परिचय: सूजन से पीड़ित रोगी के हाथ, छाती, चेहरे, पैर, पेट या शरीर के कई अंगों पर एक साथ सूजन आ जाती है। जिसके कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सूजन होने के कारण: सूजन का रोग शरीर में दूषित द्रव के जमा हो जाने के कारण होता है। यह रोग अधिकतर हृदय तथा गुर्दे के रोगों के कारण से होता है। शरीर में खून की संचारण गति में बाधा उत्पन्न होने के कारण भी सूजन का रोग हो सकता है। सूजन का रोग हृदय में किसी प्रकार के रोग हो जाने के कारण भी हो सकता है। जब हृदय के किसी रोग के कारण सूजन होती है तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे तथा आंखों के नीचे पड़ता है जिसके कारण चेहरे तथा आंखों के नीचे सूजन आ जाती है। इस रोग में सूजन सुबह के समय में और भी ज्यादा होती है। जब जिगर के किसी रोग के कारण सूजन हो जाती है तो इसका प्रभाव सबसे ज्यादा टांगों तथा पैरों पर होता है जिसके कारण इन अंगों में सूजन हो जाती है। यह रोग हारमोन्स की वजह से होता है जो कि स्त्रियों की माहवारी शुरू होने से पहले तथा गर्भावस्था में पाया जाता है। थायराइड के असंतुलन से भी सूजन का रोग हो जाता है। यदि एलर्जी की वजह से सूजन होती है तो अधिक खुजली मचने लगती है।
सूजन रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
सूजन रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को 4-5 दिनों तक आवश्यकतानुसार फलों का रस (अनार, संतरा, गाजर, मौसमी, लौकी, सफेद पेठा, नारियल पानी आदि) आदि का सेवन करना चाहिए और इसके बाद हरी सब्जियों का रस पीना चाहिए। इसके बाद कुछ दिनों तक फलों का सेवन तथा ताजी हरी सब्जियों के सलाद का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
दूध को फाड़कर उसका पानी कुछ दिनों तक पीने से यह रोग जल्दी ठीक हो जाता है।
सुबह के समय में प्रतिदिन लहसुन चबाने तथा करेले का रस पीने से सूजन का रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को मिर्च-मसालेदार, नमक, तले-भुने पदार्थ तथा दूषित भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
नीम के 5-6 पत्ते प्रतिदिन सुबह के समय चबाने या उनको पीसकर पानी में मिलाकर पीने से कुछ ही दिनों में सूजन का रोग ठीक हो जाता है।
सूर्यतप्त से बनाया गया हरी बोतल का जल प्रतिदिन दवाई के रूप में पीने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
सूजन के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट की सफाई करनी चाहिए। पेट को साफ करने के लिए रोगी को एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद अपने पेट पर कुछ समय के लिए मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए और फिर कुछ देर तक हल्का धूपस्नान करना चाहिए।
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