशनी अच्छी नहीं लगती है तथा वह कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता हैं और उसके दांत किटकिटाते रहते हैं।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है, भोजन का स्वाद अच्छा नहीं लगता है तथा उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन कम होता जाता है।

फुफ्फसीय क्षय रोग से पीड़ित रोगी जब सुबह के समय में उठता है तो भोजन करने के बाद उसको खांसी आती है और उसके सीने में तेज दर्द होने लगता है।


पेट का क्षय (टी.बी.): इस क्षय रोग की पहचान भी बड़ी मुश्किल से होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट के अन्दर गांठे पड़ जाती है।


पेट का क्षय रोग के लक्षण-


पेट के क्षय (टी.बी.) रोग से पीड़ित रोगी को बार-बार दस्त आने लगते हैं।

रोगी व्यक्ति के शरीर में अधिक कमजोरी हो जाती है और उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन घटता रहता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट में कभी-कभी दर्द भी होता है।


हड्डी का क्षय रोग: इस रोग के कारण रोगी की हड्डी बहुत अधिक प्रभावित होती है तथा हड्डी के आस-पास की मांसपेशियां भी प्रभावित होती हैं।


हड्डी के क्षय रोगी की पहचान- इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर पर फोड़े-फुंसियां तथा जख्म हो जाते हैं और ये जख्म किसी भी तरह से ठीक नहीं होते हैं।


क्षय रोग (टी.बी.) होने का कारण-


क्षय रोग उन व्यक्तियों को अधिक होता है जिनके खान-पान तथा रहन-सहन का तरीका गलत होता है। इन खराब आदतों के कारण शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव्य) जमा हो जाते हैं और शरीर में धीरे-धीरे रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

क्षय रोग ट्यूबरकल नामक कीटाणुओं के कारण होता है। यह कीटाणु ट्यूबरकल नामक कीटाणु फेफड़ों आदि में उत्पन्न होकर उसे खाकर नष्ट कर देते हैं। यह कीटाणु फेफड़ों, त्वचा, जोड़ों, मेरूदण्ड, कण्ठ, हडि्डयों, अंतड़ियों आदि शरीर के अंग को नष्ट कर देते हैं।

क्षय रोग का शरीर में होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम हो जाना है तथा शरीर में विजातीय द्रव्यों (दूषित द्रव्य) का अधिक हो जाना है।

क्षय रोग व्यक्ति को तब हो जाता है जब रोगी अपने कार्य करने की शक्ति से अधिक कार्य करता है।

शौच तथा पेशाब करने के वेग को रोकने के कारण भी क्षय रोग हो जाता है।

किसी अनुचित सैक्स संबन्धी कार्य करके वीर्य नष्ट करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।

अधिक गीले स्थान पर रहने तथा धूल भरे वातावरण में रहने के कारण भी क्षय रोग हो जाता है।

प्रकाश तथा धूप की कमी के कारण तथा भोजन सम्बंधी खान-पान में अनुचित ढंग का प्रयोग करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।

अधिक विषैली दवाइयों का सेवन करने के कारण भी क्षय रोग हो सकता है।


क्षय रोग की अवस्था 3 प्रकार की होती है-


क्षय रोग की पहली अवस्था- क्षय रोग की अवस्था के रोगियों का उपचार हो सकता है। इस अवस्था के रोगियों को खांसी उठती है तथा खांसी के साथ कभी-कभी कफ भी आता है, तो कभी नहीं भी आता है तो कभी-कभी कफ में रक्त के छींटे दिखाई देते हैं। रोगी व्यक्ति का वजन घटने लगता है। इस अवस्था का रोगी जब थोड़ा सा भी कार्य करता है तो उसे थकावट महसूस होने लगती है और उसके शरीर से पसीना निकलने लगता है। पीड़ित रोगी को रात के समय में अधिक पसीना आता है और दोपहर के समय में बुखार हो जाता है तथा सुबह के समय में बुखार ठीक हो जाता है।


