परिचय: जब किसी व्यक्ति नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है तो उसे नींद बहुत आती है तथा उसकी पाचनक्रिया खराब हो जाती है जिसके कारण उसको भूख नहीं लगती है तथा खाया हुआ खाना ठीक से पचता नहीं है। रोगी का शरीर गिरा-गिरा सा रहता है तथा उसे यौन सम्बंधी अनियमिताएं भी हो जाती हैं। रोगी को भय, क्रोध, चिंता, ईर्ष्या, चिड़चिड़ापन, दुविधा में रहना आदि परेशानियां भी हो जाती हैं। रोगी को कोई काम करने का मन नहीं करता है और उसका मन इधर-उधर भटकता रहता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी आत्महत्या करने का मन करता है तथा रोगी को अकेले रहने का मन करता है और उसे कहीं भी शांति नहीं मिलती है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को सहानुभूति की आवश्यकता होती है इसलिए इस रोग के रोगी के साथ मधुरवाणी (प्यार भरे शब्द) से बोलना चाहिए और रोगी व्यक्ति को अधिक देर तक सोने देना चाहिए। रोगी को सोच-विचार का अधिक कार्य नहीं करना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को पहले की सारी बातें याद दिलानी चाहिए जिसमें उसने कोई सफलता प्राप्त की हो या फिर उसने अच्छे स्थान की यात्रा की हो। रोगी की इच्छाओं को महत्व देना चाहिए। रोगी व्यक्ति के साथ कभी भी बहस नहीं करनी चाहिए।
नाड़ी दुर्बलता रोग होने का कारण-
जो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है या जिसे शारीरिक कार्य करने की अधिकता रहती है ऐसे व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।
नशीली पदार्थों तथा अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को रोग हो जाता है।
भूख से अधिक भोजन करने तथा खान-पान का तरीका सही न होने के कारण भी नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है।
अधिक मैथुन क्रिया करने के कारण तथा हर समय उत्तेजना भरी बातें करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
शरीर में धातु की कमी होने के कारण भी नाड़ी दुर्बलता का रोग हो सकता है।
मानसिक तनाव तथा अधिक सोच विचार करने के कारण नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है।
नाड़ी दुर्बलता रोग को ठीक के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को उसकी इच्छाओं के अनुसार खेल तथा मनोरंजन में लगाना चाहिए तथा उसे अधिक से अधिक आराम देना चाहिए।
रोगी के खाने-पीने की इच्छा को पूरा करना चाहिए तथा उस पर किसी तरह का दबाव नहीं देना चाहिए।
नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को गाजर तथा खीरे का रस पिलाना चाहिए। इस रोग में नारियल पानी और दूब का रस पीना भी बहुत लाभदायक होता है।
दूब के रस में मुनक्का को भिगोकर सुबह के समय में खाना चाहिए तथा इसके बाद एक गिलास पानी पीना चाहिए। रोगी को सुबह के समय में उठते ही पानी पीना चाहिए।
रोगी को चोकर सहित आटे की रोटी खिलानी चाहिए। इसके अलावा अंकुरित चने, मूंगफली, मौसम के अनुसार ताजे फल, कच्चा सलाद आदि भी रोगी को सेवन कराने चाहिए तथा उसे दही का अधिक मात्रा में सेवन कराना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
नाड़ी दुर्बलता रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी मिठाई तथा भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए सूर्यतप्त नीली बोतल का पानी रोजाना दिन में 6 बार पीना चाहिए। रोगी को एनिमा क्रिया लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए और फिर कटिस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए। रोगी को साप्ताहिक चादर लपेट क्रिया करनी चाहिए और रीढ़ पर गर्म ठंडा स्नान करना चाहिए तथा सिर पर गीला तौलिया रखना चाहिए। यदि रोगी का कहीं घूमने का मन कर रहा हो तो उसे घुमाने के लिए ले जाना चाहिए।
नाड़ी दुर्बलता रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन तथा योग क्रियाएं हैं जिनको करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है ये आसन तथा योग क्रियाएं इस प्रकार हैं- सर्वांगासन, पवनमुक्तासन, चक्रासन, अर्धमत्स्येन्द्रान तथा उत्तानपादासन, शवासन तथा योगनिद्रा।
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