कानों के रोग Ear Disease

 परिचय:आज के समय में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण वातावरण फैल रहे हैं जिनमें से आवाज का प्रदूषण मनुष्यों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। वैसे देखा जाए तो कान के रोग अक्सर शरीर में खून के दूषित हो जाने की वजह से हो जाते हैं। कान के रोग कई प्रकार के होते हैं जिनके होने के कई कारण होते हैं-


बहरापन- बहरापन रोग के कारण व्यक्ति को कान से कुछ भी सुनाई नहीं देता है। यह रोग कई प्रकार की दवाओं के प्रयोग करने के या बचपन के समय में कई प्रकार के गलत-खानपान के कारण होता है। वैसे जब यह रोग बचपन में होता है तो उसी समय यह रोग ठीक करने के लिए कई प्रकार के प्राकृतिक उपचार हैं जिनको करने से यह रोग ठीक हो जाता है लेकिन जब यह रोग बहुत अधिक पुराना हो जाता है तो उसे ठीक करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।


कर्णनाद (कानों में घंटी बजने के जैसे आवाज होना)- इस रोग के हो जाने के कारण कानों में सनसनाहट तथा कई प्रकार की तेज आवाजें सुनाई पड़ने लगती है। यह रोग कान की बाहरी नली में किसी प्रकार के मैल जमा हो जाने के कारण होता है या किसी प्रकार के दूषित द्रव्य या किसी फोड़े आदि के कारण कान की नली का बाहरी भाग बंद हो जाता है। नाक या गले का पुराना जुकाम या कई प्रकार की औषधियों का प्रयोग करने के कारण भी यह रोग हो जाता है। यह रोग कान में किसी प्रकार की जलन होने के कारण भी हो सकता है।


कर्णस्राव (कान का बहना)- जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके कान से पीव तथा मवाद निकलने लगती है। कान से पीव-मवाद निकलने से यह पता लग जाता है कि शरीर का खून शुद्ध नहीं है। यह किसी प्रकार से कानों को कुरेदने अर्थात कानों में कोई नुकीली चीजों को डालकर कान साफ करने के कारण होता है।


कान का दर्द- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के कान में दर्द होने लगता है। यह दर्द कई कारणों से हो सकता है जो इस प्रकार हैं- कान पर किसी प्रकार से चोट लग जाना, कान के अन्दर फोड़ा होना या कान में किसी प्रकार के कीड़े का चला जाना आदि। कान में दर्द कब्ज के कारण भी हो सकता है।


कनफेड (मम्पस)- कनफेड रोग कान का एक प्रकार का बहुत ही संक्रामक रोग है जो अधिकतर लार ग्रंथियों तथा जनन ग्रंथियों में दोषपूर्ण क्रिया उत्पन्न होने के कारण होता है। कनफेड रोग अधिकतर 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को होता है। वैसे देखा जाए तो यह रोग जीवन में एक बार होकर दोबारा बहुत ही कम होता है। जब कनफेड रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके कान के सामने तथा नीचे गर्दन और जबड़े तक सूजन और दर्द होता है तथा बुखार भी हो जाता है। फिर यह रोग दूसरी तरफ भी हो जाता है। कनफेड रोग के कारण रोगी व्यक्ति को खाना चबाना या निगलना मुश्किल हो जाता है। जब यह रोग किसी व्यस्क व्यक्ति को होता है तो रोगी को बहुत अधिक परेशान करता है। यह रोग कई प्रकार से प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। कनफेड रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण संक्रमण का हो जाना है और यह संक्रमण खान-पान की गलतियों के कारण होता है। यह रोग शरीर में दूषित जल के फैलाव के कारण भी होता है।


कान में रोग होने का लक्षण- किसी रोगी के कान में कोई रोग होने पर उसके कान में दर्द होता है तथा उसके कान के आसपास के भाग में सूजन आ जाती है तथा वहां पर लाली पड़ जाती है। इस रोग के कारण कान में फोड़ा हो जाता है। कभी-कभी तो कानों से पीव-तथा मवाद निकलने लगती है। कान के किसी रोग के कारण कान से सुनाई भी कम देने लगता है या बिल्कुल सुनाई नहीं देता है। इस रोग से पीड़ित रोगी की कानों से बदबू (दुर्गन्ध) आने लगती है।

कानों में अनेकों प्रकार के रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-


बहरापन-

यदि कोई व्यक्ति बहरेपन के रोग से पीड़ित है तो रोगी व्यक्ति को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को रोग की शुरुआती अवस्था में ही इलाज कराना चाहिए नहीं तो यह रोग पुराना हो जाता है और उसे करने में बहुत अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी प्रत्यामिन और श्वेतसार वाले खाद्य-पदार्थ नहीं खाने चाहिए। यदि इन पदार्थों को खाने की आवश्यकता हो भी तो कम खाने चाहिए।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को मांस, दाल, चीनी तथा अण्डा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