क्षय रोग की दूसरी अवस्था: क्षय रोग की दूसरी अवस्था से पीड़ित रोगी के शरीर में जीवाणु उसके फेफड़े में अपना जगह बना लेते हैं जिस कारण शरीर का रक्त और मांस नष्ट होने लगता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को दोपहर के बाद बुखार होने लगता है तथा उनके जबड़े फूल जाते हैं और उसके मुंह का रंग लाल हो जाता है। रोगी व्यक्ति को रात के समय में अधिक पसीना आता है। क्षय रोग की इस अवस्था से पीड़ित रोगी के पेट की बीमारी बढ़ जाती है तथा उसे सूखी खांसी होने लगती है। इस अवस्था के क्षय रोग से पीड़ित रोगी के कफ का रंग सफेद से बदलकर नीला हो जाता है और उसके कफ के साथ रक्त भी गिरना शुरू हो जाता है। रोगी व्यक्ति को उल्टियां भी होने लगती हैं तथा उसके शरीर का वजन कम हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी का मुंह चपटा हो जाता है तथा कफ बढ़ जाता है। रोगी के मुंह में सूजन हो जाती है। रोगी के बगलों में कभी-कभी सुइयां सी चुभती प्रतीत होती हैं। यह अवस्था बहुत ही कष्टदायक होती है।


क्षय रोग की तीसरी अवस्था: इस अवस्था के रोग से पीड़ित रोगी के दोनों फेफड़े खराब हो जाते हैं तथा रोगी का कण्ठ भी रोगग्रस्त हो जाता है। रोगी व्यक्ति को दस्त लग जाते हैं। रोगी की नाक पतली हो जाती है तथा उसके नाखूनों के भीतर का भाग काला पड़ जाता है। रोगी की कनपटियां अन्दर धंस जाती हैं। उसे अपने घुटने के निचले भाग में दर्द महसूस होता रहता है। पैरों की एड़ियों का ऊपरी भाग सूज जाता है तथा रोगी को खून की उल्टियां होने लगती हैं। इस अवस्था के क्षय रोग से पीड़ित रोगी की भूख खुल जाती है। इस अवस्था से पीड़ित रोगी सोचता है कि उसका रोग ठीक हो गया है। लेकिन इस अवस्था से पीड़ित रोगी बहुत कम ही बच पाते हैं।


क्षय रोग के लिए एक विशेष सावधानी: क्षय रोग (टी.बी.) एक प्रकार का छूत का रोग होता है। इसलिए इस रोग से पीड़ित रोगी के कपड़े, बर्तन तथा रोगी के द्वारा प्रयोग की जाने वाली चीजों को अलग रखना चाहिए, ताकि कोई अन्य उसे उपयोग में न ला सके क्योंकि यदि कोई व्यक्ति रोगी के कपड़े या उसके द्वारा उपयोग की जाने वाली चीजों का उपयोग करता है तो उसे भी क्षय रोग होने का डर रहता है।


क्षय रोग (टी.बी.) का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को नारियल का पानी और सफेद पेठे का रस प्रतिदिन पीना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

पालक की ताजी पत्ती तथा 2 चम्मच मेथी दाने का काढ़ा 20 ग्राम शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से क्षय रोग (टी.बी.) कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक फलों तथा सलाद का सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

क्षय रोग को ठीक करने के लिए अंगूर, अनार, अमरूद, हरी सब्जियों का सूप, खजूर, बादाम, मुनक्का, खरबूजे की गिरियां, सफेद तिलों का दूध, नींबू पानी, लहसुन, प्याज आदि का सेवन करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

कुछ दिनों तक शहद के साथ आंवले के रस का सेवन करने से क्षय रोग कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को नीम या पीपल के पेड़ की छाया में आराम करना चाहिए तथा लम्बी गहरी सांस लेनी चाहिए और सुबह के समय में सैर के लिए जाना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को नीम के पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए। फिर इसके बाद कटिस्नान और कुंजल क्रिया करनी चाहिए। रोगी व्यक्ति को छाती पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए और सुबह के समय में सूर्य के प्रकाश में शरीर की सिंकाई करनी चाहिए और मानसिक चिंता को दूर करना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिनको करने से क्षय रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- गोमुखासन, मत्स्यासन, अत्तान मण्डूकासन, कटिचक्रासन, ताड़ासन, नौकासन, धनुरासन तथा मकरासन आदि।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को शुद्ध और खुली वायु में रहना चाहिए और सुबह के समय में धूप की रोशनी को अपने शरीर पर पड़ने देना चाहिए क्योंकि सूर्य की रोशनी से क्षय रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन बकरी का दूध पीने के लिए देना चाहिए क्योंकि बकरी के दूध में क्षय रोग के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति होती है।

