परिचय: जब किसी व्यक्ति को जलोदर (पेट में पानी भरना) रोग हो जाता है तो इस रोग के कारण रोगी के पेट में दूषित पानी जमा हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को साधारण पानी पचता नहीं है। जब यह रोग बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो रोगी के मुंह और हाथ-पैरों पर बहुत अधिक सूजन आ जाती है तथा कभी-कभी रोगी को बुखार भी हो जाता है। इस रोग में रोगी के मलद्वार के पास अंगुली से दबाने से गड्ढा सा पड़ जाता है।
जलोदर रोग होने का कारण- जब किसी व्यक्ति के जिगर, पित्ताशय, गुर्दे और हृदय कमजोर हो जाते हैं तो वे अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं करते हैं जिसके कारण शरीर में जो खून होता है वह पिघल कर पानी बन जाता है और शरीर के किसी भाग के तंतुओं या गह्नर में जमा होकर जलोदर रोग की उत्पत्ति करता है। इसके कारण पानी रोगी के पूरे शरीर में या शरीर के किसी एक भाग खासकर पेट में जमा हो जाता है। जब शरीर से मल का निष्कासन ठीक प्रकार से नहीं होता या शरीर में से मूत्र तथा पसीने रुकने के कारण इसकी मात्रा बढ़ जाती है तब यह रोग हो जाता है।
लक्षण- जलोदर रोग में रोगी के पेट में बहुत अधिक मात्रा में पानी जमा होने के कारण उसका पेट फूल जाता है।
जलोदर रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
इस रोग का उपचार करने के लिए रोगी को ऐसे पदार्थ अधिक खाने चाहिए जिनसे कि पेशाब अधिक मात्रा में आए तथा पेशाब साफ हो।
जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को अपनी पाचनक्रिया को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए क्योंकि जब पाचनक्रिया ठीक हो जाएगी तभी यह रोग ठीक हो सकता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को पानी पीना बंद कर देना चाहिए तथा भोजन भी बंद कर देना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को प्यास लग रही हो तो उसे दही का पानी, मखनियां, ताजा मट्ठा, फलों का रस तथा गाय के दूध का मक्खन देना चाहिए। इसके अलावा रोगी को और कुछ भी सेवन नहीं करना चाहिए।
यदि रोगी अधिक कमजोर नहीं है तो उसे एक दिन उपवास रखना चाहिए।
रोगी के पेट में जहां पर सूजन आ रही हो वहां पर प्रतिदिन 1-2 बार मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए। रोगी को कुछ दिनों तक सोने से पहले प्रतिदिन गुनगुने पानी का एनिमा लेकर पेट को साफ करना चाहिए। इस क्रिया को सुबह के समय उठने के बाद भी किया जा सकता है।
यदि रोगी का हृदय बहुत अधिक कमजोर है तो उसके हृदय के पास एक दिन में 3 बार कम से कम 25 मिनट तक कपड़े की ठंडी पट्टी रखनी चाहिए। जब रोगी के हृदय के पास की पट्टी को हटाते हैं तब उस स्थान को मलकर लाल कर लेना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को खुली तथा साफ जगह पर रहना चाहिए।
जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में सूर्य के प्रकाश के सामने बैठकर पेट की सिंकाई करनी चाहिए। यह क्रिया कम से कम आधे घण्टे के लिए करनी चाहिए। उपचार करते समय रोगी व्यक्ति को नारंगी रंग का शीशा अपने पेट के सामने इस प्रकार रखना चाहिए कि उससे गुजरने वाले नीले रंग का प्रकाश सीधा पेट पर पड़े।
जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को नारंगी रग की बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 6 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
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