बहरेपन के रोगी को मीठा खाने की आवश्यकता हो तो उसे चीनी के स्थान पर गुड़ या शहद का प्रयोग करना चाहिए।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा सादा तथा क्षारधर्मी पदार्थों (रसीले पदार्थ) का अधिक सेवन करना चाहिए जिसके फलस्वरुप रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक फायदा मिलता है।

बहरेपन के रोग में रोगी को प्रतिदिन दिन में कम से कम 2 बार लगभग 20 मिनट तक अपने कानों तथा कान के आस-पास गर्म पानी की भाप देनी चाहिए और इसके साथ-साथ कानों के आस-पास उंगुलियों से हल्की-हल्की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद कान को ठंडे पानी से धोना चाहिए और फिर सूखे हुए तौलिये से कानों को पोंछना चाहिए। इसके बाद नीम की पत्तियों को पानी में डालकर इस पानी को उबालना चाहिए। फिर इस पानी को ठण्डा करके कानों की धुलाई करनी चाहिए। इसके बाद कानों को हरी बोतल के सूर्यतप्त पानी से दुबारा धोना चाहिए। फिर कानों को साफ रूई से साफ करना चाहिए। इसके बाद कानों के अन्दर मदार के पत्तों के तेल की कम से कम 2 बूंदे डालनी चाहिए और सूखी हुई रूई के फाये से कानों को बंद करना चाहिए। फिर कानों के चारों तरफ गीली मिट्टी की पट्टी लगाकर ऊपर से एक-आधे घण्टे के लिए ऊनी कपड़ा बांधना चाहिए। इस प्रकार से बहरेपन का उपचार प्रतिदिन करें तो रोगी का यह रोग कुछ दिनों के अन्दर ही ठीक हो जाता है तथा कान के और भी रोग ठीक हो जाते हैं।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में 10 से 15 मिनट तक उदरस्नान करना चाहिए और सप्ताह में एक बार रात को सोते समय पैरों पर गरम स्नान करना चाहिए।

बहरेपन से पीड़ित रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो रोगी व्यक्ति को 1-2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए या फिर सिर्फ रस वाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए और इसके बाद एनिमा क्रिया के द्वारा पेट को साफ करना चाहिए।

बहरेपन तथा कान के कई रोगों को ठीक करने के लिए कई प्रकार के व्यायाम हैं जिनको करने से बहरेपन का रोग ठीक हो जाता है।


बहरेपन को ठीक करने के लिए कुछ व्यायाम-

व्यायाम के द्वारा बहरेपन के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जाना चाहिए। इस स्थिति में खड़े होने पर व्यक्ति को अपना सिर सीधा रखना चाहिए और फिर सिर को दांए से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर मोड़ना चाहिए।

व्यायाम करते समय रोगी को अपना सिर सीधा रखना चाहिए फिर रोगी व्यक्ति को अपना सिर दाईं ओर इतना झुकाना चाहिए कि सिर दाहिने कंधे से छू जाए। इसके बाद सिर को सीधा करना चाहिए और फिर से सिर को उसी प्रकार बाईं तरफ मोड़ना चाहिए और सिर को झुकाकर कान को बाएं कन्धे से स्पर्श कराएं। इस क्रिया को कई बार दोहराएं।

रोगी व्यक्ति को व्यायाम करते समय सीधे खड़े हो जाना चाहिए। फिर अपनी उंगुलियों से नासारन्ध्रों को दबाना चाहिए तथा मुंह से गहरी सांस लेनी चाहिए। फिर कुछ समय के बाद सांस को भीतर की ओर रोकें और हल्के धक्के के साथ कानों पर दबाव पड़ने दें।

रोगी को व्यायाम करने के लिए सिर को सीधा करके खड़े हो जाना चाहिए तथा इसके बाद अपने सीने को तानकर रखना चाहिए। फिर रोगी अपनी मध्यम उंगली से अपनी नाक के नासिकारन्ध्रों को और दूसरे हाथ के अंगूठे से नाक के छिद्रों को बंद कर लें। इसके बाद गहरी सांस लें और ठोड़ी को छाती पर दबाएं। कुछ समय तक इसी अवस्था में खड़े रहें और फिर ठोड़ी को ऊपर उठाएं और मुंह से सांस निकाल दें। इस क्रिया को 5 से 10 बार करना चाहिए। इस प्रकार के व्यायाम करने से रोगी का बहरेपन का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


कर्णनाद (कान में घंटियों की सी आवाज सुनाई देना) का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