यदि रोगी व्यक्ति के पेट में कब्ज बन रही हो तो उसे प्रतिदिन एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके और इसके साथ-साथ इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।

मीठे आम के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर रोगी को कम से कम 25 दिनों तक सेवन कराने से क्षय रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

लहसुन तथा प्याज की 8 से 10 बूंदों में 1 चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन चाटने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

प्रतिदिन 2 किशमिश तथा 2 अखरोट खाने से क्षय रोग (टी.बी.) कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को खाने के साथ पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि खाना खाने के लगभग 10 मिनट बाद पानी पीना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अरबी, चावल, बेसन तथा मैदा की बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार कालीमिर्च, तुलसी, मुलहठी, लौंग तथा थोड़ी-सी अजवाइन को पानी में उबालकर पानी पीने को दें। इस काढ़े को हल्का गुनगुना सा पीने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन तुलसी की 5 पत्तियां खाने को देनी चाहिए जिसके फलस्वरूप इस रोग का प्रभाव कम हो जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में नाश्ता करने से पहले गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 2-3 बार पीने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में सूर्य के सामने पीठ के बल लेटकर अपनी छाती के सामने एक नीले रंग का शीशा रखकर उस प्रकाश को छाती पर पड़ने देना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस तरीके से लेटना चाहिए कि उसका सिर छाया में हो और छाती वाला भाग सूर्य की किरण के सामने हो। इसके बाद नीले शीशे को रोगी की छाती से थोड़ी ऊंचाई पर इस प्रकार रखना चाहिए कि सूर्य की किरणें नीले शीशे में से होती हुई रोगी की छाती पर पड़ें। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से क्षय रोग ठीक हो जाता है।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में खुली हवा में गहरी सांस लेनी चाहिए तथा कम से कम आधे घण्टे तक ताजी हवा में टहलना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में कम से कम 15 मिनट तक हरी घास पर नंगे पैर चलना चाहिए।

यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन सुबह के समय में खुली हवा में आराम से लेटकर कम से कम 10 मिनट तक शवासन क्रिया करे तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है।

रोगी व्यक्ति को नहाने से पहले प्रतिदिन अपने पूरे शरीर पर घर्षण स्नान करना चाहिए तथा स्पंज बाथ रगड़-रगड़ कर करना चाहिए।

रोगी को नहाने से पहले अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी से 10 मिनट लेप करना चाहिए और इसके बाद अपने पूरे शरीर पर मालिश करनी चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी को अधिक पसीना आ रहा हो तो थोड़ी देर के लिए उसे रजाई ओढ़ा देनी चाहिए ताकि पसीना निकले और फिर 10 मिनट बाद ताजे स्वच्छ जल से उसे स्नान करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को उपचार कराते समय अपनी मानसिक परेशानियों तथा चिंताओं को दूर कर देना चाहिए।

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) से पीड़ित रोगी यदि नीम की छाया में प्रतिदिन कम से कम 1 घण्टे के लिए आराम करें तो उसे बहुत अधिक आराम मिलता है।

रोगी व्यक्ति को चांदी की अंगूठी में मोती मढ़वाकर पहनाई जाए तो उसका क्षय रोग (टी.बी.) जल्दी ही ठीक हो जाता है।


लकवा रोग Paralysis

 परिचय: मस्तिष्क की धमनी में किसी रुकावट के कारण उसके जिस भाग को खून नहीं मिल पाता है मस्तिष्क का वह भाग निष्क्रिय हो जाता है अर्थात मस्तिष्क का वह भाग शरीर के जिन अंगों को अपना आदेश नहीं भेज पाता वे अंग हिलडुल नहीं सकते और मस्तिष्क (दिमाग) का बायां भाग शरीर के दाएं अंगों पर तथा मस्तिष्क का दायां भाग शरीर के बाएं अंगों पर नियंत्रण रखता है। यह स्नायुविक रोग है तथा इसका संबध रीढ़ की हड्डी से भी है।


लकवा रोग निम्नलिखित प्रकार का होता है-  


निम्नांग का लकवा- इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर के नीचे का भाग अर्थात कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है। इस रोग के कारण रोगी के पैर तथा पैरों की उंगुलियां अपना कार्य करना बंद कर देती हैं।

अर्द्धाग का लकवा- इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर का आधा भाग कार्य करना बंद कर देता है अर्थात शरीर का दायां या बायां भाग कार्य करना बंद कर देता है।

एकांग का लकवा- इस प्रकार के लकवा रोग में मनुष्य के शरीर का केवल एक हाथ या एक पैर अपना कार्य करना बंद कर देता है।

पूर्णांग का लकवा- इस लकवा रोग के कारण रोगी के दोनों हाथ या दोनों पैर कार्य करना बंद कर देते हैं।

मेरूमज्जा-प्रदाहजन्य लकवा- इस लकवा रोग के कारण शरीर का मेरूमज्जा भाग कार्य करना बंद कर देता है। यह रोग अधिक सैक्स क्रिया करके वीर्य को नष्ट करने के कारण होता है।

मुखमंडल का लकवा- इस रोग के कारण रोगी के मुंह का एक भाग टेढ़ा हो जाता है जिसके कारण मुंह का एक ओर का कोना नीचे दिखने लगता है और एक तरफ का गाल ढीला हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के मुंह से अपने आप ही थूक गिरता रहता है।

जीभ का लकवा- इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ में लकवा मार जाता है और रोगी के मुंह से शब्दों का उच्चारण सही तरह से नहीं निकलता है। रोगी की जीभ अकड़ जाती है और रोगी व्यक्ति को बोलने में परेशानी होने लगती है तथा रोगी बोलते समय तुतलाने लगता है।

स्वरयंत्र का लकवा- इस रोग के कारण रोगी के गले के अन्दर के स्वर यंत्र में लकवा मार जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति की बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है।

सीसाजन्य लकवा- इस रोग से पीड़ित रोगी के मसूढ़ों के किनारे पर एक नीली लकीर पड़ जाती है। रोगी का दाहिना हाथ या फिर दोनों हाथ नीचे की ओर लटक जाते हैं, रोगी की कलाई की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं तथा कलाई टेढ़ी हो जाती हैं और अन्दर की ओर मुड़ जाती हैं। रोगी की बांह और पीठ की मांसपेशियां भी रोगग्रस्त हो जाती हैं।


लकवा रोग का लक्षण- लकवा रोग से पीड़ित रोगी के शरीर का एक या अनेकों अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं। इस रोग का प्रभाव अचानक होता है लेकिन लकवा रोग के शरीर में होने की शुरुआत पहले से ही हो जाती है। लकवा रोग से पीड़ित रोगी के बायें अंग में यदि लकवा मार गया हो तो वह बहुत अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसके कारण रोगी के हृदय की गति बंद हो सकती है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। रोगी के जिस अंग में लकवे का प्रभाव है, उस अंग में चूंटी काटने से उसे कुछ महसूस होता है तो उसका यह रोग मामूली से उपचार से ठीक हो सकता है।


लकवा रोग होने के और भी कुछ लक्षण है जो इस प्रकार है-


लकवा रोग से पीड़ित रोगी को भूख कम लगती है, नींद नहीं आती है और रोगी की शारीरिक शक्ति कम हो जाती है।

इस रोग से ग्रस्त रोगी के मन में किसी कार्य को करने के प्रति उत्साह नहीं रहता है।

रोगी के शरीर के जिस अंग में लकवे का प्रभाव होता है, उस अंग के स्नायु अपना कार्य करना बंद कर देते हैं तथा उस अंग में शून्यता आ जाती है।

लकवा रोग के हो जाने के कारण शरीर का कोई भी भाग झनझनाने लगता है तथा उसमें खुजलाहट होने लगती है।

शरीर के जिस भाग में लकवे का प्रभाव होता है उस तरफ की नाक के भाग में खुजली होती है।


साध्य लकवा रोग होने के लक्षण-


इस रोग के कारण रोगी की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है और रोगी जिस भोजन का सेवन करता है वह सही तरीके से नहीं पचता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई अन्य रोग हो जाते हैं।

इस रोग के कारण शरीर के कई अंग दुबले-पतले हो जाते हैं।


असाध्य लकवा रोग होने के लक्षण इस प्रकार हैं-


असाध्य लकवा रोग गर्भवती स्त्री, छोटे बच्चे तथा बूढ़े व्यक्ति को होता है और इस रोग के कारण रोगी की शक्ति काफी कम हो जाती है।