रोजाना 2 बार हरी बोतल के सूर्यतप्त जल से पिचकारी द्वारा कानों को धोना चाहिए। इसके बाद कानों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और फिर रोगी को अपने कानों में मदार के पत्तों का तेल डालना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में कर्णनाद (कान में घंटियों की सी आवाज सुनाई देना) का रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए व्यायाम करना भी काफी फायदेमंद होता है। व्यायाम करने के लिए नाक के नथूने से धीरे-धीरे लम्बी सांस लें फिर जिस प्रकार नाक साफ करते हैं ठीक उसी प्रकार जोर से नाक के नथुनों से हवा छोड़ें। प्रतिदिन सुबह तथा शाम नियमित रूप से इस प्रकार के व्यायाम करने से रोगी का यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।


कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) रोग को ठीक करने के लिए उपचार-

इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने खून को शुद्ध करना चाहिए, क्योंकि यह रोग अधिकतर खून की गंदगी के कारण होता है। खून साफ होने पर यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है। खून को साफ करने के लिए रोगी व्यक्ति को 1 से 2 दिन का उपवास रखना चाहिए और फलों का रस पीना चाहिए।

कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) के रोग में रोगी को मौसमी का रस तथा सब्जियों का रस पिलाना बहुत ही लाभदायक रहता है।

कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन 10 से 15 मिनट तक उदर-स्नान करना चाहिए। इसके बाद दूसरे दिन रोगी को अपने पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए।

कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) से पीड़ित रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो कब्ज को दूर करने के लिए उसे एनिमा देना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन 2 बार जिस कान से पीब निकलती है उस पर कम से कम 7 मिनट तक भाप देनी चाहिए और इसके बाद उस भाग को ठंडे पानी से भीगे हुए कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। फिर नीम के गर्म पानी और पिचकारी द्वारा अन्दर का मैल साफ कर लेना चाहिए। इसके बाद 2 बूंद बकरी का ताजा मूत्र कान में डालकर कान साफ करना चाहिए और साफ रूई के फाये से कान को बंद कर लेना चाहिए।


कान के दर्द को ठीक करने के लिए उपचार-

कान के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दिन में 3-4 बार कान के ऊपर और उसके आस-पास के भाग में भाप देकर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए।

कान का दर्द यदि कान के अन्दर कोई फोड़ा हो जाने के कारण हो रहा है तो सबसे पहले उसका इलाज करना चाहिए। कान के अन्दर के फोड़े को ठीक करने के लिए कान को दिन में 2 बार नीम के पानी से धोना चाहिए और रात को कान पर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए।

कान के दर्द से पीड़ित रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो रोगी को अपने कब्ज को दूर करने के लिए पेट को साफ करना चाहिए। पेट को साफ करने के लिए रोगी को एनिमा क्रिया करनी चाहिए।

कान के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कटिस्नान और रात को सोते समय कपडे की गीली पट्टी अपने कान पर लगानी चाहिए।

कान के दर्द से पीड़ित रोगी को पीली और गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल प्रतिदिन 4-5 बार पीना चाहिए और इसी पानी को गर्म करके कान को धोना चाहिए।

कान के दर्द को ठीक करने के लिए हरी बोतल के द्वारा बनाए गए सूर्यतप्त तेल को कान में डालना चाहिए ताकि यदि कान में कोई फोड़ा हो तो वह ठीक हो जाए। इससे कुछ ही समय में कान में दर्द ठीक हो जाता है।


कनफे़ड का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

कनफेड रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए जब तक कि कनफेड के कारण आने वाला बुखार न उतर जाए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक फलों का रस पीना चाहिए। इस रोग को ठीक करने के लिए सब्जियों का रस पीना भी बहुत अधिक लाभदायक होता है। इसके बाद रोगी व्यक्ति को फल तथा सलाद खानी चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम के समय में पानी को हल्का गर्म करके उसमे नमक डालकर गरारे करने चाहिए। इसके बाद गर्म पानी से एनिमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए।

कनफेड के रोगी को कान की सूजन वाली जगह पर गर्म तथा ठंडी सिकाई करनी चाहिए ताकि सूजन कम हो सके।

कनफेड रोग को ठीक करने के लिए रोगी को कुछ दिनों तक लगातार अदरक पीसकर सूजन पर लगानी चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में सूजन कम हो जाती है और रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

नीम के पत्तों को पीसकर इसमें हल्दी मिलाकर सूजन पर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है और कनफेड रोग ठीक हो जाता है।

कनफेड रोग से पीड़ित रोगी को सूजन वाले भाग पर मिट्टी का लेप करने से भी सूजन ठीक होकर कनफेड रोग ठीक हो जाता है।


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