इस प्रकार के लकवे के कारण कई शरीर के अंगों के रंग बदल जाते हैं तथा वह अंग कमजोर हो जाते हैं।

असाध्य लकवा रोग से प्रभावित अंगों पर सुई चुभाने या नोचने पर रोगी व्यक्ति को कुछ भी महसूस नहीं होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी की ज्ञानशक्ति तथा काम करने की क्रिया शक्ति कम हो जाती है।

असाध्य लकवा रोग के कारण रोगी के मुहं, नाक तथा आंख से पानी निकलता रहता है।

असाध्य लकवा रोग के कारण रोगी को देखने, सुनने तथा किसी चीज से स्पर्श करने की शक्ति नष्ट हो जाती है।

असाध्य लकवा रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई अन्य रोग हो जाते हैं।


लकवा रोग होने के निम्नलिखित कारण हैं-


बहुत अधिक मानसिक कार्य करने के कारण लकवा रोग हो सकता है।

अचानक किसी तरह का सदमा लग जाना, जिसके कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक कष्ट होता है और उसे लकवा रोग हो जाता है।

गलत तरीके के भोजन का सेवन करने के कारण लकवा रोग हो जाता है।

कोई अनुचित सैक्स संबन्धी कार्य करके वीर्य अधिक नष्ट करने के कारण से लकवा रोग हो जाता है।

मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी में बहुत तेज चोट लग जाने के कारण लकवा रोग हो सकता है।

सिर में किसी बीमारी के कारण तेज दर्द होने से लकवा रोग हो सकता है।

दिमाग से सम्बंधित अनेक बीमारियों के हो जाने के कारण भी लकवा रोग हो सकता है।

अत्यधिक नशीली दवाईयों के सेवन करने के कारण लकवा रोग हो जाता है।

अधिक शराब तथा धूम्रपान करने के कारण भी लकवा रोग हो जाता है।

अधिक पढ़ने-लिखने का कार्य करने तथा मानसिक तनाव अधिक होने के कारण लकवा रोग हो जाता है।


लकवा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। इसके बाद रोगी का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से कराना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को ऐसा इलाज कराना चाहिए जिससे कि उसके शरीर से अधिक से अधिक पसीना निकले।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन भापस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद गर्म गीली चादर से अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग को ढकना चाहिए और फिर कुछ देर के बाद धूप से अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी यदि बहुत अधिक कमजोर हो तो रोगी को गर्म चीजों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति का रक्तचाप अधिक बढ़ गया हो तो भी रोगी को गर्म चीजों को सेवन नहीं करना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी की रीढ़ की हड्डी पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए तथा कपड़े को पानी में भिगोकर पेट तथा रीढ़ की हड्डी पर रखना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए उसके पेट पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए तथा उसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में लकवा रोग ठीक हो जाता है।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त पीले रंग की बोतल का ठंडा पानी दिन में कम से कम आधा कप 4-5 बार पीना चाहिए तथा लकवे से प्रभावित अंग पर कुछ देर के लिए लाल रंग का प्रकाश डालना चाहिए और उस पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी का लकवा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को लगभग 10 दिनों तक फलों का रस नींबू का रस, नारियल पानी, सब्जियों के रस या आंवले के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए अंगूर, नाशपाती तथा सेब के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को कुछ सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी का रोग जब तक ठीक न हो जाए तब तक उसे अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए तथा ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। रोगी को ठंडे स्थान पर रहना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए और स्नान करने के बाद रोगी को अपने शरीर पर सूखी मालिश करनी चाहिए। मालिश धीरे-धीरे करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को अपना उपचार कराते समय अपना मानसिक तनाव दूर कर देना चाहिए तथा शारीरिक रूप से आराम करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को योगनिद्रा का उपयोग करना चाहिए।

लकवा रोग से पीड़ित रोगी को पूर्ण रूप से व्यायाम करना चाहिए जिसके फलस्वरूप कई बार दबी हुई नस तथा नाड़ियां व्यायाम करने से उभर आती हैं और वे अंग जो लकवे से प्रभावित होते हैं वे ठीक हो जाते हैं।